जाटों का ज़मीन पर जीवंत बिखरा पड़ा इतिहास
इतिहास पर शोध चलते रहते हैं और खोजी शिक्षार्थी पी. एच. डी. करते रहते हैं। पुरातत्त्व विभाग लाखों व करोड़ों रुपये खर्च करके जमीन की चीरफाड़ करता रहता है, जहां कभी जैन साधुओं की तो कभी महात्मा बुद्ध की मूर्तियाँ मिलती रहती हैं।
और फिर अनुमान पर ज्यादा जोर लगाया जाता है कि ये फलाँ युग व सन् की थी, जबकि ऐसा पाया जाने के पीछे पौराणिक ब्राह्मणवाद ही कारण है, जिसका विवरण कभी भी नहीं बतलाया जाता कि ये जमीन में इतनी नीचे कैसे पहुंच गई।
जाटों का इतिहास जीवंत अवस्था में आज भी देश भर में फैला है, जिसकी कभी किसी इतिहासकार, पत्रकार व सरकार ने सुध नहीं ली। इसके यहाँ मैं तीन उदाहरण पेश कर रहा हूँ –
दक्षिण में हैदराबाद के गोलकुण्डा किले को फतह करना औरंगजेब के लिए एक बड़ी चुनौती थी। इसके लिए उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। अन्त में उसने एक तोपखाना खड़ा करने तथा छापामार टुकड़ी बनाने का निर्णय लिया। लेकिन इसके लिए उसे दिलेर सैनिकों की आवश्यकता थी।
जब उसने इसके लिए अपनी नजर दौड़ाई तो उसको दिल्ली तथा इसके आसपास केवल बहादुर जाट ही नजर आये और उसने इसके लिए जाटों से आह्वान किया। दिल्ली व उसके आसपास से इस उद्देश्य के लिए 700-800 जाटों की अलग से एक सेना बनाई।
इस लड़ाई में जाटों ने चमत्कारिक बहादुरी दिखलाई और गोलकुण्डा किले को फतह कर लिया। गोलकुण्डा की स्थाई सुरक्षा तथा जीत की खुशी में औरंगजेब ने इन जाटों को हैदराबाद के पास मुफ्त में जमीन देकर उन्हें यहाँ बसाया।
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जाटों का ज़मीन पर जीवंत बिखरा पड़ा इतिहास
समय अपनी गति से चलता रहा, राज-रजवाड़े बदलते रहे, और वहीं जमीन घटती रही, लेकिन जाट बढ़ते रहे और वह समय आ गया जब ये जाट छोटे किसान और मजदूर बनकर रह गये।
आज यही जाट लगभग 50 हजार की जनसंख्या में हैदराबाद के रामदेवगुड़ा से नलगुण्डा तक लगभग 65 कि. मी. में फैले अपनी बहादुरी का इतिहास अपने सीने में छिपाये हैं और भारत सरकार व आन्ध्र प्रदेश की बेवफाई पर आंसू बहा रहे हैं।
अभी-अभी की सरकार ने इनको पिछड़े वर्ग में शामिल किया है। इनके गोत्र हैं गुलिया, माथुर, खैनवार, नूनवार, जकोदिया, ब्यारे, हतीनजार व दुर्वासा आदि। जैसे इनका रंग बदलता गया वैसे गोत्र भी, लेकिन जाट ‘Genes’ (रक्त) इनमें आज भी कायम है।
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श्रीमती रेणुका चौधरी पूर्व में केन्द्रीय मन्त्री और बैडमिंटन खिलाडी पी. वी सिंधु इसी समाज से सम्बन्धित हैं। इन गोलकुण्डा विजेताओं के इतिहास को भूला दिया गया जबकि मुगलों के हिन्दू सेनापतियों का इतिहास पढ़ाया जा रहा है।
