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दिल्ली है बहादुर जाटों की – बाकी कहानियाँ भाटों की

दिल्ली है बहादुर जाटों की


दिल्ली है बहादुर जाटों की, बाकी कहानियाँ भाटों की

इन चिरागों को जलना है, हवा कैसी हो।
फिर सूरज को निकलना है, घटा जैसी हो।

कहावत है “जिसने नहीं देखी दिल्ली वो कुत्ता न बिल्ली” गाँव वाले जाट तो आज तक दिल्ली को जाटों की बहू कहते आये हैं।

अधिकतर इतिहासकार लिखते हैं कि दिल्ली तोमर राजपूतों ने बसाई, लेकिन तोमर इसका नाम दिल्ली क्यों रखते? जरूर तोमर नगर या तोमरवास रखते। यह भी एक कहावत प्रचलित है

कि नौ दिल्ली, दस बादली, किला वजीराबाद अर्थात् नौ बार दिल्ली तथा दश बार बादली उजड़कर बस चुके हैं और इसी प्रकार वजीराबाद का किला उजड़ा था।

अवश्य तोमर राजाओं ने दिल्ली पर शासन किया, लेकिन तोमर इसका नाम दिल्ली क्यों रखते? वास्तव में ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध है कि ये तोमर राजा भी जाट थे।

इसका संक्षेप में इतिहास इस प्रकार है कि दिल्ली के अंतिम तोमर (तंवर) राजा अनंगपाल थे। इनसे 20 पीढ़ी पहले भी एक अनंगपाल तोमर राजा हुए थे।

दिल्ली की कुतुब मीनार जाटों की यादगार

दिल्ली है बहादुर जाटों की

दिल्ली है बहादुर जाटों की

इन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र (दयोहते) पृथ्वीराज को अपनी सुविधा के लिए अपने पास रख लिया और एक दिन गंगास्नान के लिए चले गए।जब वापिस लौट कर आए तो पृथ्वीराज ने राज देने से मना कर दिया। इस पर तंवर और चौहान जाटों में आपस में युद्ध हुआ जिसमें चौहान जाट विजयी रहे।

राजस्थान के चौहान जाट पहले से ही अपने को राजपूत (राजा के पुत्र) कहलाने लगे थे। इस प्रकार दिल्ली पर बाद में राजपूत चौहानों का राज कहलाया।लेकिन ऐसी कौन सी विपदा आई कि दिल्ली में जाट तो रह गए लेकिन राजपूत गायब हो गए? इससे यह प्रमाणित है

कि जाट और राजपूत एक ही थे। यह सब काल्पनिक बृहत्यज्ञ का ही परिणाम है। इस प्रकार पृथ्वीराज बड़े धोखेबाज भी रहे।बाद में इन्हीं तंवरों में से एक सहारा नाम का प्रसिद्ध व्यक्ति हुआ जिससे जाटों का सहरावत गोत्र प्रचलित हुआ जिनके दिल्ली में आज 12 गांव हैं।

याद रहे इतिहास से प्रमाणित है कि कुंतल, तंवर, सहरावत व डागर आदि जाट पांडवों के वंशज हैं। (पुस्तक – रावतों का इतिहास)राजा अनंगपाल के सगे परिवार के लोग फिर मथुरा क्षेत्र में चले गए। इन्हीं लोगों ने सौख क्षेत्र की खुटेल पट्टी में महाराजा अनंगपाल की बड़ी मूर्ति स्थापित करवाई जो आज भी देखी जा सकती है।

उसी समय इनके कुछ लोगों ने पलवल के पूर्व दक्षिण में (12 किलोमीटर) दिघेट गांव बसाया। आज इस गांव की आबादी 12000 के लगभग है। इन्हीं के पास बाद में चौहान जाटों ने मित्रोल और नौरंगाबाद गांव बसाए जिन्हें आज भी जाट कहा जाता है राजपूत नहीं।

जाटों के कुछ जौहर

दिल्ली है बहादुर जाटों की – बाकी कहानियाँ भाटों की

दिल्ली का नाम तो दिलेराम उर्फ दिल्लू से बिगड़कर दिल्ली पड़ा। दिलेराम विक्रमादित्य के शासन काल में लगभग 21 वर्षों तक लगातार दिल्ली के राज्यपाल रहे, उन्होंने इसका प्रशासन इतना सुचारु रूप से चलाया कि जनता उनके नाम की ही कायल हो गई।

इसी कारण विक्रमादित्य ने खुश होकर इस दिलेराम जाट को ‘दिलराज’ की उपाधि से नवाजा था। इनका गोत्र भी ढिल्लों था। याद रहे कभी भी कोई ढिल्लों गोत्री जाट मुस्लिम धर्मी नहीं बना। अधिकतर सिख बने, शेष हिन्दू जाट हैं। हरयाणा में भिवानी जिले के कई गांवों में इस गोत्र के हिन्दू जाट हैं।

इसी दिलेराज को लोग इन्हें प्यार और इज्जत से दिल्लू कहने लगे, जिस कारण यह दिल्लू की दिल्ली कहलाई। यह तथ्यों से परिपूर्ण इतिहास सर्व खाप पंचायत के रिकार्ड में भी दर्ज है।

इसी दिल्ली पर जीवन जाट के वंशजों का राज 445 वर्ष रहा है। स्वामी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थप्रकाश में जीवन के 16 वंशजों (पीढ़ी) का राज 445 वर्ष 4 महीने 3 दिन लिखा है।

पुस्तक – रावतों का इतिहास, सर्वखाप का राष्ट्रीय पराक्रम आदि-आदि

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कुतुब मीनार

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