Sir Chhotu Ram Vs Muhammad Ali Jinnah
मार्च 28, सन् 1944 में मि० जिन्ना को कान पकड़कर पंजाब से बाहर निकालना –
सन् 1944 में भारत की राजनीति में मुस्लिम लीग का प्रभाव बहुत प्रबल हो गया था। मुसलमान जाति उसके झण्डे के नीचे संगठित होकर जिन्ना को अपना नेता मान चुकी थी, परन्तु जिन्ना इस बात से बहुत चिन्तित थे कि मुसलमानों के गढ़ पंजाब में चौ० छोटूराम के कारण उनकी दाल नहीं गल पा रही है। अतः वहां की यूनियनिस्ट सरकार को किसी भी प्रकार तोड़ने के लिए वे जी-तोड़ कौशिश कर रहे थे।
जिन्ना लाहौर पहुंचे और पंजाब के प्रधानमन्त्री श्री खिजर हयात खां पर दबाव डाला परन्तु चौधरी छोटूराम के निर्देश पर श्री खिज़र हयात खां ने मि० जिन्ना को 24 घण्टे के भीतर पंजाब से बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया। वह निराश होकर आदेश अनुसार पंजाब से बाहर निकल गया।
उन दिनों जब राष्ट्र के कांग्रेसी चोटी के नेता तथा अन्य सभी नेता जिन्ना के सामने किंकर्त्तव्यविमूढ़ होकर हथियार डाल रहे थे और अंग्रेज शासक जिन्ना की पीठ ठोक रहे थे तो केवल चौ० छोटूराम का ही साहस था कि उसके विरुद्ध ऐसा कठोर पग उठाया। अहंकार की मूर्ति जिन्ना को कितनी खीझ हुई होगी, इसकी कल्पना सहज ही की सकती है।
बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान
जिन्ना को पंजाब से बाहर निकाले जाने पर पंजाब के मुसलमानों में कोई रोष पैदा नहीं हुआ और न ही उन्होंने इसका विरोध किया। इसका कारण साफ है कि पंजाब के मुसलमानों के दिल चौ० छोटूराम ने जीत रखे थे जो इनको छोटा राम कहा करते थे। जिन्ना को पंजाब से निकालने के बाद तो मुसलमानों ने चौ० छोटूराम को रहबरे आजम का खिताब दे दिया।
मि० जिन्ना को पंजाब से निकालने पर सर छोटूराम की प्रसिद्धि पूरे भारत में हो गई और वे उच्चकोटि के राष्ट्रीय नेताओं की श्रेणी में आ गए। मि० जिन्ना की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गई, परन्तु कांग्रेस के नेताओं ने उसे धूल से निकालकर फिर ऊपर चढ़ा दिया। इसी तरह हिन्दू महासभा अध्यक्ष सावरकर की अलग हिन्दू राष्ट्र की मांग भी जिन्ना को मजबूत करती चली गयी।
महात्मा गांधी ने उसके पास जाकर उसकी मांगों के विषय में पूछा तथा राजाजी फार्मूले के अनुसार पाकिस्तान उसे बड़े थाल में रखकर भेंट कर दिया। यदि कांग्रेस आजादी लेने में इतनी जल्दी न करती या कुछ दिन के लिए ठहरी रहती और सर छोटूराम की बात को मान लेती तो पाकिस्तान बनने का प्रश्न ही नहीं होता और देश की अखण्डता कायम रहती रहती।
पाठक समझ गये होंगे कि सर छोटूराम की कितनी महान् देशभक्ति थी कि वे कभी भी पाकिस्तान नहीं बनने देते जिससे भारत की अखण्डता कायम रहती। पाकिस्तान तो कांग्रेस के नेताओं ने बनवा दिया। बात बिल्कुल स्पष्ट है कि देश के टुकड़े न होने देने में सर चौ० छोटूराम की देशभक्ति कांग्रेस व संघ की तुलना में बहुत महान् है।
Sir Chhotu Ram Vs Muhammad Ali Jinnah
चौ. छोटूराम ने किसान और मजदूर को अपना हक दिलवाने के लिए संयुक्त पंजाब में संघर्ष का रास्ता चुना और इस संघर्ष को अपने मुकाम तक पहुंचाने के लिए हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई को एक मंच पर खड़ा कर दिया।
