जाटों ने हूणों को भारत से भगाया
वे सोचे रहे थे तोप तमंचे हमें झुका देंगे।
झुकने वाले नहीं थे कभी हम, सारा मोल चुका देंगे।
चन्द्र व्याकरण में लिखा है अजयज्जट्टो हूणान् अर्थात् जाटों ने हूणों पर विजय पाई। छठी सदी में हूणों ने भारत पर ताबड़-तोड़ आक्रमण किये और पूरा भारत थर्रा उठा, जिनको हराने का श्रेय महाराजा यशोधर्मा वरिक को है,
जो मालवा (मध्यप्रदेश) मन्दसौर के वरिक वंश के जाट राजा थे और आज भी जाटों का यही गोत्र प्रचलित है। वरिक गोत्र के सिख जाट अधिक हैं। हरयाणा के कैथल और करनाल के क्षेत्र में वरिक हिन्दू जाट भी हैं।
इस नाम का गोत्र भारत में और कहीं भी प्रचलित नहीं है। यशोधर्मा के समय के तीन शिलालेख मन्दसौर से प्राप्त हो चुके हैं जिनमें स्पष्ट तौर पर इनका वंश (गोत्र) लिखा है।
इस क्षेत्र पर इन जाट नरेशों का शासन 340 ई0 से 540 ई० तक था, जिसमें बंधुवर्मा तथा विष्णुवर्धन आदि प्रमुख राजा हुये। इसी यशोधर्मा की पुत्री यशोमती महाराजा हर्षवर्धन बैंस की माता थी।
यह सब भारतीय इतिहास में दर्ज है। इस लड़ाई का पूरा ब्यौरा सेनापतियों के नाम सहित जिसमें दूसरी
सहयोगी जातियाँ भी सम्मिलित थी, पंचायती इतिहास रिकार्ड में भी अंकित है।
इसी प्रकार संवत् 1510 में तुर्क सेना को करनाल के मैदान में हराने वाला बाल ब्रह्मचारी 58 धड़ी वजनी सेनापति वीर योद्धा सूरजप्रकाश दहिया जाट था।
जाटों ने हूणों को भारत से भगाया
इस युद्ध का भी पूरा ब्यौरा सर्वखाप पंचायत रिकार्ड में भी दर्ज है।
भारतीय सरकारी इतिहासकारों को और क्या प्रमाण चाहिए, हम देंगे कि भारतवर्ष की भूमि को जाटों ने हूणों से बचाया था।
(पुस्तक – ‘सर्व खाप पंचायत का राष्ट्रीय पराक्रम’, ‘भारतीय इतिहास का एक अध्ययन’, पंचायती इतिहास व जाट वीरों का इतिहास आदि-आदि)
धोखा पट्टी सीखी नहीं जंग में पछाड़ ल्याए,
मुगलां का सिंहासन जाट दिल्ली तैं उखाड़ ल्याए।
साथ मैं नजराना और किले के किवाड़ ल्याए,
देशभक्ति का खून बहै इन जाटां की गांठां मैं
जाते-जाते सिकन्दर को करा भगोड़ा जाटां नैं,
मुगल और अंग्रेजों को नां बिल्कुल छोड़ा जाटां नैं।
कलानौर की बौर काढ़ दी कोला तोड़ा जाटां नैं,
जलालत की जिन्दगानी, नहीं गंवारा जाटां नैं।
जिसनै न्योंदा घाल्या राख्या नहीं उधारा जाटां नैं।
पृथ्वीराज का कातिल मोहम्मद गौरी मारा जाटां नैं।
कहै जयप्रकाश घुसकाणी के, थारै कमी नहीं ठाठां मैं…..॥4॥
जाटों ने हूणों को भारत से भगाया
इसी प्रकार चौ० पृथ्वीसिंह बेधड़क ने तो पूरा ही इतिहास गाया है।
मा० हवासिंह (बेली) गांव धनाना जिला भिवानी ने भी ऐसी ही एक रागनी भेजी है।
जाट इतिहास में ठाकुर देशराज कहते हैं –
”हरियाणा के बीच में एक गाँव धनाना,
सूही बांधें पागड़ी क्षत्रीपन का बाणा।
नासे नेजे भड़कते घुडि़यन का हिनियाना,…..
बापोड़ा मत जाणियो ये है गाँव धनाना।।
जाटों ने हूणों को भारत से भगाया