इस समाज में पर्दाप्रथा नहीं है। आज इस जाट समाज के प्रधान दुर्वासा कासीराम सिंह हैं जिनका पता हैः- मकान नं. 9-5-106 गाँव – रामदवे गुड़ा व डॉक. – सिविल लाइन्स, हैदराबाद -31 (आन्ध्र प्रदेश) । सम्पूर्ण इतिहास इन्हीं से जानें।
जाटों का ज़मीन पर जीवंत बिखरा पड़ा इतिहास
अभी सन् 2007 में पता चला है कि बिहार के कई जिलों में जैसे कि पटना, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, गया, औरंगाबाद तथा भागलपुर जिलों में जाट बिखरे पड़े हैं।
इनकी आबादी चौरासी गांवों में पाई जाती है, इन्हें ये चौरासी जाट कहते हैं। इनके प्रमुख गोत्र हैं- महलौत, चौपड़, खंगूरा, बालियाण, रावत, कुण्डल, भूरा, गेमर, मीठा आदि-आदि। ये जाट वहां प्राचीन समय से आबाद हैं।
इनमें पर्दा रिवाज नहीं है। इन जाटों को वहां बिहार राज्य में पिछड़ी जाति का आरक्षण मिला हुआ है। पटना जिले के गांव चवरा में एक जाट विद्यालय भी है।
8 फरवरी 2009 को मेरठ में आयोजित जाट महासम्मेलन में बिहार से कुछ जाट आए हुए थे जिसमें वहां की जाट महासभा के प्रधान चौ० शिवप्रताप सिंह खंगूरा तथा महासचिव चौधरी उत्तमकुमार सिंह बालियान प्रमुख थे। जिनके फोन नं० क्रमशः 09934036873 तथा 09973013964 हैं।
नोट – देश के दूसरे हिस्सों में भी जाट हैं, जिन्हें जोड़ना शेष है। एक अनुमान के अनुसार भारत वर्ष में जाटों की वर्तमान में जनसंख्या इस प्रकार हैः-
1. राजस्थान – 1.20 करोड़
2. पंजाब – 85 लाख
3. उत्तरप्रदेश – 80 लाख
4. हरयाणा – 75 लाख
5. दिल्ली – 16 लाख
6. मध्यप्रदेश – 8 लाख
7. गुजरात – 8 लाख
8. जम्मू-काश्मीर – 7 लाख
9. उत्तरांचल – 2.5 लाख
10. हिमाचल – 1.5 लाख
11. आन्ध्र प्रदेश – 50 हजार
12. महाराष्ट्र – 50 हजार
13. बिहार – 1 लाख।
(मुम्बई को छोड़कर) कुल योग – 4,02,00,000
लेकिन जाटों से छिटक कर दूसरी जातियां बन गई, को मिलाने से भारत में लगभग 7-8 करोड़ जाट होंगे। राजस्थान में बिश्नोई जाटों को मिलाकर जाटों की कुल संख्या राजपूतों से दोगुनी है। इसलिए राजस्थान को राजपूताना कहना अनुचित है। इसे जाटिस्तान या जटवाड़ा कहना चाहिए।
इसी प्रकार झुंझनू को शेखावाटी क्षेत्र कहना अनुचित है इसे जटवाटी क्षेत्र कहना चाहिए। वैसे भी शेखावाटी से पहले इसे नेहरावाटी कहा जाता था।
मैं आज इस लेख में दावे से लिख रहा हूं कि राजस्थान का जाट इसी सदी में शिक्षा के क्षेत्र में सबसे ज्यादा तरक्की करके फिर से अपना खोया हुआ प्राचीन गौरव प्राप्त करेगा। क्योंकि इतिहास अपने को दोहराता है। दूसरा जाट जितना कटा है उतना बढ़ा भी है।
जाट लोग निम्नलिखित देशों में निवास करते हैं:- 1. भारत, 2- पाकिस्तान, 3 – चीन, 4 – अफगानिस्तान, 5 – तुर्की, 6- अजबेकिस्तान, 7- कजाकिस्तान, 8- ईरान, 9- ईराक, 10- ग्रीस, 11-मिश्र, 12- अर्मेनिया, 13- जोर्जिया, 14- सऊदी अरब, 15- लिबिया, 16- अलजिरिया, 17- मराको, 18- रोमानिया, 19- स्वीडन, 20- जर्मनी, 21- इटली, 22- इंग्लैण्ड, 23- तिब्बत, 24- साईबेरिया, 25- बेलारूस। (इसके अतिरिक्त यूरोप के कई और देश भी हैं।)
