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जाट गंगा का इतिहास

जाट गंगा का इतिहास

जाट गंगा

कैप्टन दलीप सिंह अहलावत ने लिखा है…. भैरों घाटी जो कि गंगोत्री से 6 मील नीचे को है, यहां पर ऊपर पहाड़ों से भागीरथी गंगा उत्तर-पूर्व की ओर से और नीलगंगा (जाट गंगा) उत्तर पश्चिम की ओर से आकर दोनों मिलती हैं।

इन दोनों के मिलाप के बीच के शुष्क स्थान को ही भैरों घाटी कहते हैं। जाटगंगा के दाहिने किनारे को ‘लंका’ कहते हैं। इस जाट गंगा का पानी इतना शुद्ध है कि इसमें रेत का कोई अणु नहीं है। भागीरथी का पानी मिट्टी वाला है।

भागीरथी

दोनों के मिलाप के बाद भी दोनों के पानी बहुत दूर तक अलग-अलग दिखाई देते हैं। जाट गंगा का पानी साफ व नीला है, इसलिए इसको नीलगंगा भी कहते हैं।

महात्माओं और साधुओं का कहना है कि भागीरथी गंगा तो सम्राट् भगीरथ ने खोदकर निकाली थी और हरिद्वार के महाराजा वीरभद्र के नेतृत्व में इस नीलगंगा को जाट कस्सियों से खोदकर लाये थे इसलिए इसका नाम जाट गंगा है।

इसके उत्तरी भाग पर जाट रहते हैं। इस कारण भी इसको जाटगंगा कहते हैं। इस जाट बस्ती को, चीन के युद्ध के समय, भारत सरकार ने, वहां से उठाकर सेना डाल दी और जाटों को, हरसल गांव के पास, भूमि के बदले भूमि देकर आबाद किया।

जाटों ने यहां गंगा के किनारे अपना गांव बसाया जिसका नाम बघौरी रखा। यह गांव गंगा के किनारे-किनारे लगभग 300 मीटर तक बसा हुआ है जिसमें लगभग 250 घर हैं।

लोग बिल्कुल आर्य नस्ल के हैं। स्त्री-पुरुष और बच्चे बहुत सुन्दर हैं। ये लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। इनके गांव में बौद्ध मठ है। ये लोग भेड़ बकरियां पालते हैं। और तिब्बत से ऊन का व्यापार करते हैं। ये अपने घरों में ऊनी कपड़े बुनते हैं।

नोट – हरसल गांव दोनों गंगाओं के मिलाप से लगभग 7 मील नीचे को गंगा के दाहिने किनारे पर है। बघौरी गांव हरसल से लगा हुआ है।

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जाट गंगा का इतिहास

एक जाट अपनी जाटनी को गंगा स्नान के वास्ते हरद्वार ले गया। स्नान के बाद वह मस्ती से गंगा की बालू पर टहल रहा था कि अचानक एक नागपुरी पंडा आ गया और उसकी मस्ती में व्यवधान डालते हुए बोला कि ‘जजमान एक बछिया तो पुजवाय देव। यह बहुत पुनीत अवसर है तू अपनी जाटनी के साथ सीधे बैकुण्ठ जाएगा’।

जाट को उसकी यह छेड़छाड़ बुरी लगी पर क्या करता? पर जाट बुद्घिमान था पलट कर कहा कि तू कैसा पुरोहित है तेरे पास न चंदन न ठाकुर जी न गंगा जल कैसे पूजा करवाएगा!

जाट गंगा का इतिहास
जाट गंगा का इतिहास

पंडत ने तत्काल जमीन पर पड़ी बालू उठाई और जाट-जाटनी के माथे पर टीका करते हुए बोला-

गंगा जी का घाट है, अवसर बड़ा महान।
गंगा जी की बालुका तू चंदन कर के मान॥

जाट ने भी अपनी हाजिर जवाबी दिखाई और जल में पड़ी एक मेढकी उठाई और पंडत के हाथ पर रख दी तथा कहा-

गंगा जी का घाट है अवसर बड़ा महान।
गंगाजी की मेढकी तू गऊ कर के मान॥

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मुझे नहीं लगता कि इस पोस्ट का भावार्थ समझाना पड़ेगा। अभी कुछ नागपुरी संतरे आते होंगे भरभण्ड करने। ये बेचारे स्वयं तो अनपढ़, मूर्ख और जाहिल हैं पर दखल हर जगह करेंगे।

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