देशवाल जाट गोत्र का इतिहास
यह देशवाल गोत्र बौद्ध कालीन है। महात्मा बुद्ध के भिक्षुओं की वार्ता में इसका उल्लेख मिलता है। उसके बाद यह महाभारत के समय से आबाद है जिला रोहतक में लाढौत गांव के महापुरुषों से पूछताछ से पता लगा है।
उनकी एवं अन्य लोगों की कहावत है कि हस्तिनापुर सूनी पड़ी, लाढौत में बाजें शंख दो। तात्पर्य है कि महाभारत युद्ध में हस्तिनापुर के वीर योद्धा कुरुक्षेत्र युद्ध क्षेत्र से चले गये थे तथा हस्तिनापुर मनुष्यों से खाली होई। उस समय लाढौत में एक राजा का और दूसरा एक साधु का शंख बजता था।
इस गांव में आज भी एक जोहड़ (तालाब) का नाम पाण्डु जोहड़ है। उनके नाम से एक उजड़खेड़ा भी है। इससे ज्ञात होता है कि पाण्डव इस स्थान पर ठहरे थे। देशवाल जाट उस समय इस गांव में आबाद थे और इनका यहां पर राज्य था। इनका कितने क्षेत्र पर राज्य था और राजा का क्या नाम था, यह एक खोज का विषय है।
यह लाढौत गांव तब से अब तक कई बार अपना स्थान तथा आकार बदल चुका है। महाभारत युद्ध के बाद देशवाल जाटों का राज्य मध्यपूर्व में रहा। इसका एक प्रमाण यह है -सन् 41 में खरोष्टी भाषा में लिखा हुआ अरा (Ara) में शिलालेख है जो कि अटक (वर्तमान पाकिस्तान) के निकट है।
उस पर लिखा है कि देशवहर (Dashavjara) ने अपने माता-पिता के सम्मान में एक कुंआ खुदवाया था। यह देशवाल वंशज जाट राजा था। यह जाट वंश पहले से अफगानिस्तान में आबाद था।
देशवाल जाट गोत्र के गांव
1. लाढौत और इससे जाकर आबाद हुये 2. बलियाणा 3. दुलहेड़ा 4. खेड़का। और गांव बलियाणा से जाकर बसे गांव 5. खेड़ी (जैसोर) 6. भदानी (आधा) 7. सुरहेती – ये सब जिला रोहतक और झज्जर में हैं।
जि० सोनीपत में घिल्लोड़ कलां (1/3), खेड़ी दमकन (जोली)।
जिला पानीपत में मतलौडा, कुराड़, टोला।
1857 की क्रांति में मडलौडा जिला पानीपत में देशवाल जाटों अंग्रेज़ो की ईंट से ईंट बजा दी पर उरलाना गांव के राजपूतों ने अंग्रेज़ो का साथ दिया जिससे जाट यह लड़ाई हार गए।
इसका बदला लेने के लिए अंग्रेज़ो ने इन परिवारों की सम्पत्ति जब्त करके इन्हे यहाँ से बेदखल कर दिया जो यहाँ से जाकर कुरुक्षेत्र जिले के किरमच गाव में बस गए।
Director-General, Indo-Tibetan Border Police S.S. Deswal
Surjit Singh Deswal additional charge of BSF DG
जिला जींद में गंगोली, गंगाना, अण्टा (1/3), अनूपगढ।
जि० गुडगांव में मण्डकोला।
रोहतक जिले से गये हुये उत्तरप्रदेश में देशवाल जाटों के गांव – जिला मुजफ्फरनगर में बसेड़ा, बधेव।
11 वीं शताब्दी में मडलौडा (पानीपत) से जाकर उत्तर प्रदेश के शामली के निकट कसेरवा खुर्द, कसेरवा कलां आदि 4 गांव आबाद हुए।
जि० मेरठ में सांधन, सदरपुर, मौड़।
जि० बिजनौर में गावड़ी, अभीपुर, मानपुर देशवाल जाटों के प्रसिद्ध गांव हैं।
