बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान
हे मेरे जाट भाई, मेरी दो बात मान ले – पहली,
बोलना ले सीख – दूजी, दुश्मन को ले पहचान ।
यह बात दीनबन्धु चौधरी सर छोटूराम ने अपने जीवन में बार-बार दोहराई । ‘बोलना ले सीख’ उनका अभिप्राय था कि जाट कौम अपने अधिकार के लिए बोलना शुरू करे, गूंगा बनकर रहने से उसकी किसी समस्या का हल नहीं है। यदि हम अपने अधिकारों की मांग नहीं करते हैं तो आने वाली हमारी पीढ़ियां हमें कायर कहेंगी ।
विकास की दौड़ में गूंगी कोम हमेशा पिछड़ जाती हैं और दूसरे लोग उनके अधिकारों का जमकर अतिक्रमण करते हैं । इसलिए उनका कहना था कि हमें जहां भी मंच मिले अपनी आवाज को बुलन्द करके अपने अधिकारों के लिए हुंकार भरी होगी, गर्जना करके सत्ता और शोषक को बतला दें कि हम अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं ।
यदि हमारे अधिकारों का अतिक्रमण हुआ तो हम चुप रहने वाले नहीं हैं और हम अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना जानते हैं । संतोषी बने रहना विकास की दौड़ में सबसे बड़ी अड़चन है ।
इसलिए उन्होंने जाट कोम को संतोषी भाव को त्यागने का आह्वान किया था । उन्होंने अपनी इस नीति को बार-बार जाट गजट में दोहराया था ।
दूसरी बात “अपने दुश्मन को ले पहचान” जब हम बोलना सीख गये तो साथ-साथ अपने दुश्मन की पहचान भी करनी होगी जो हमारे हितों और अधिकारों का हनन कर रहा है ।
हमें जानना होगा कि कौन वर्ग और जाति हमारा शोषण कर रही है । उनका यह भी कहना था कि दुश्मनों को भी जानना पड़ेगा जो धर्म के नाम पर हमारा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण करके हमारी कौम में फूट डालना चाहते हैं।
इसलिए उनका कहना था कि दुश्मन की पहचान करके ही उनसे निपटा जा सकेगा । ये दुश्मन हमारे चारों तरफ नजदीक रहकर हमारे हितों पर प्रहार करते रहते हैं, लेकिन हम बेखबर बने रहते हैं । इसलिए हमें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हमें बोलना सीखकर दुश्मन की पहचान करनी होगी ।
चौधरी छोटूराम अपने हर भाषण से पहले यह शेर अवश्य कहा करते थे – खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है ।
Learn to speak and recognize the enemy – बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान
चौधरी छोटूराम हमारे नेता ही नहीं थे बल्कि वे स्वयं एक विषय और संस्था थे और इस विषय के बारे में हम जितना भी अध्ययन करते जायेंगे हम उतना ही इस विषय के उजियारे छोर की तरफ बढ़ते चले जायेंगे जो हमें अंधकार से मुक्त करता है ।
चौधरी छोटूराम रोहतक जिले की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे । जब सन् 1920 में कर्मचन्द गांधी ने अंग्रेजों के विरोध में अपना पहला आंदोलन असहयोग की घोषणा की तो उन्होंने तुरन्त कांग्रेस छोड़ दी ।
क्योंकि उन्होंने अपनी दूरदर्शिता से यह भांप लिया था कि जिस जाट किसान को वे कई सालों से दुश्मन की चुंगल से निकालने की योजना बना रहे हैं इस आन्दोलन के कारण वे सदा-सदा के लिए उनके चंगुल में फंस जायेंगे ।
क्योंकि वे जानते थे कि जब जाट किसान जमीन की मालगुजारी देना बन्द कर देगा तो ब्रिटिश सरकार उनकी जमीन को नीलाम कर देगी और उसे व्यापारी वर्ग खरीद लेगा ।
