चौधरी देवीलाल
विशेषताएं –चौधरी देवीलाल का कद 6 फुट 3 इंच लम्बा, सुन्दर गोल भूरा चेहरा, घने बाल, लम्बी गर्दन, लम्बी सुथरी नाक, काली बड़ी-बड़ी आंखें, लम्बी भुजायें, चौड़ी छाती, लम्बी मजबूत टांगें तथा रौबीली चाल ढाल है। आप स्वाभिमानी, ईमानदार, सत्य के प्रेमी, दयालु, अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करनेवाले, भ्रष्टाचार विरोधी, निपुण कार्यकर्त्ता, कुशल शासक एवं प्रवीण राजनीतिज्ञ, साहसी व निडर योद्धा, देशभक्त तथा किसान व मजदूरों के वास्तविक हितकारी नेता हैं।
जन्म, बाल्यकाल और शिक्षा
चौधरी देवीलाल का जन्म 25 सितम्बर 1914 में गांव तेजा खेड़ा, जिला सिरसा (हरयाणा) के एक जागीरदार, सुसंस्कृत एवं समृद्ध परिवार में चौ० लेखराम, सिहाग1 गोत्री जाट के घर हुआ था। आपकी छोटी आयु में ही आपकी माता जी का देहान्त हो गया था। आपके बड़े भाई का नाम साहबसिंह है। आपके पिताजी ने दूसरा विवाह करवा लिया था, अतः सौतेली मां का व्यवहार आपके साथ इतना अच्छा नहीं था। 1919 में आपके पिता चौ० लेखराम अपने परिवार सहित तेजाखेड़ा से निकट के गांव चौटाला में रहने लगे।
चौटाला के दो तरफ बसे तेजाखेड़ा, आसाखेड़ा तथा भारुखेड़ा इत्यादि कई गांवों का लगभग 52 हजार बीघे रकबा चौटाला गांव के जाटों के तीन गोत्रों गोदारा, सिहाग और सहारन की सम्पत्ति था।
उस समय चौटाला सबसे बड़ा गांव था। इस गांव की 1000 से भी अधिक आबादी में जमींदारा श्रेणी के कुल 28 घर थे जिनमें से चौ० लेखराम भी एक थे। शेष सभी भूमिहीन अथवा छोटे किसानों की श्रेणी में ही आते थे। गांव के छूत-अछूत सभी जातियों के लोगों को भूमि की जोत पर ही निर्भर करना पड़ता था।
मालिक जिसको चाहते उसी को जमीन देते थे तथा इच्छा अनुसार कभी भी छुड़वाकर दूसरे मुज़ारे को देने का अधिकार उनके पास सुरक्षित रहता था। मुजारे पूरे तौर से जमींदारों के गुलाम थे। उनके घरेलू कामकाज ये तथा इनकी औरतें व बच्चे करते थे। किसी की पुकार करने की हिम्मत नहीं थी और न ही कोई उनकी दुःखभरी आवाज सुनता था। इन बातों का प्रभाव चौधरी देवीलाल पर छोटी आयु में ही पड़ने लग गया था।
बालक चौधरी देवीलाल की आरम्भिक शिक्षा गांव में ही हुई। प्राइमरी शिक्षा के बाद मिडल (आठवीं) कक्षा इन्होंने मंडी डबवाली से उत्तीर्ण की तथा मोगा उच्च विद्यालय में आगे की शिक्षा पाई। बाल अवस्था से ही आप अपने हाथों से खेत में काम करते थे। स्कूलों की छुट्टियों में भी कृषि कार्य में लगे रहते थे। सन् 1930 से 1940 के बीच आपको पहलवानी का बड़ा शौक था। पंजाब भर के पहलवानों से इनका सम्पर्क था।
चौधरी देवीलाल का राजनीति में प्रवेश
चौ० देवीलाल युवावस्था के शुरु में ही राजनैतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेने लग गये थे। जब सारे देश में असंतोष छाया हुआ था और युवा अपने सिर धड़ की बाजी लगाकर देश से अंग्रेजों को खदेड़ रहे थे तो चौ० देवीलाल भी इस संघर्ष में कूद पड़े। आप एक स्वयंसेवक के रूप में कांग्रेस के लिए कार्य करने लग गये। चौधरी देवीलाल ने, सामन्तवादी (जमींदारों), अत्याचारों से पीड़ित किसानों एवं मजदूरों को उनका हक दिलाने हेतु, सामन्तशाही एवं अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया तथा तत्परता से अपने सद् उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जुट गये।
