Second World War and The Jats
Second World War and Jats
जब सन् 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध आरम्भ हुआ तो चौ० छोटूराम ने जाटों को आह्वान किया कि वे सेना में भर्ती हो जाएं और इसी आह्वान पर लाखों जाट सेना में भर्ती हुये और जाटों ने रणक्षेत्र में अपनी बहादुरी को सिद्ध किया और वास्तविक क्षत्रिय कहलाये ।
चौ० छोटूराम का उद्देश्य था कि जाट सेना में जायेंगे तो अपने ग्रामीण माहौल से निकालकर दुनिया को देखेंगे जिससे उनको बहुत बड़ा अक्सपोजर मिलेगा और साथ-साथ जाटों की आर्थिक हालत में भी सुधार आयेगा ।
उनकी यह सोच सच साबित हुई जब जाट रणबांकुरों ने अपनी वीरता के बल पर भारतीयों को मिले 40 विक्टोरिया क्रास में से 10 विक्टोरिया क्रास जाटों के नाम थे । (एक गैर जाट रांघड़ जाति का चौथी जाट बटालियन से था ।)

इन्हीं जाट सैनिकों के बच्चे बाद में जनरल और अन्य ऊंचे-ऊंचे पदों पर पहुंचे और यह प्रक्रिया आज तक जारी है ।
याद रहे अहिंसा के पुजारी कर्मचन्द गांधी ने बाद में इसी युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया । जबकि सभी जानते हैं कि युद्ध में हमेशा हिंसा होती है और युद्ध हिंसा के लिए ही लड़े जाते हैं । लेकिन फिर भी कर्मचन्द गांधी को अंग्रेजों का पिट्ठू न लिखकर अहिंसा का पुजारी कहा जाता है ।
संघ के आदर्श पंडित सावरकर ने तो 1944 में बनारस शहर में हिन्दुओ को केम्प लगाकर ब्रिटिश सेना में भर्ती करवाया था जो नेता जी सुभाष की आज़ाद हिन्द फ़ौज से लडे थे, पर उसी गद्दार को आज वीर बताया जा रहा हैं।
चौ० छोटूराम दुश्मन को पहचानने में तनिक भी विलम्ब नहीं करते थे । इसलिए वे कहा करते थे – गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेज बुरे साबित होंगे । और इसके लिए आज कोई प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है ।
धर्म के नाम पर हमारे दुश्मनों ने हमारे विरोध में जो प्रचार किया उसका मुंहतोड़ जवाब चौ० छोटूराम ने संयुक्त पंजाब के सन् 1936 के चुनावों में दिया जब जमींदारा पार्टी के 120 विधायक विजयी रहे कांग्रेस पार्टी मात्र 16 तथा जिन्ना मुस्लिम लीग के मात्र 2 विधायक ही जीत पाये ।
उनमें से भी एक जमींदारा पार्टी में चला गया और उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कर्मचन्द गांधी का असहयोग आन्दोलन केवल उच्च जातियों तथा शहरों तक ही सीमित था ।
पंजाब में हमारे दुश्मनों के अखबार चौ० छोटूराम को हिटलर लिखते थे इसके उत्तर में चौ० साहब कहते थे वहां हिटलर तो होगा ही जहां यहूदी रहेंगे । यहूदी कौम संसार की एक बड़ी व्यापारी और शोषक कौम रही है । इसी कारण हिटलर ने उनकी तबाही की थी ।
Second World War and The Jats – Sir Chhoturam
साम्यवादी सिद्धान्त का जन्मदाता कार्लमार्क्स स्वयं एक यहूदी था जिनका उद्देश्य जमींदारों को उनकी जमीन से बेदखल करने तक ही सीमित था और कुछ नहीं । इसलिए हमें यह जानने का अधिकार है कि पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों ही जाट कौम के दुश्मन हैं और अनैतिक हैं ।
इसी कारण चौ० चरणसिंह ने सन् 1952 में नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में पण्डित नेहरू के सहकारी खेती प्रस्ताव का विरोध किया था और उसे पास नहीं होने दिया था । इसलिए जाट कौम का हित केवल छोटूरामवादी समाजवाद में है और यह सच्चा समाजवाद चौ० छोटूराम का था जिसे हमें अपनाना होगा ।
वर्तमान में जाट कौम बोलना तो सीख रही है लेकिन मुद्दों से हटकर । क्योंकि जाट कौम चौ० छोटूराम के बाद कोमी मुद्दे बनाने में पूर्णतया असफल रही है ।
इसी कारण जाट कौम के अनेक दुश्मन भी पैदा हो गये जिनमें प्रमुख हैं – जिन्होंने अपने पाखण्डी ग्रन्थों में जाट कौम को शूद्र लिखा और फिर सन् 1932 में जाट कौम को लाहौर हाईकोर्ट से एक शूद्र जाति घोषित करवाया और साथ-साथ जाट कौम के इतिहास का अतिक्रमण जारी रखा और आज जाट कौम के आरक्षण का विरोध कर रहे हैं ।
दूसरा दुश्मन वो है जिनके पूर्वजों ने चौ० छोटूराम को काले झण्डे दिखाये और जाट कौम की एक बड़े भाग की नौकरियों पर कब्जा कर लिया और जाट कौम की संस्कृति का अतिक्रमण कर रहे हैं ।
तीसरा दुश्मन जो अनुसूचित जाति के कानून के तहत जाटों के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं ।
यदि हमने अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त करना है तो दीनबन्धु चौ० छोटूराम को पुनः जीवित करना होगा, जिस प्रकार केवल 30 वर्षों में दलित जातियों ने डॉ० अम्बेडकर को जीवित कर दिया ।
जाट भाइयो, आओ और कौम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाओ ।
1 Response
[…] 6 जाट पलटन के कैम्प के उत्तर में थोड़ी दूरी पर शराब का ठेका था। 6 जाट के आर० पी० पहरेदार (Regimental Police Sentries) एक छोटा बेंत लेकर कैम्प के चारों ओर दिन में पहरा देते थे, जैसा कि प्रत्येक बटालियन में यह रीति है। […]