जाटों ने चौधरी छोटूराम की शिक्षाओं को भुलाया तो कष्ट उठाया
खुदी को कर बुंलद इतना कि हर तकदीर से पहले।
खुदा बन्दे से पूछे, बता तेरी रजा क्या है॥
19वीं सदी में भारत वर्ष में ऐसे दो महान् महापुरुष पैदा हुये जिन्होंने गरीबी में जन्म लिया और अपने जन्म में गरीबी को भोगा तथा इसके निवारण का रास्ता खोजकर जीवनभर संघर्ष करते रहे, वे थे चौधरी छोटूराम और डॉ. अम्बेडकर।
डॉ. अम्बेडकर जो महार जाति अर्थात् वाल्मीकि जाति से मिलती-जुलती जाति से सम्बन्ध रखते थे न कि चमार जाति से।
डॉ. अम्बेकडर ने सदियों से पीड़ित दलित समाज को उनके अधिकार दिलवाये तथा उनके आत्मसम्मान के लिए हमेशा संघर्षरत रहे और उस संघर्ष को अपने मुकाम तक पहुंचाया चाहे उन्हें इसके लिए अपना धर्म-परिवर्तन ही क्यों ना करना पड़ा हो।
लेकिन यही भोला-भाला दलित समाज आज तक उनको समझने में पूर्णतया नाकाम रहा।
जबकि सच्चाई यह है कि जब डॉ. अम्बेडकर की बात नहीं सुनी गई तो उन्होंने दलित समाज के लिए अलग से जमीन (राष्ट्र) की मांग कर डाली थी। इसी कारण पंडित नेहरू को झुकना पड़ा और उनकी बात को काफी हद तक सुनना और मानना पड़ा।
इसी प्रकार चौ. छोटूराम ने किसान और मजदूर को अपना हक दिलवाने के लिए संयुक्त पंजाब में संघर्ष का रास्ता चुना और इस संघर्ष को अपने मुकाम तक पहुंचाने के लिए हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई को एक मंच पर खड़ा कर दिया।
जाटों ने चौधरी छोटूराम की शिक्षाओं को भुलाया
उस समय संयुक्त पंजाब में 57 प्रतिशत मुसलमान, 28 प्रतिशत हिन्दू, 13 प्रतिशत सिक्ख और 2 प्रतिशत ईसाई धर्मी थे, लेकिन वे सभी किसानों व मजदूरों के एकछत्र नेता थे।
और ये बात उन्होंने सन् 1936-37 के चुनाव में सिद्ध कर दी थी, जब जम़ीदारा पार्टी के 120, कांग्रेस के 16 तथा मुस्लिम लीग (जिन्ना की पार्टी) के दो सदस्य ही चुनाव जीत पाए, जिनमें से बाद में एक जमीदारा पार्टी में मिल गया। वही हिन्दू महासभा के सावरकर की पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी।
चौधरी साहब जम़ीदारा पार्टी (यूनियनिष्ट) के सर्वेसर्वा थे। लेकिन उन्होंने कभी भी संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री (प्रीमियर) के पद का लोभ नहीं किया और हमेशा मुसलमान जाटों को इस पद पर सुशोभित किया, जो एकता के लिए आवश्यक था।
जब सन् 1944 में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना पश्चिमी पंजाब में मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण वहाँ पाकिस्तान बनाने की संभावनायें तलाशने गये और उन्होंने लाहौर में भाषण दिया कि
“पंजाब के मुसलमानो, हमें अपना अलग से देश बनाना है जहाँ हम खुद मालिक होंगे। छोटूराम हिन्दू है वह हमारा कभी भी नहीं हो सकता, वह तो नाम का भी छोटा है, कद का भी छोटा है और धर्म का भी छोटा है, उसका साथ देना हमें शोभा नहीं देता।”
इस पर चौ॰ छोटूराम साहब को रोहतक से तुरत-फुरत जिन्ना का जवाब देने के लिए लाहौर बुलाया और उन्होंने भाषण दिया –
“जिन्ना साहब अपने को मुसलमानों का नेता कहते हैं, मुस्लिमधर्मी होने का दावा करते हैं, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति में रंगे हैं, अंग्रेजी शराब पीते हैं, सूअर का मांस खाते हैं, अपने को पढ़ा लिखा कहते हैं, लेकिन उनको तो इतना भी ज्ञान नहीं कि धर्म बदलने से खून नहीं बदलता। हम जाट हैं, हम हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाई सभी हैं।”
