Mera Dewta Mera Ram – Dinbandhu sir Chhoturam
चौ. छोटूराम ने किसान और मजदूर को अपना हक दिलवाने के लिए संयुक्त पंजाब में संघर्ष का रास्ता चुना और इस संघर्ष को अपने मुकाम तक पहुंचाने के लिए हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई को एक मंच पर खड़ा कर दिया।
उस समय संयुक्त पंजाब में 57 प्रतिशत मुसलमान, 28 प्रतिशत हिन्दू, 13 प्रतिशत सिक्ख और 2 प्रतिशत ईसाई धर्मी थे, लेकिन वे सभी किसानों व मजदूरों के एकछत्र नेता थे और ये बात उन्होंने सन् 1936-37 के चुनाव में सिद्ध कर दी थी, जब जम़ीदारा पार्टी के 120, कांग्रेस के 16 तथा मुस्लिम लीग (जिन्ना की पार्टी) के दो सदस्य ही चुनाव जीत पाए, जिनमें से बाद में एक जमीदारा पार्टी में मिल गया।
चौधरी साहब जम़ीदारा पार्टी (यूनियनिष्ट) के सर्वेसर्वा थे। लेकिन उन्होंने कभी भी संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री (प्रीमियर) के पद का लोभ नहीं किया और हमेशा मुसलमान जाटों को इस पद पर सुशोभित किया, जो एकता के लिए आवश्यक था।
जब सन् 1944 में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना पश्चिमी पंजाब में मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण वहाँ पाकिस्तान बनाने की संभावनायें तलाशने गये और उन्होंने लाहौर में भाषण दिया कि
“पंजाब के मुसलमानो, हमें अपना अलग से देश बनाना है जहाँ हम खुद मालिक होंगे। छोटूराम हिन्दू है वह हमारा कभी भी नहीं हो सकता, वह तो नाम का भी छोटा है, कद का भी छोटा है और धर्म का भी छोटा है, उसका साथ देना हमें शोभा नहीं देता।”
इस पर चौ॰ छोटूराम साहब को रोहतक से तुरत-फुरत जिन्ना साहब का जवाब देने के लिए लाहौर बुलाया और उन्होंने भाषण दिया –
“जिन्ना साहब अपने को मुसलमानों का नेता कहते हैं, मुस्लिमधर्मी होने का दावा करते हैं, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति में रंगे हैं, अंग्रेजी शराब पीते हैं, सूअर का मांस खाते हैं, अपने को पढ़ा लिखा कहते हैं, लेकिन उनको तो इतना भी ज्ञान नहीं कि धर्म बदलने से खून नहीं बदलता। हम जाट हैं, हम हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाई, बौद्ध और बिश्नोई सभी हैं।”
इस पर पंजाब की मुस्लिम जनता जिन्ना साहब के ऐसे पीछे पड़ी कि जिन्ना साहब रातों-रात लाहौर छोड़ गये और जब तक चौधरी साहब जीवित रहे (9 जनवरी 1945 तक), कभी लौटकर पंजाब व लाहौर नहीं आये।
इसी प्रकार सन् 1944 में काश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने सर छोटूराम के निर्देश पर जिन्ना साहब को सोपुर कस्बे में जूतों की माला डलवा दी थी जिसके बाद जिन्ना साहब कभी भी अपने जीते जी कश्मीर नहीं आये और बम्बई में जाकर बयान दिया कि कश्मीर तो एक दिन सेब की तरह टूटकर उनकी गोद में गिर जायेगा। अब्दुल्ला खानदान भी हमेशा ही पाकिस्तान विरोधी रहा है।
Mera Dewta Mera Ram – Dinbandhu sir Chhoturam
दीन और गरीबों की जब सुनता कोई पुकार न था,
खेती करने वालों को जब जीने का अधिकार न था॥
चौधरी साहब की पहली शिक्षा थी कि हमें धार्मिक तौर पर कभी भी कट्टर व रूढ़िवादी नहीं होना चहिये। उस समय संयुक्त पंजाब में 55 हजार सूदखोर थे, जिनमें से लगभग 50 हजार सूदखोर पाकिस्तान के पंजाब में थे और यही हिन्दू पंजाबी वहाँ अधिकतर व्यापारी भी थे। ये सभी लगभग सिंधी, अरोड़ा-खत्री हिन्दू पंजाबी थे, क्योंकि इस्लाम धर्म में सूद (ब्याज) लेना पाप माना गया है।