हरयाणा में देशवाल, दलाल, मान, सिहाग जाटों का आपस में भाईचारा है जिससे इनके आपस में आमने-सामने रिश्ते-नाते नहीं होते, परन्तु ये चारों एक ही माता-पिता की संतान हैं।
देशवाल गोत्र दलाल गोत्र से भी छोटा है और इस गोत्र से जुड़े लोग पूरे हरियाणा में बिखरे हुए पाए जाते हैं। उनके कुछ गांव भटिंडा (पंजाब) में हैं और कुछ बहावलपुर राज्य (पाकिस्तान) में हैं।
भारत बंटवारे के समय देशवाल गोत्र के मुस्लिम जाट पाकिस्तान के पंजाब में जा बसे जो आज लाहौर, मुल्तान के आसपास और अफगानिस्तान सीमा के निकट फैले हुए हैं। इनमे से अधिकतर सेना और सिविल आदि उच्च पदों पर नियुक्त हैं।
देशवाल जाट गोत्र का इतिहास
बामरोलिया जाटों के इतिहास में 11 वीं शताब्दी में आगरा / मथुरा क्षेत्र के आसपास देशवाल गोत्र जाटों की उपस्थिति और जिला जींद में गंगोली गाँव की उत्पत्ति (1966 में हरियाणा के अस्तित्व में आने से 850 वर्ष पहले, यह संगरूरजिले का एक हिस्सा माना जाता है)। इस संबंध में संगरूर में जिला रिकॉर्ड का उल्लेख है।
बमरोलिया का वंश जाटों के देसवाली वंश के अंतर्गत आता है और जयसिंह के वंश का पता चलता है, जिन्होंने अलवर के दक्षिण में बैराट के पास प्रदेशों पर शासन किया था।
दिल्ली के अंतिम हिन्दू जाट सम्राट अनंगपाल तोमर के प्रति वफादार होने के कारण, इन्होने 1068 ईस्वी में राणा का वंशानुगत खिताब प्राप्त किया, साथ में एक छत्र के सामान्य शाही प्रतीक चिन्ह के साथ।
एक सदी बाद, उनके वंशज राणा पलुण सिंह ने, पृथ्वी राज चौहान और मुहम्मद गौरी के युद्ध के समय पृथ्वीराज का साथ दिया, और उनके साथ ही युद्ध में शहीद हो गए ।
राजा पालून के पुत्र राणा बिरहान पाल 1195 में आगरा के पास बमरौली में जा बसे। इस जगह बमरौली से ही उनके गोत्र का नाम बमरौलिया पड़ा है। उनके वंशजों ने 1367 में आगरा के गवर्नर द्वारा बाहर निकाले जाने तक वहां शासन किया।
बिरहान पाल के वंश में आठवें राणा रतन पाल, ग्वालियर में तुअर (तूर जाट) शासक की सेना में शामिल हुए।
उनके बेटे ने ग्वालियर के राजा बरसिंह देव का समर्थन किया, उन्हें 1375 में अपने मुस्लिम अधिपतियों से आजादी दिलाने में मदद की। उन्होंने वही की रहने वाली एक जाट महिला से शादी की और बाद में गोहद के पास बाघथुरा में बस गए।
भाटों द्वारा सुनाए गए इतिहास के अनुसार, देशवाल चौहान के वंशज माने जाते हैं, ज्यादातर भाटो के लेख अशुद्ध और अप्रमाणिक ही साबित हुए हैं क्योंकि वो पैसे लेकर झूठा इतिहास लिख देते थे।
भारतीय इतिहास, इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता है कि महाराजा पृथ्वी राज चौहान एक जाट थे जबकि यह भी सत्य हैं कि उनके नाना यानी अनंग पाल तोमर दिल्ली के आखिरी हिन्दू सम्राट जाट थे इसके लिए गहन शोध की जरूरत है।