इस पर पंजाब की मुस्लिम जनता जिन्ना साहब के ऐसे पीछे पड़ी कि जिन्ना साहब रातों-रात लाहौर छोड़ गये और जब तक चौधरी साहब जीवित रहे (9 जनवरी 1945 तक), कभी लौटकर पंजाब व लाहौर नहीं आये।
इसी प्रकार सन् 1944 में काश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने जिन्ना साहब को सोपुर कस्बे में जूतों की माला डलवा दी थी जिसके बाद जिन्ना साहब कभी भी अपने जीते जी कश्मीर नहीं आये और बम्बई में जाकर बयान दिया कि कश्मीर तो एक दिन सेब की तरह टूटकर उनकी गोद में गिर जायेगा। अब्दुल्ला खानदान हमेशा ही पाकिस्तान विरोधी रहा है।
दिनांक 15.04.1944 को चौ. छोटूराम ने महात्मा गांधी को एक लम्बा पत्र लिखा जिसका सारांश था कि “आप जिन्ना की बातों में नहीं आना, वह एक बड़ा चतुर किस्म का व्यक्ति है जिसे संयुक्त पंजाब व कश्मीरी मुसलमान उनको पूरी तरह नकार चुका है।
मि. जिन्ना को साफ तौर पर बता दिया जाये कि वे पाकिस्तान का सपना लेना छोड़ दें।” लेकिन अफसोस, कि वहीं गांधी जी कहा करते थे कि पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा, चौ. साहब के पत्र का उत्तर भी नहीं दे पाये और इसी बीच चौ. साहब 63 साल की अवस्था में अचानक ईश्वर को प्यारे हो गये या धोखे से जहर देकर मार दिए।
परिणामस्वरूप गांधी जी ने जिन्ना और सावरकर की दो राष्ट्र की मांग के समक्ष घुटने टेक दिये और जिन्ना का सपना 14 अगस्त 1947 को साकार हो गया तथा साथ-साथ जाटों की किस्मत पर राहू और केतु आकर बैठ गये।
जाटों ने चौधरी छोटूराम की शिक्षाओं को भुलाया तो कष्ट उठाया
गांधी और जिन्ना जी को इतिहास ने महान बना दिया न कि उन्होंने इतिहास को महान् बनाया। जिन्ना को तो यह भी पता नहीं था कि 14 अगस्त 1947 को रमजान है जिसका रोजा देर रात से खुलेगा। उसने तो सायं पार्टी का हुक्म दे डाला था जब पता चला तो समय बदली किया।
इस व्यक्ति ने इस्लामिक देश पाकिस्तान की नींव रखी। आज चाहे जसवन्त सिंह व आडवाणी ( दोनों भाजपा नेता) या कोई और नेता जिन्ना के बारे में (धर्मनिरपेक्ष नेता) या कुछ भी लिखे जबकि सच्चाई यह है कि जिन्ना और नेहरू में सत्ता लोलुपता के लिए भयंकर कस्मकश थी।
गांधी एक कमजोर नेता थे, उनके सामने भी गंभीर चुनौती कड़ी हो चुकी थी। जहाँ वो एक तरफ से सावरकर की हिन्दू राष्ट्र की मांग से दबे जा रहे थे व् दूसरी तरफ जिन्ना के अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग से। तो अब इसके लिए पाकिस्तान की नींव रखी गई, ताकि दोनों के अरमान पूरे हो सकें।
जब जाटों ने अंग्रेजों का सूर्य उदय होने से रोक दिया
चौ० छोटूराम के साथ उस समय 81 मुस्लिम विधायक तथा 37 हिन्दू-सिख विधायक थे और चौ० साहब ने 8 मई 1944 को लायलपुर की लाखों की सभा में जिन्ना को ललकार कर कह दिया था कि वह उनका एक भी विधायक तोड़ कर दिखाए।
लेकिन गांधी जी स्वयं ही टूट गए। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दू महासभा के अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर ने सबसे पहले सन् 1937 के अपने जोधपुर अधिवेशन में जिन्ना के दो राष्ट्रों के सिद्धान्त की अनुमति दे दी थी।
(पुस्तक ‘मध्यकालीन इतिहास’ पेज नं० 103)।
जाटों ने चौधरी छोटूराम की शिक्षाओं को भुलाया तो कष्ट उठाया