हरयाणा के लिए SYL का पानी
जब महान् वैज्ञानिक आईन्सटाईन से पूछा गया कि तीसरा महायुद्ध कब होगा तो उन्होंने उत्तर दिया कि तीसरा युद्ध तो पता नहीं कब होगा,
लेकिन चौथा कभी नहीं होगा। तो वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा क्योंकि भविष्य में पानी की बेहद कमी होगी। जिसके लिए झगड़ा युद्ध में बदल जायेगा।
पानी हर प्राणी के जीने के लिये आवश्यक है लेकिन किसान के लिए रोजी रोटी का सवाल है। हरयाणा को पंजाब से जो पानी मिलना था उस समझौते को पंजाब की कांग्रेस सरकार ने केन्द्र सरकार की छत्रछाया में निरस्त कर दिया तो मामला उच्चतम-न्यायालय के अधीन है।
न्यायालय चाहे कुछ भी फैसला दे, यह निश्चित है कि पंजाब का किसान कभी पानी नहीं देगा। क्योंकि उनके लिए भी यह रोजी रोटी का सवाल है। तो फिर क्या किसान दूसरे किसान से लड़ेगा?
सिद्धू बराड़ जाट वंश – Sidhu Brar Jat Dynasty
हरयाणा के लिए SYL का पानी
हाँ सम्भव है, मरता क्या नहीं करता। फिर किसान को आपस में लड़कर मरने से कैसे रोका जाए। इस पर विचार करना होगा।
हमने तो विचार करके एक ठोस योजना बना ली है जो समय आने पर घोषित होगी। बाकी इस पर राजनीति फिजूल की बात है। किसान-सभाएं अपना विचार विमर्श करें?
इसका परोक्ष उद्देश्य पंजाब व हरियाणा के जाटों को आपस में लड़ाना व द्वेष पैदा करना है, और कुछ नहीं।
(घ) पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों व किसानों को सन् 1947 से एक घुट्टी पिलाई जाती रही कि भारत का प्रधानमंत्री उनके प्रदेश (उत्तर प्रदेश) का होगा और रहे भी, जैसे कि पं. नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, वी.पी. सिंह, चन्द्रशेखर व अटल बिहारी वाजपेयी आदि।
लेकिन क्या चौ० चरणसिंह उत्तर प्रदेश के नहीं थे – जिनकी सन् 1978 में सरकार को गिराने व नहीं बना देने के लिए इन्हीं उत्तर प्रदेश वालों ने जैसे श्रीमती इन्दिरा गांधी, वाजपेयी व चन्द्रशेखर ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था? इसी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान कमाते रहे हैं और बाकी उत्तर प्रदेश खाता रहा है।
अर्थात् पूरे उत्तर प्रदेश में सरकारी महकमों आदि पर पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश का अधिकार रहा है और इसके आंकड़े बड़े ही सनसनीखेज हैं। उत्तर प्रदेश के 19 विश्वविद्यालयों में से केवल 3 पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं।
तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में मात्र 14 प्रतिशत तथा राजपत्रित अधिकारी मात्र 4 प्रतिशत ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश से है अर्थात पश्चिमी उत्तर प्रदेश कमा रहा है तो पूर्वी भईये खा रहे हैं।
याद रहे इस उत्तर प्रदेश की नींव भी पं० जी.बी. पंत ब्राह्मण ने यह कह कर रखी थी कि गंगा-जमना के पानी को अलग नहीं होने दिया जाएगा। यह सभी पंत और नेहरू की चाल थी जिस पर आज तक अमल किया जा रहा है। यह शोषण नहीं तो और क्या है?