उस समय पंजाब की मालगुजारी केवल 3 करोड़ थी। लेकिन सूदखोर प्रतिवर्ष 30 करोड़ रुपये ब्याज ले रहे थे। अर्थात् पंजाब सरकार से 10 गुना अधिक। उस समय पंजाब में 90 प्रतिशत किसान थे जिसमें 50 प्रतिशत कर्जदार थे।
जब गरीब किसान व मजदूर कर्जा वापिस नहीं कर पाता था तो उनकी ज़मीन व पशुओं तक ये सूदखोर रहन रख लेते थे। चौ॰ छोटूराम की लड़ाई किसी जाति से नहीं थी, इन्हीं सूदखोरों से थी, जिसमें कुछ गिने-चुने दूसरी जाति के लोग भी थे।
ये सूदखोर लगभग 100 सालों से गरीब जनता का शोषण कर रहे थे। उसी समय कानी-डांडी वाले 96 प्रतिशत तो खोटे बाट वाले व्यापारी 49 प्रतिशत थे। किसानों का भयंकर शोषण था।
हिन्दू पंजाबियों के अखबार चौ. साहब के खिलाफ झूठा और निराधार प्रचार कर रहे थे कि “चौधरी साहब कहते हैं कि वे बनियों की ताखड़ी खूंटी पर टंगवा देंगे।” इस प्रचार का उद्देश्य था कि अग्रवाल बनियों को जाटों के विरोध में खड़ा कर देना।
जबकि सच्चाई यह थी कि चौधरी साहब का आंदोलन सूदखोरों के खिलाफ था, चाहे वो किसी भी जाति के हों। उसके बाद यह प्रचार भी किया गया कि चौधरी साहब ने अग्रवाल बनियों को बाहर के प्रदेशों में भगा दिया।
जबकि सच्चाई यह है थी कि अग्रवालों का निवास अग्रोहा को मोहम्मद गौरी ने सन् 1296 में जला दिया था जिस कारण अग्रवाल समाज यह स्थान छोड़कर देश में जगह-जगह चले गये थे और यह अभी अग्रोहा की हाल की खुदाई से प्रमाणित हो चुका है कि अग्रवालों ने इस स्थान को जलाया जाने के कारण ही छोडा था। (पुस्तक – अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवाल)।
संयुक्त पंजाब में महाराजा रणजीतसिंह के शासन के बाद से ही इन सूदखोरों ने किसान और गरीब मजदूर का जीना हराम कर दिया था। क्योंकि अंग्रेजी सरकार को ऐसी लूट पर कोई एतराज नहीं था क्योंकि वे स्वयं भी पूरे भारत को लूट रहे थे।
एक बार तो लार्ड क्लाइव 8 लाख पाउण्ड चांदी के सिक्के जहाज में डालकर ले गया जिसे इंग्लैण्ड के 12 बैंकों में जमा करवाया गया। इस पर अमर शहीद भगतसिंह ने भी अपनी चिंतन धारा में स्पष्ट किया था कि “उनको ऐसी आजादी चाहिए जिसमें समस्त भारत के मजदूरों व किसानों का एक पूर्ण स्वतंत्र गणराज्य हो तथा इसके लिए किसान और मजदूर संगठित हों।”
इस प्रकार हम देखते हैं कि अमर शहीद भगतसिंह व चौ० छोटूराम की विचारधारा तथा उद्देश्य समान था चाहे उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए रास्ते अलग क्यों ना हों। चौ० छोटूराम की लड़ाई मण्डी और पाखण्डी के विरुद्ध थी न कि किसी विशेष जाति के विरुद्ध।
राजा कुरू संसार के पहले किसान हुए तो चौ० छोटूराम भारत के पहले कृषि दार्शनिक।
चौ० छोटूराम के जीवन व कार्यों पर शोध होना अनिवार्य है, जिसके लिए किसी विश्वविद्यालय में चौ० साहब की अलग से कुर्सी लगाई जाए, इसके लिए मैंने (लेखक ने) 23 दिसम्बर 2007 को भिवानी में केंद्रीय मंत्री चौ० वीरेन्द्र सिंह, जो दीनबंधु के नाती है, को इस बारे में मांग पत्र भी सौंपा था। लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया।
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