कई जाट वंश चौहानों से अपनी उत्पत्ति पाते हैं दिल्ली में आज भी चौहान जाटों के अनेक गांव हैं जबकि राजपूत चौहानो का यहाँ कोई अस्तित्व नहीं मिलता।
यह सबसे अधिक संभावना है कि चौहान जाट वंशों के संघ का एक प्रकार था जिसमें जाट वंशों के साथ-साथ अन्य योद्धा (गुज्जर) वंश भी शामिल थे जो बाद में राजपूत बन गए।
धनखड़ गोत्र
H.A. रोज लिखते हैं कि देसवाल के खंड हैं: – गोरिया, चौहान और कनकवाल – सभी राजपूत वंश। इतिहास में, कुछ लोग उन्हें अहीर कबीले की एक शाखा भी मानते हैं।
इससे यह संभावना प्रबल होती हैं कि शंकराचार्य ने जब सातवीं सदी में हिन्दू उर्फ़ (ब्राह्मण धर्म) की स्थापना की तब काफी जाट अहीर और गुज्जर राजवंशो को राजपूत घोषित कर दिया जिसमे चौहान, तोमर (तंवर), राठी (राठोड) आदि शामिल थे।
इन नए बने हिन्दुओं ने अपना पिछली पहचान छुपाने के लिए भाटों को खूब रिश्वत देकर कपोल कल्पित कहानिया लिखवाई, फिर स्वांगी और जोगियों की मदद से इन कहानियों को गांव गांव में गीत गाये गया, जिससे इन्होने खुद को अलग राजपूत जाति साबित कर लिया। तब यह कहावत चली जिसका खाया टिकड़ा उसका गया गीतड़ा।
चूँकि सभी जाट अहीर गुज्जर तब बौद्धधर्मी थे जिनमे से ये नए राजपूत निकले थे अत: ब्राह्मण शंकराचार्य और इन नए नए राजपूतों ने मिलकर एक सरकारी आदेश जारी करके इन सभी जातियों को शूद्र घोषित कर दिया। जिस जिसने ब्राह्मण धर्म (आज का हिन्दू) को माना वो राजपूत हो गए बाकी सबको मलेच्छ कहा गया।
क्योंकि ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार परसुराम ने सब क्षत्रियों को ख़तम कर दिया था तब शंकराचार्य में माउन्ट आबू पर्वत पर यज्ञ किया जिसमे से ये तथाकथित राजपूत प्रकट होने की गपोड़ प्रचारित की गयी थी।
वरना आज हर कोई जानता हैं किअग्नि का स्वभाव भस्म करने का होता हैं पैदा करने का नहीं। आग से चींटी तक पैदा सकती तो यह क्षत्रिय कैसे पैदा हो गए? अग्नि में जो चाहे डालो तो उसे राख कर देगी।
कादियान गोत्र
देशवाल खाप: लाढ़ौत गॉव जिला रोहतक से देशवाल गोत्र का निकास माना जाता है । भारत में देशवाल खाप के 127 गांव हैं जिनमें यूपी में 48 गांव हैं।वर्तमान समय मे इस खाप के प्रधान चौधरी राजेंद्र सिंह जी है। चौधरी राजेन्द्र सिंह जी उत्तरप्रदेश के शाहजुडडी गॉव से है
आज से 126 वर्ष पूर्व खाप के मुखिया बाबा चौधरी अमीचन्द की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद खाप पंचायत के रीति रिवाज़ के अनुसार अमीचन्द के पुत्र भरत सिंह को पगडी पहनायी जानी थी । जिस समय भरत सिंह को पगडी पहनायी जा रही थी उसी समय उनके भाई कूडेसिंह की आकस्मिक मृत्यु हो गयी थी।
जिसके बाद यह कार्यक्रम अपशकुन मानते हुए टाल दिया गया था । और तब से यह पगडी राजेन्द्रसिंह के परिजनों के घर मे एक धरोहर के रूप मे रखी हुई थी। इस पुश्तेनी पगड़ी को सन 2012 ईस्वी में राजेंद्र सिंह को पहना कर खाप का मुखिया बनाया गया था।