उस समय संयुक्त पंजाब में 57 प्रतिशत मुसलमान, 28 प्रतिशत हिन्दू, 13 प्रतिशत सिक्ख और 2 प्रतिशत ईसाई धर्मी थे, लेकिन वे सभी किसानों व मजदूरों के एकछत्र नेता थे और ये बात उन्होंने सन् 1936-37 के चुनाव में सिद्ध कर दी थी |
जब जम़ीदारा पार्टी के 120, कांग्रेस के 16 तथा मुस्लिम लीग (जिन्ना की पार्टी) के दो सदस्य ही चुनाव जीत पाए, जिनमें से बाद में एक जमीदारा पार्टी में मिल गया। सावरकर की हिन्दू महासभा की सभी सीटों पर जमानत जब्त हो गयी
चौधरी साहब जम़ीदारा पार्टी (यूनियनिष्ट) के सर्वेसर्वा थे। लेकिन उन्होंने कभी भी संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री (प्रीमियर) के पद का लोभ नहीं किया और हमेशा मुसलमान जाटों को इस पद पर सुशोभित किया, जो एकता के लिए आवश्यक था।
जब सन् 1944 में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना पश्चिमी पंजाब में मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण वहाँ पाकिस्तान बनाने की संभावनायें तलाशने गये और उन्होंने लाहौर में भाषण दिया कि
“पंजाब के मुसलमानो, हमें अपना अलग से देश बनाना है जहाँ हम खुद मालिक होंगे। छोटूराम हिन्दू है वह हमारा कभी भी नहीं हो सकता, वह तो नाम का भी छोटा है, कद का भी छोटा है और धर्म का भी छोटा है, उसका साथ देना हमें शोभा नहीं देता।”
इस पर चौ॰ छोटूराम साहब को रोहतक से तुरत-फुरत जिन्ना साहब का जवाब देने के लिए लाहौर बुलाया और उन्होंने भाषण दिया –
“जिन्ना साहब अपने को मुसलमानों का नेता कहते हैं, मुस्लिमधर्मी होने का दावा करते हैं, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति में रंगे हैं, अंग्रेजी शराब पीते हैं, सूअर का मांस खाते हैं, अपने को पढ़ा लिखा कहते हैं, लेकिन उनको तो इतना भी ज्ञान नहीं कि धर्म बदलने से खून नहीं बदलता। हम जाट हैं, हम हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाई, बोद्ध, बिश्नोई और आर्य समाजी सभी धर्मो के सिरमौर है।”
इस पर पंजाब की मुस्लिम जनता जिन्ना साहब के ऐसे पीछे पड़ी कि जिन्ना साहब रातों-रात लाहौर छोड़ गये और जब तक चौधरी साहब जीवित रहे (9 जनवरी 1945 तक), कभी लौटकर पंजाब व लाहौर नहीं आये।
इसी प्रकार सन् 1944 में काश्मीर में सर चौधरी छोटूराम के इशारे पर शेख अब्दुल्ला ने जिन्ना साहब को सोपुर कस्बे में जूतों की माला डलवा दी थी जिसके बाद जिन्ना साहब कभी भी अपने जीते जी कश्मीर नहीं आये और बम्बई में जाकर बयान दिया कि कश्मीर तो एक दिन सेब की तरह टूटकर उनकी गोद में गिर जायेगा। अब्दुल्ला खानदान हमेशा ही पाकिस्तान विरोधी रहा है।
यह देश का दुर्भाग्य था कि 9 जनवरी 1945 के दिन चौधरी सर छोटूराम का स्वर्गवास हो गया (खाने में जहर देकर धोखे से मार दिए गए) उस समय के नेताओं व विचारकों का मत था कि
“यदि चौधरी छोटूराम जी जीवित रहते तो मि० जिन्ना का षड्यन्त्र पंजाब की राजधानी लाहौर के चौराहे पर ही चकनाचूर हो जाता और देश विभाजन से बच जाता।” (जगदेवसिंह सिद्धान्ती अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० 80-81, लेखक रघुवीरसिंह शास्त्री; चौ० छोटूराम जीवन चरित पृ० 336-337 लेखक रघुवीरसिंह शास्त्री)।
दिनांक 15.04.1944 को चौ. छोटूराम ने महात्मा गांधी को एक लम्बा पत्र लिखा जिसका सारांश था कि “आप जिन्ना की बातों में नहीं आना, वह एक बड़ा चतुर किस्म का व्यक्ति है जिसे संयुक्त पंजाब व कश्मीरी मुसलमान उनको पूरी तरह नकार चुका है।
