फौगाट जाट गोत्र का इतिहास
इस फौगाट जाट गोत्र के भाट ने इस वंश का प्रचलन सम्राट् पृथ्वीराज चौहान के लघुपुत्र बिल्हण से किया है। यह बात असत्य तथा प्रमाणशून्य है।
पहली बात तो यह है कि जाटों से राजपूत तो बने किन्तु किसी भी राजपूत से कोई जाट गोत्र प्रचलित नहीं हुआ। दूसरी बात, कोई भी जाट गोत्र एक मनुष्य से प्रचलित नहीं हुआ।
संघ रूप से एक व्यक्ति या स्थान की प्रसिद्धि के नाम से जाट गोत्रों का प्रचलन हुआ। एक वीर जाट फौगाट गोत्र को चौहान राजपूतों के वंशज कहना गलत बात है (पूरी जानकारी के लिए देखो, जाटों की उत्पत्ति प्रकरण)।
फौगाट जाटों की उत्पत्ति के विषय में सत्य बात यह है –
अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थों के पढने से पता लगा है कि फौर एक जाट गोत्र है जिसका अच्छा संगठन था। उसका नाम फौरगाथ था। यूनानी भाषा में एवं मध्य एशिया में जाट को गाथ बोलते हैं।
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फौगाट जाट गोत्र का इतिहास – History of Phogat Jat Gotra
फौर जाटों का समूह (संघ) फौरगाथ कहलाया। कुछ समय के पश्चात् भाषा भेद से इसका नाम फौगाट पड़ गया। इस गाथ शब्द से यह भी अनुमान लगता है
कि फौरगाथ सम्भवतः यूनान एवं मध्य एशिया में रहे और उनका एक दल भारत में आकर दादरी क्षेत्र में आबाद हो गया जो आज फौगाट जाट कहलाते हैं।
कुण्डू जाटों ने दादरी पर आक्रमण करके सांगवान व श्योराणों के 150 गांव जीत लिये और अपना राज्य स्थापित किया।
सम्राट् अकबर के शासनकाल में ये सब गांव मुगल साम्राज्य में मिला लिये गये। एक बार महाराजा जसवन्तसिंह जोधपुर नरेश अपनी सेना सहित देहली जाते हुए दादरी ठहरे।
यहां पर दादरी के झाडू फौगाट जाट ने उनका बड़ा अतिथि-सत्कार किया। इससे प्रसन्न होकर राजा जसवन्तसिंह ने सम्राट् औरंगजेब से कहकर फौगाट जाटों की सहानुभूति लेने के लिए दादरी के अधीन 12 गांव कर दिये और झाडू फौगाट जाट को दादरी का सरदार बना दिया।
इस तरह से फौगाटों का दादरी पर राज्य स्थापित हो गया। उसी समय से यह कहावत प्रसिद्ध हुई कि 12 गांव फौगाटों के झाडू सरदार। कई इतिहास पुस्तकों में इस झाडू को झण्डू फौगाट भी लिखा है।
फौगाट जाट गोत्र का इतिहास – History of Phogat Jat Gotra
कुछ समय के लिए झज्जर के नवाब ने दादरी पर अधिकार कर लिया था। सन् 1857 में महाराजा सरूपसिंह जींद नरेश का विवाह दादरी के फौगाट जाट सरदार की पुत्री से हुआ।
सन् 1857 की प्रथम स्वतन्त्रता क्रान्ति में महाराजा स्वरूपसिंह ने अंग्रेजों की सहायता की थी। इस क्रान्ति के शान्त होने पर अंग्रेजों ने नवाब से दादरी का इलाका जब्त करके जींद महाराजा को दे दिया।
परन्तु महारानी जींद ने अपने पिता द्वारा गोद लिए हुए पुत्र चौ० दरयावसिंह को 7 गांव जागीर में महाराजा से दिलवा दिए।
किन्तु इनके एक पुत्री भी थी जो मुरसान (यू० पी०) विवाही गई। इस आधार पर ये गांव मुरसान रियासत के अधिकार में आ गए।
भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर भारत में सब रियासतें सरकार के अधिकार में कर ली गईं। फौगाट जाटों की खाप में अब 12 गांव हैं जिसका प्रधान गांव दादरी है। अब दादरी जिला में है।
जाटों की एक प्रमुख गोत्र का नाम फोगाट है जो संभवतः नागवंशियों की संतान हैं जो फोग को अपना प्रतीक चिन्ह मानते थे। फोगाट जाट हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं।
जिला दादरी में फौगाट जाटों के गांव –
- दादरी
- मौड़ी
- मकड़ाना
- ढाणी
- टिकाण
- रावळधी
- खातीवास
- फौगाट गांव
- समसपुर
- लोहरवाड़ा
- कमोद
- मकड़ानी
- कपूरी
- झींझर (1/2).
जिला हिसार में गांव हरिता और जिला रोहतक में भालौठ, रिठाल (1/2) समचाना, नयागाम
जि० सोनीपत में किराड़ी, किलाना आदि फौगाटों के गांव हैं। चरखी दादरी से ही गये हुए जि० बुलन्दशहर में फौगाट जाटों के धमैड़ा, जसनावली, कुदैना नामक तीन गांव हैं।
फौगाट जाटों के प्रसिद्ध सन्त जमनादास भालौठ गांव के निवासी थे। आपने 40 वर्ष केवल गोदुग्ध पर जीवन बिताकर जनता को अपने सदुपदेशों से लाभ पहुंचाया। महात्मा जमनादास का स्वर्गवास वि० संवत् 1953 (सन् 1896) में हो गया।
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