भाषा व उच्चारण भेद के कारण इनको अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। जैसे कि जट्ट – जाट – जत – जोत – गोत – गोथ – गाथ – जिट – जटी आदि आदि।
पीवी सिंधु की माँ देवगन गोत्र की ब्राह्मण हैं, उत्तर पूर्व भारत के राज्यों की तरह ही दक्षिण भारत में भी पितृ नहीं मातृ प्रधान समाज हैं। वहां पिता की जगह माँ को परिवार की मुखिया माना जाता हैं।
इसी कारण सिंधु खुद को पिता नहीं बल्कि माँ की जातीय पहचान के आधार पर बताती हैं। दक्षिण भारत में शादी के बाद दूल्हा की बजाए अपनी सास को अपने साथ रखता हैं इसी तरह लड़की पक्ष बारात लेकर लड़के के घर जाता हैं।
इन्ही कारणों से उत्तर भारत व दक्षिण की रीती रिवाज में दिन रात का अंतर् हैं जिसकी वजह से हमें समझने में गलफहमी हो जाती हैं।
यह उच्चारण के भेद के कारण है।
उदाहरण के लिए हिन्दी के शब्द ‘कहां’ को हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र में ‘कठै’, रोहतक क्षेत्र में ‘कड़ै़’, भिवानी क्षेत्र में ‘कित’ हिसार क्षेत्र में ‘कड़ियां’ बोला जाता है। इसी शब्द को पंजाब में ‘किथै’ तो डोगरी में ‘कुत्थे’ बोलते हैं।
हम हरयाणा में चारपाई को खाट कहते हैं तो पंजाब और जम्मू क्षेत्र में ‘खट्ट’ बोला जाता है। हम जाट कहते हैं तो पंजाब, हिमाचल व जम्मू क्षेत्र में इसे जट्ट बोला जाता है। हमारे इसी शब्द को शेष उत्तर भारत में जाट बोला जाता है।
हरयाणा के पलवल क्षेत्र में जाट के लिए ‘जाट्टन’ शब्द का प्रयोग होता है। पूरे भारतवर्ष में जाट अपनी जाटू भाषा ही बोलते हैं। अन्तर केवल उच्चारण का है।
हमारे देश के उत्तरी पूर्वी राज्यों में ट की जगह त का इस्तेमाल होता है। ये लोग ‘ट्रेन’ को ‘त्रेन’ बोलते हैं। इसी प्रकार बिहार के मैथिली क्षेत्र में ‘ड़’ की जगह ‘र’ का इस्तेमाल होता है। इसी प्रकार दक्षिण भारत में ‘ज’ की जगह ‘श’ का इस्तेमाल होता है। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं।
जाटों का ज़मीन पर जीवंत बिखरा पड़ा इतिहास
सन् 1989 के एक अध्ययन के आधार पर संसार में जाटों की जनसंख्या 45 करोड़ थी। जाटों की जनसंख्या देश और विदेश में कितनी है इसका सिरे से अनुसंधान करने की आवश्यकता है।
जाट ऊपरलिखित इन सभी देशों में हैं, का प्रमाण निम्नलिखित विदेशी इतिहासकारों की इतिहास पुस्तकों व ग्रन्थों में उपलब्ध है –
- यूनानी इतिहासकार यूसीडीइडस,
- यूनानी इतिहासकार हैरोटोडस,
- परशिया इतिहास के लेखक कनिघम,
- यूनानी लेखक स्ट्रैबो,
- अरबी ग्रन्थ तिरमिजी अबवाबुल इम्पाल,
- सूलेमान नदवी का अरबी ग्रन्थ ‘तारीखे तबरी’,
- स्कैंडिनेविया की धर्म पुस्तक ‘एड्डा’,
- चीन के इतिहासकार डिगियान आदि-आदि।
- (पुस्तक – जाट इतिहास व सिक्ख इतिहास का अध्ययन) ।
जाटों का ज़मीन पर जीवंत बिखरा पड़ा इतिहास