सर छोटूराम की नीली कोठी रोहतक
यदि शिरोमणी सेठ चौधरी छाजूराम लाम्बा ना होते चौधरी छोटूराम भी ना होते | चौधरी छोटूराम उन्हे धर्मपिता कहकर पुकारते थे |
चौधरी छाजूराम ने चौ छोटूराम को रहने के लिए और सुचारु रूप से अपना काम करने के लिए एक विशाल कोठी रोहतक मे 30 हजार की लागत से बनवाकर दी , जो आगे चल कर नीली कोठी के नाम से प्रसिद्ध हुई | यह कोठी आज भी अपने उसी स्वरूप मे रोहतक के बीचों बीच खड़ी हैं |
सर छोटूराम की नीली कोठी रोहतक
पंडित सेढुमल शर्मा , जो चौ छाजूराम के आजीवन मुंशी रहे , के हवाले से जानने को मिलता हैं कि इस कोठी कि तीस हजार रुपए कीमत चौ छोटूराम ने लौटानी थी , लेकिन वे जीवन भर नहीं लौटा पाए |
जब एक बार पंडित सेढुमल शर्मा किसी कार्यवश रोहतक मे चौ छोटूराम से मिलने गए , तो उस समय वे पंजाब के मंत्री थे | लेकिन उन्होने मंत्री जी को लस्सी व प्याज के साथ रोटी खाते पाया |
उस वक़्त उन्होने पंडित जी से कहा , ” कैसे करूँ , हाथ बहुत तंग हैं | बाबू जी के पैसे नहीं दे पाया | | मुझे इस बात की बहुत शर्म हैं | बाबू जी के मुझ पर बहुत एहसान हैं | “
तब पंडित सेढुमल ने कलकत्ता पहुँचने पर चौ छाजूराम को बताया था , ” लोग न जाने क्या-क्या कहते हैं | उनका मानना हैं कि मंत्री बनने के बाद व्यक्ति बहुत अमीर हो जाता हैं | लेकिन मैं तो एक मंत्री को प्याज व लस्सी के साथ रोटी खाते देख कर आया हूँ |
मैंने वहाँ सब पता लगाया कि मंत्री जी का पैसा कहा जाता हैं ? पता चला कि वे ईमानदारी से केवल अपना वेतन लेते हैं और उसका भी ज़्यादातर हिस्सा जरूरतमंदों पर खर्च कर देते हैं |
आप सुनकर हैरान होंगे , उनका हाथ इन दिनों तंग चल रहा हैं | कह रहे थे , बाबू जी के पैसे नहीं दे पा रहा , इसलिए शर्मिंदा हूँ | “
सर छोटूराम की नीली कोठी रोहतक – ईमानदारी की मिसाल
यह सब जानकार चौ छाजूराम भावुक हो गए | उन्होने कहा , ” मुझे उस पर गर्व हैं | वह खरा हीरा हैं | ईमानदार लोग ऐसे ही तो हुआ करते हैं | उस पर ऐसी हजार कोठिया कुर्बान |
मैंने समझाया था उसको कि पिता-पुत्र मे हिसाब-किताब नहीं हुआ करते | वह कोठी मैंने बनवाई ही उसके लिए हैं | उससे पैसे मांग ही कौन रहा हैं ? वह हैं कि बेकार मे चिंता किए जा रहा हैं |
उन दिनों यहीं कोठी शक्ति का केंद्र बन चुकी थी | एक समय आया था , जब रोहतक की यह नीली कोठी को दिल्ली के बिड़ला भवन , इलाहाबाद के आनंद भवन , तथा अहमदाबाद के शाबरमती आश्रम के समान महत्व प्राप्त हो चुका था |
कहते हैं की चौ छाजूराम ने चौ छोटूराम के लिए सन 1939 मे लाहौर मे भी 70 हजार की लागत से एक कोठी बनवाई थी , जिसे शक्ति भवन नाम से जाना जाता था |
बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान
सर छोटूराम की नीली कोठी रोहतक