मि. जिन्ना को साफ तौर पर बता दिया जाये कि वे पाकिस्तान का सपना लेना छोड़ दें।” लेकिन अफसोस, कि वहीं गांधी जी कहा करते थे कि पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा, चौ. साहब के पत्र का उत्तर भी नहीं दे पाये और इसी बीच चौ. साहब 63 साल की अवस्था में अचानक ईश्वर को प्यारे हो गये या धोखे से खाने में जहर देकर मार दिए।
परिणामस्वरूप गांधी जी ने जिन्ना और सावरकर के समक्ष घुटने टेक दिये और जिन्ना का सपना 14 अगस्त 1947 को साकार हो गया तथा साथ-साथ जाटों की किस्मत पर राहू और केतु आकर बैठ गये।
गांधी और जिन्ना जी को इतिहास ने महान बना दिया न कि उन्होंने इतिहास को महान् बनाया। जिन्ना को तो यह भी पता नहीं था कि 14 अगस्त 1947 को रमजान है जिसका रोजा देर रात से खुलेगा। उसने तो सायं पार्टी का हुक्म दे डाला था जब पता चला तो समय बदली किया। इस व्यक्ति ने इस्लामिक देश पाकिस्तान की नींव रखी।
आज चाहे जसवन्त सिंह,आडवानी या कोई और नेता जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष लिखे जबकि सच्चाई यह है कि लाला जिन्ना, पंडित सावरकर और पंडित नेहरू में सत्ता लोलुपता के लिए भयंकर कस्मकश थी। गांधी एक कमजोर नेता थे और इसके लिए पाकिस्तान की नींव रखी गई, ताकि दोनों के अरमान पूरे हो सकें।
नोट: याद रहे नेहरु और जिन्ना के अलावा महात्मा गाँधी के ऊपर विनायक दामोदर सावरकर का भी बहुत बड़ा दवाब था जो अलग हिन्दू राष्ट्र की अपनी मांग को लेकर 1935 से ही देश भर में नफरत फ़ैलाने में जूटे थे |
चौ० छोटूराम के साथ उस समय 81 मुस्लिम विधायक तथा 37 हिन्दू-सिख विधायक थे और चौ० साहब ने 8 मई 1944 को लायलपुर (वर्तमान फैसलाबाद) की लाखों की सभा में जिन्ना को ललकार कर कह दिया था कि वह उनका एक भी विधायक तोड़ कर दिखाए।
लेकिन गांधी जी स्वयं ही टूट गए। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दू महासभा ने सन् 1937 के अपने अधिवेशन में जिन्ना के दो राष्ट्रों के सिद्धान्त की अनुमति दे दी थी। (पुस्तक ‘मध्यकालीन इतिहास’ पेज नं० 103)।
आज के आधुनिक युग में दो ही नेता ऐसे हुए हैं जो भारत की अखण्डता को कायम रख सकते थे तथा देश के टुकड़े नहीं होने देते। वे थे 1. सर चौ० छोटूराम 2. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस। सर छोटूराम का इस विषय में वर्णन कर दिया गया है।
नेताजी का वर्णन इस प्रकार से है। सिंगापुर में 4 जुलाई 1943 को नेताजी ने आजाद हिन्द फौज के सुप्रीम कमाण्डर (अध्यक्ष) पद को सम्भाला। 9 जुलाई 1943 को एक विशाल सभा सिंगापुर के नगर भवन में हुई जिसमें 60,000 सैनिक और नागरिक तथा 25,000 महिलां उपस्थित थीं।
उस भाषण में नेताजी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में जोरदार शब्दों में कहा – तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा, चलो दिल्ली। साथ ही यह भी कहा कि “अभी से तुम हिन्दुस्तानी हो तथा जाति-पाति एवं अपने धर्म को भूल जाओ। केवल हिन्दुस्तानी ही तुम सबका धर्म है।”
नेताजी के भाषण का सब पर एक जादू जैसा असर हो गया। सब धर्मों के सैनिकों का खान पान एक ही साथ हो गया। जय हिन्द का नारा अपनाया। आजाद हिन्द फौज का युद्धघोष (Battle cry) भी ‘जय हिन्द’ हो गया।