यही भारी भरकम राज्य जिसकी जनसंख्या आज 16 करोड़ 62 लाख को पार कर चुकी है और पाकिस्तान की जनसंख्या 16 करोड़ 25 लाख से अधिक है। इसी प्रकार यह राज्य जनसंख्या के आधार पर लगभग 192 देशों से बड़ा है, लेकिन फिर भी केन्द्रीय सरकार पश्चिमी उत्तर प्रदेश को ‘हरित प्रदेश’ नहीं बनाना चाहती।
जिसमें सरकार की इच्छा बड़ी साफ है कि वह पूरे उत्तर प्रदेश व बिहार व उत्तरांचल के लोगों को नौयडा के क्षेत्र में बसा कर यहाँ के स्थानीय लोगों को अल्पसंख्यक बनाना चाहती है जैसे कि दिल्ली में कर दिया है, ताकि हमेशा के लिए यहाँ का कारोबार व सरकार बाहरी लोगों के हाथ में रहे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ‘हरित प्रदेश’ की मांग हर तरह से न्याय की कसौटी पर खरी उतरती है। ‘हरित प्रदेश’ को बनाने में मुलायमसिंह जी सबसे बड़ी अड़चन डाल रहे हैं क्योंकि उनके वोट मध्य उत्तर प्रदेश तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में अटके पड़े हैं।
इसके लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जाट किसान वर्ग को संघर्ष का रास्ता अपनाना होगा, वरना इनका शोषण इसी प्रकार जारी रहेगा और ये आजाद होकर भी गुलाम बने रहेंगे।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जिले हैं जिनमें 30 संसदीय क्षेत्र हैं जहाँ लगभग 75 लाख जाट अन्य किसी भी एक जाति से अधिक है।
(3) चौ० छोटूराम की तीसरी मुख्य शिक्षा थी ‘दुश्मन को पहचानो और बोलना सीखो’। यह बात चौ० छोटूराम ने अपने जीते-जी बार-बार दोहराई लेकिन चौ. साहब के जाने के बाद तो हम इसे बिल्कुल ही भूल गये।
जो समाज हमारा कभी दुश्मन नहीं था उसे हमने दुश्मन समझ लिया। वह समाज है ‘गैर-चमार दलित समाज’। गोहाना, दुलीना और मिर्चपुर काण्ड इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।
हरयाणा के लिए SYL का पानी
इतिहास गवाह है कि ‘गैर-चमार दलित समाज’ हमारी मदद में हमेशा हमारे पीछे खड़ा मिला है, चाहे वह खेती का काम था या लड़ाई का। जाटों का गैर-चमार दलित समाज से बेटी का रिश्ता नहीं रहा लेकिन रोटी का रिश्ता हमेशा-हमेशा रहा, लेकिन आज हम इस सब को भूल गये हैं।
ब्राह्मणवाद ने दलित समाज को सदियों से इतना कमजोर कर दिया था कि उनमें विरोध करने की शक्ति ही नहीं रही थी। इसी प्रकार यह षड्यंत्र ब्राह्मणवाद ने जाटों के विरोध में भी रचा जिसके सिन्ध और राजस्थान में स्पष्ट उदाहरण हैं।
जाट और दलित समाज दोनों ही ब्राह्मणवाद से उत्पीडि़त रहे। लेकिन यह भी सच्चाई है कि जाटों के विरुद्ध एस.सी. तथा एस.टी. कानून के तहत मुकदमें दर्ज करवाने वाले पूरे दलित समाज की जातियां नहीं हैं।
इसमें मुख्य तौर पर चमार जाति है। इस पर जाटों को नए सिरे से विचार करना होगा। जमीन पर यह जीवंत हकीकत है कि समस्त उत्तरी भारत में जाटों के गाँवों में दलित समाज की आर्थिक हालत बाकी से कहीं बेहतर है।
क्योंकि समानता, प्रजातांत्रिक प्रथाएं और कमजोर की मदद करना जाट चरित्र के मौलिक गुण रहे हैं। इसलिए तो इतिहासकार
कालिकारंजन कानूनगो लिखते हैं
‘ऐतिहासिक काल से जाट बिरादरी हिन्दू समाज के अत्याचारों से भागकर निकलने वाले लोगों को शरण देती आई, उसने दलितों और अछूतों को ऊपर उठाया है। उनको समाज में सम्मानित स्थान प्रदान कराया है।
लेकिन 3 सितम्बर 2005 को जाटों और वाल्मीकियों के मध्य गोहाना में जो काण्ड हुआ उसने सभी सजग जाट व दलित समाज के लोगों को हिला दिया था, जो इस उपरोक्त लिखी हकीकत को जानते हैं, इन में से मैं भी एक था।
मैंने इस काण्ड पर ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर एक लेख गोहाना काण्ड-जाटों और वाल्मीकियों को एक तमाचा लिखकर “दैनिक जागरण” तथा “दैनिक भास्कर” समाचार-पत्रों में प्रकाशित करने के लिए हिसार इनके कार्यालयों में भेजा।
लेकिन जैसा मुझे अंदेशा था, वही हुआ कि इन्होंने इसे प्रकाशित नहीं किया, क्योंकि भारतवर्ष के अधिकतर समाचारपत्र प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से ब्राह्मणवाद के समर्थक रहे हैं |
नवीन गुलिया एक साहसी व्यक्तित्व