खाप के उत्तरप्रदेश में गॉव: उत्तरप्रदेश में देशवाल गोत्र के कुछ जाट दिशवार (दिसवार) भी लिखते है
टिटौली, बसेडा, शाहजुडडी, अजरोई, बबनपुर, बघेवा खुर्द और कलां, भालपुर, बासेड़ा, बुद्धा हेडी, चक घरणी, ढिढाला, गजरजुरा, हरिपुर खेमपुर, जमालपुर ज्वाली, कल्लाहेड़ी, बधेव, कलयाणपुर, कंब्रोवाला, कटीरपुर, मानपुर, लाढूपुर, मोड़ कलां, मोड़ खुर्द, कुरलकी, सदरपुर, नारायणपुर, रामपुर, छिब्रू, सांधन, सोटी की नगला, सतीपुर नगली, सिकुड़, टीफ, वजीरपुर, बुढ़सैनी, झुंडपुरा, कालाहेड़ी, कुरलकी, जौहरपुर, कुरैल की देवन, भूपा राकरा, कसेरवा खुर्द और कलां, नगला सेखु (बुलंदशहर ),रामपुरा (बुलंदशहर ), बरसौ (बुलंदशहर ), रामचेला ,कजरौठी, मीतई, वज़ीरपुर, कटियारपुर, मिलाना (मुस्लिम देशवाल ) मलिकपुर, मोम्मदपुर, मोहनपुर, नाहडा टेहरी, मन्ना खेडी
हरियाणा में गॉव:
अटोला, शेरमलपुर, बिहोली, लहरपुर , मडलौडा, थिराणा, मंडीपुर खेड़का गूजर, दुल्हेड़ा, भदाणी, सुरहैती, जैसोर खेड़ी, खड़खड़ी, अनूपगढ़, भाग खेड़ा, धरौली, गांगोली, हाडवा, पिल्लूखेड़ा, सिवाना-माल, लाढौत, बलियाणा, घिलौड़, अमरपुर, सराय सूखी, खेड़ी दमकन, गंगाणा, सैदापुर , बकरवाल , किरमच, होली, शेरगढ़, बोहरा, अलदूका, घोड़ी चांड (चांट ), लालपुर अंटा, ढोखी, महावती, माहरा ,स्यादपुर
राजस्थान:
राजस्थान में देशवाल गोत्र वर्तमान पलवल जिले के घोड़ी गॉव से आकर आबाद हुआ हैं। देशवाल गोत्र के तीन भाई राजस्थान के भरतपुर जिले कि नदबई तहसील के लुहासा मे आकर बसे आज लुहासा ग्राम में देशवाल गोत्र के जाट नही है।
लुहासा से देशवाल जाटों ने भदीरा ग्राम बसाया फिर समय के साथ भदीरा से दूसरे ग्राम बसे भदीरा के समीप ही देशवाल गोत्र के 12 गॉव है दो गॉव दौसा जिले में है देशवाल गोत्रीय जाटों की बाहुल्यता के कारण यह क्षेत्र देशवाली(देशवारी) बोला जाता है|
भरतपुर में -भदीरा ,कैलोरी, नाहरौली देशवार, उसेर ,रोनीजा ,एंचेरा और नगला देशवाल! भदीरा से बाबा कन्हैया नाहरौली में आकर बसें और नाहरौली देशवार बसा पहले नाहरौली में सिनसिनवार हुआ करते अब नाहरौली गाँव के दो गाँव है एक नाहरौली ठाकुर और एक नाहरौली देशवार है !
दौसा में देशवाल गोत्र के दो भाई (समसपाल और शीशपाल) भदिरा गॉव से करौली जिले में जाकर बसे वहा से यह भाई वापस आये और दौसा जिले कि महुवा तहसील में बसे दोनों भाई के नाम पर दो गॉव बसे समसपाल के नाम पर समसपुर और शीशपाल के नामा पर शीशवाड़ा गॉव बसा । ‘
राजस्थान’:
भरतपुर में -भदीरा ,कैलोरी, नाहरौली देशवार, उसेर ,रोनीजा ,एंचेरा और नगला देशवाल,घेरा ,दौलतपुर अलवर -बेरका बड़का ,मुंडीया ,रामपुरा ,भजीट,घोसराना दौसा -समसपुर ,शीशवाडा जयपुर जिले -रामजीपुरा
देशवाल जाट गोत्र का इतिहास