नेता जी में उन सैनिकों की इतनी श्रद्धा हो गई कि युद्ध में या बीमार होकर मरते समय प्रत्येक सैनिक ने अपने साथियों को यही कहा कि “मेरा जयहिन्द का संदेश नेताजी तक पहुंचा देना।”
Second World war and Jats
नेता जी के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज ने 4 फरवरी, 1944 को अराकान के मोर्चे पर स्वाधीनता का युद्ध लड़ा और 18 मार्च, 1944 को पहली बार सीमा पार करके भारत भूमि पर कदम रखा। यहां से पीछे हटना पड़ा।
9 अगस्त 1945 को फार्मोसा द्वीप के ताईहोकू स्थान पर वायुयान दुर्घटना में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु हो गई। यदि ये दोनों नेता या दोनों में से एक भी लम्बे समय तक जीवित रहता तो भारत का नक्शा कुछ और ही होता।
देश अखंड रहकर आजाद होता और देश के टुकड़े नहीं होते। आज देश के कुछ प्रान्तों में भाषा एवं धर्म के आधार पर, कई तरह के पचड़े खड़े हो रहे हैं जिससे देश को बेचैनी है।
हमारे नेताओं को बार बार यह कहना पड़ रहा है कि “किसी भी कीमत पर देश के टुकड़े नहीं होने देंगे।” यदि ये दोनों नेता समय से पहले न मरते तो आज देश को यह बेचैनी न होती।
चौ० छोटूराम अखण्ड भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति चाहते थे –
कांग्रेसी नेता स्वराज्य पाने के लिए इतने उतावले हो रहे थे कि मुसलमानों की अधिक से अधिक मांगों को मानकर भी वे स्वराज्य पा लेना चाहते थे। महात्मा गांधी ने तो यहां तक कह दिया था कि मि० जिन्ना यदि चाहें तो उन्हें भारत का प्रथम उच्च शासक बनाया जा सकता है
और गांधी जी के प्रिय साथी श्री राजगोपालाचार्य ने स्पष्ट कहा कि जब मुसलमान संयुक्त शासन नहीं चाहते तो उन्हें क्यों न पाकिस्तान दे दिया जाए। इस पर के० एम० मुन्शी को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया और ‘अखण्ड भारत संघ’ का निर्माण किया।
चौ० छोटूराम के दिल में भारत की अखण्डता के लिए कितना प्रेम था वह इससे प्रकट हो जाता है कि उन्होंने तुरन्त श्री के० एम० मुन्शी को तार दिया कि मैं भारत को एक राष्ट्र बनाए रखने में आपके साथ हूं और इसके तुरन्त बाद उन्होंने रोहतक जिले की एक सार्वजनिक सभा में अपने भाषण में कहा कि “पाकिस्तान हमारी लाशों पर ही बन सकेगा।”
Sir Chhotu Ram Vs Muhammad Ali Jinnah
25 अगस्त 1944 को सर छोटूराम ने महात्मा गांधी जी को पाकिस्तान बनने के विरुद्ध एक ऐतिहासिक पत्र लिखा जिसमें पाकिस्तान न बनने के ठोस प्रमाण दिए। मगर यह देश का दुर्भाग्य था कि कांग्रेस नेताओं ने उनकी बात न मानी।
उनका कहना था कि “मज़हब बदल सकता है मगर खून का नाता एक ही रहता है।” अर्थात् जाट-हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान एवं ईसाई धर्मी हो परन्तु सबके खून का नाता तो एक ही है।
इस पर बहादुरगढ़ से लेकर सिंध नदी तक पूरे अखण्ड पंजाब तथा रियासतों के सब धर्मों के जाट एक होकर चौ० सर छोटूराम की जमींदार पार्टी के झण्डे के नीचे (जिसका निशान हल व तलवार का था) आ गए।
उनके साथ ही देहात के अन्य जातियों के किसान तथा मजदूर भी जमींदार पार्टी के साथ मिल गए। पाकिस्तान तो पंजाब में बनना था जहां पर मुसलमानों की अधिक संख्या थी। जब वे सब सर छोटूराम को अपना नेता मान चुके थे तो पाकिस्तान कैसे बन सकता था।