इसका उदाहरण उनके सामने 1857 के आन्दोलन का था जिसमें अंग्रेजों ने सैकड़ों जाटों गांवों को जमीन को नीलाम कर दिया था जो कभी वापिस नहीं मिली ।
देश के आजाद होने के बाद आज भी ऐसे उदाहरण हैं जिसमें सभी प्रयासों के बाद न तो जाटों को जमीन मिली और ना ही मुआवजा । जिसमें हरियाणा का रोहणात और दिल्ली का बाकरगढ़ आदि गांवों के उदाहरण दिये जा सकते हैं ।
दूसरा, चौधरी साहब यह अच्छी तरह समझ चुके थे कि गांधी के आन्दोलन में केवल शोषण जातियां उदाहरण के लिए ब्राह्मण, बनिया और कायस्थ इकट्ठे हो गये थे जो जाट कौम के पुराने शोषक थे ।
इसलिए चौधरी छोटूराम ने अपने और अपनी कौम को इस आन्दोलन से दूर रखकर इसके विरोध में संयुक्त पंजाब में जमींदारा पार्टी का गठन किया और सही समय पर कौम के दुश्मन की पहचान की ।
चौ० छोटूराम ने अपने पूरे जीवन में अपनी कौम के फायदे का कभी कोई एक अवसर भी नहीं गंवाया ।
जब सन् 1928 में साईमन कमीशन भारत आया तो उसकी स्वागत कमेटी के अध्यक्ष बने जबकि कांग्रेस उनका विरोध कर रही थी । वे भली-भांति जानते थे साइमन कमीशन की रिपोर्ट से जाट कौम को दीर्घकालीन फायदे होने हैं और उनकी प्रगति में कोई बाधा नहीं आयेगी ।
इसी बात पर दुश्मनों के समाचार पत्रों ने चौ० छोटूराम को अंग्रेजों का पिट्ठू लिखना शुरू किया । लेकिन ये दुश्मन कैसे भूल गये थे कि इंग्लैण्ड का राजा जार्ज पंचम सन् 1911 में भारत आया तो उसकी स्वागत कमेटी के संयोजक पण्डित नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ही थे और जार्ज पंचम के स्वागत में आज का राष्ट्रीय गान जन-मन-गण रचा गया और गाया गया और इसके साथ-साथ मोतीलाल ने नारा लगाया लॉन्ग लिव अनार्की जिसका अर्थ था कि ब्रिटिश साम्राज्य हमेशा कायम रहे ।
याद रहे रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बहनोई इंग्लैण्ड में रहते थे । उन्होंने ही जार्ज के स्वागत में एक गान लिखने के लिए टैगोर को कहा था और बाद में रविन्द्रनाथ टैगोर को गीतान्जलि के लिए नोबल पुरस्कार मिला । उसका कारण परोक्ष रूप से यही गाना था ।
इसी गान को राष्ट्रीय गान बनाने के विरोध में संविधान सभा के 319 सदस्यों ने कड़ा विरोध किया लेकिन पण्डित नेहरू ने उनकी एक नहीं सुनी तो फिर पण्डित मोतीलाल और पण्डित जवाहर लाल नेहरू को अंग्रेजों का पिट्ठू क्यों नहीं बतलाया गया ?
बाद में पण्डित टैगोर ने लाला कर्मचन्द गांधी को महात्मा की उपाधि दे दी तो लाला गांधी ने पण्डित जी को बदले में गुरुदेव की उपाधि देकर अपनी गुरु दक्षिणा चुकाई ।
इसी प्रकार जब लाला गांधी ने पंडित नेहरू को देश का प्रधानमन्त्री बनाया तो नेहरू ने गांधी को पूरे राष्ट्र का ही पिता बना दिया।
वैसे इंग्लैण्ड के रक्षामन्त्री मि० क्रिप्स ने सन् 1948 में इंग्लैण्ड में ब्यान दिया हमने अपने व्यापार की सुरक्षा के लिए भारत पर 200 वर्ष तक राज किया और उसी व्यापार की सुरक्षा के हित में हम भारत की सत्ता अपने एजेंटों को दे आये ।
इससे स्पष्ट है कि अंग्रेजों के पिट्ठू और एजेन्ट कौन थे ।
Learn to speak and recognize the enemy – बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान
Mera Ram Dinbandhu Sir Chhoturam