जाट कौम सावधान
किसी भी कौम में समयानुसार परिवर्तन आवश्यक है। कुछ समय से जाट कौम में भी गहन परिवर्तन आये हैं। लेकिन अधिकतर परिवर्तन नकारात्मक हैं।
जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण जाटों की नई पीढ़ी अपनी कौम की परम्पराओं व संस्कृति से बड़ी तेजी से कटती जा रही है, जिसका कोई उपाय आवश्यक है। यह प्रवृत्ति कौम के लिए एक बड़ी चिन्ता का विषय हैं।
इस बारे में हमें अपनी संतानों को शिक्षा देने के लिए एक ‘जाट आचार संहिता’ का निर्माण करना ही होगा।
यदि समय के साथ-साथ इसके उपाय नहीं किये गये कि ऐसा न हो कि जाट कौम लुप्त होने की राह पर चल पड़े? यह बात सुनने में अवश्य अटपटी लगती है कि कोई जाति कैसे लुप्त हो सकती है।
लेकिन इतिहास भूतकाल का दर्पण तथा भविष्य का रहबर (Guide) होता है। इतिहास गवाह है कि कई नई जातियाँ बनती रहीं और कुछ विलुप्त होती रही हैं।
जाट कौम सावधान
किसी भी जाति के बनने व लुप्त होने में सदियाँ लगती हैं। जाट एक विश्व जाति (Global Race) रही है।
जाट पहले बौद्ध थे, फिर हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और सिक्ख बनते रहे हैं। शेष आज का हिन्दू जाट समाज बुरी तरह से ब्राह्मणवाद के चक्रव्यूह तथा लुटेरी संस्कृति के मायाजाल में फंसता जा रहा है।
यही संस्कृति हिन्दू जाट जाति को शनैः-शनैः लील रही है अर्थात्
अपने में समा रही है। लेकिन इस प्रक्रिया को हम आमतौर पर महसूस नहीं कर पा रहे हैं। हम केवल 1947 के बाद का परिवर्तन देखें तो हम स्पष्ट देखते हैं कि हमारी दिशा किस ओर है।
हमसे तो पाकिस्तान के मुस्लिम जाट बेहतर स्थिति में हैं। जबकि पाकिस्तान की जनसंख्या 16 करोड़ 25 लाख है।
हम से तो पंजाब के 81 लाख सिक्ख जाट भी अच्छी हालत में हैं। अभी कुछ लोग कहेंगे कि वे अधिक शिक्षित हैं तो मेरा पूछना है कि कुंवर नटवरसिंह से कौन हिन्दू जाट राजनीति में अधिक शिक्षित है?
उनका आज क्या हो रहा है? उन्होंने तो किसी जाट को तेल की पर्चियाँ नहीं दिलवाई, पर्ची लेने वाले तो सहगल और खन्ना, हिन्दू-पंजाबी खत्री थे।
यूरोप में कैथोलिक ईसाई धर्म और जाट
जाट कौम सावधान – आपसी भाईचारे को रखें कायम, अफवाहों से सावधान रहे
यही विपिन खन्ना जी अभी सेना के लिए हथियार खरीदने के मामले में भी फंस चुके हैं।
लेकिन उसी वर्ग के लोगों ने जो विपक्ष में बैठे थे पहले इन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया, फिर उसी वर्ग के सत्तापक्ष के लोगों ने कांग्रेस से निष्कासित करवाया।
इसी कांग्रेस की कुंवर नटवरसिंह 45 वर्षों से सेवा करते आ रहे थे और आज उन्हें दूध में गिरी मक्खी की तरह निकालकर फैंक दिया गया।
फिर उन्हें जाट जाति याद आई तो उनके कहने पर दो लाख जाट 23 अगस्त 2006 को जयपुर में इकट्ठे हो गये।
लेकिन तेल की पर्चियाँ लेने वाले वर्ग से कोई भी व्यक्ति वहाँ उपस्थित नहीं था। अभी अगस्त 2007 में चौ० नटवरसिंह के सुपुत्र जगतसिंह ने इसी अंदलीव सहगल की बहन से प्रेम विवाह किया है।
इस बारे में मैं तो यही कहना चाहूंगा “हम तो लुट गये तेरे प्यार में
जब से दिल्ली केन्द्र शासित व एक राज्य रहा है अर्थात् आजादी के बाद से पहली बार दिसम्बर 2008 में बनी सरकार में श्रीमती शीला दीक्षित के मन्त्रिमण्डल में कोई भी जाट मन्त्री नहीं है।
उत्तर भारत में जाटों से बड़ी कोई जाति नहीं है और आज इस कौम का दिल्ली की राज्य सरकार में कोई हिस्सा नहीं, जबकि दिल्ली राज्य में ही नहीं, दिल्ली की केन्द्र सरकार में भी जाटों का एक बहुत बड़ा हिस्सा होना चाहिए।
लेकिन जाटों का दुर्भाग्य है कि आज सम्पूर्ण दिल्ली में इन बाहरी लोगों का आधिपत्य है।
जाटों के साथ पक्षपात के कुछ उदाहरण
जाट कौम सावधान – आपसी भाईचारे को रखें कायम, अफवाहों से सावधान रहे
वही डी.एल.एफ. जो कभी जमना भक्त के वंशज तथा चौ० छोटूराम के दायाँ हाथ चौ० लालचन्द के बेटे चौधरी राघवेन्द्र ने स्थापित की, इसका मालिक शायद 20 साल के बाद कोई भी जाट खून से हो?
अभी कुछ दिन पहले एक एम.एल.ए. के दावेदार नेता एक जाट मीटिंग में भाषण कर रहे थे कि जाटों को फौज में भर्ती नहीं होना चाहिये और सभी को आई.ए.एस. तथा आई.पी.एस. बनना चाहिये।
बात बिल्कुल अच्छी है, प्रयास होना चाहिए, यही लोग तो देश की नीति निर्धारित करते है। नेता जी ने अच्छा महसूस किया कि देश की वास्तविक सत्ता इन्हीं अधिकारियों के कब्जे में होती है।
क्योंकि नेता जी को लोगों के कार्यों के लिए इन्हीं से जूझना पड़ता है। इसलिए उनको यह बात याद आई, लेकिन क्या सभी जाटों के लिए आई.ए.एस. तथा आई.पी.एस. बनना संभव है?
दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर का जाट भवन आवश्यक क्यों ?