आपने अपने इस लक्ष्य के लिए पहले कांग्रेस पार्टी में शरीक होकर कार्य शुरु किया। आपने इस संघर्ष के लिए कई राजनैतिक पार्टियां बदलीं, पंजाब व हरयाणा के कई मुख्यमंत्री बनवाये और हटवाये, कई चुनावों में हार व जीत हुई, स्वयं भी मुख्यमंत्री बने और हटे। आज हरयाणा के मुख्यमन्त्री पद पर विराजमान हैं, परन्तु इस संघर्षी जीवन में आप अपने उद्देश्यों पर अडिग रहे। देश के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेते रहे और किसान मजदूरों को अपमान-जनक शोषण से मुक्ति दिलाने हेतु प्रयास करते रहे। इसी के फलस्वरूप आप देशभक्त एवं देश के किसान, मजदूरों के प्रसिद्ध नेता माने जाते हैं।
सक्रिय राजनीति में पहला कदम
31 दिसम्बर, 1929 के दिन लाहौर में रावी नदी के किनारे अखिल भारतीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन शुरु हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष पण्डित जवाहरलाल नेहरू थे। इस अधिवेशन में भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता का ऐलान कर दिया।चौधरी देवीलाल की आयु उस समय लगभग 15 वर्ष की थी और मोगा शहर के स्कूल में पढ़ते थे। इनके मन में देश की स्वतन्त्रता की तीव्र लालसा उठी। अतः वह स्कूल छोड़कर कांग्रेस के स्वयंसेवक बनकर इस अधिवेशन में शामिल हो गये। सक्रिय राजनीति में यह इनका पहला कदम था।
सन् 1930 में चौधरी देवीलाल को अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। इससे उनका हौंसला दुगुना हो गया। सन् 1932 में इनके भाई साहबसिंह को भी अन्य कांग्रेसियों की भांति गिरफ्तार कर लिया। 1932 के बाद देवीलाल अपने इलाके के बड़े-बड़े जमींदारों के विरुद्ध किसानों का आन्दोलन खड़ा करने में रुचि लेने लगे। बड़े-बड़े जमींदार अपने खेतों पर काम करने वाले भूमिहीन किसानों को खेतों से निकाल देते थे। ऐसे किसान इनकी सहायता से अपनी खोई हुई भूमि प्राप्त करने में सफल होते थे।
1937 में पंजाब विधानसभा की सिरसा सीट पर अपने बड़े भाई साहबसिंह को चुनाव जितवाकर उन्होंने अंग्रेजी शासन में प्रथम सेंधमारी की और सक्रिय राजनीति में बहुत गहरे उतर गये। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान चौधरी देवीलाल को एक वर्ष की कैद हुई और उनको मुलतान जेल भेजा गया। कैद से छूटने के बाद चौधरी देवीलाल मुलतान जेल से सीधे चौटाला आए। आते ही किसानों के काम में जुट गये। इसी समय चौ० छोटूराम पंजाब का दौरा करते हुए चौटाला भी आये।
युवा देवीलाल ने 5000 किसानों की गगनभेदी आवाज में ‘बेदखली बन्द करो’ के नारे के साथ उनका स्वागत किया। सर छोटूराम ने उनकी बात सुनना मंजूर किया। पाण्डाल से किसानों के नारे “चौ० छोटूराम जिन्दाबाद”, “बेदखली बन्द करो”, लगने लगे। चौ० छोटूराम ने चौ० देवीलाल को अपने बराबर बैठने को कहा परन्तु चौधरी देवीलाल ने जमींदार लीग के स्टेज पर बैठने से इन्कार कर दिया। जब सर छोटूराम मांगों का जवाब देने के लिये उठे तो आसमान एक बार फिर से “बेदखलियां बन्द करो”, “जमींदारा सिस्टम खत्म करो”, “चौ० छोटूराम की जय” के नारों से गूंज उठा।
चौधरी देवीलाल – Chaudhary Devi Lal
चौ० छोटूराम का भाषण – चौ० छोटूराम जमींदारों को सम्बोधित करते हुए बोले – “मुझे मालूम है कि तुम किस प्रकार मुजारों के खेतों को उजाड़कर उन गरीबों से सूद-दर-सूद ब्याज लेते हो। बीज के बतौर अनाज का कर्ज़ देकर, उनसे सवाई राशि वसूल करते हो। इसके अलावा खुदकाश्त पर रात-दिन बेगार लेते हो। अगर वक्त के मुताबिक तुमने अपने आपको नहीं बदला तो याद रखो, तुम्हारे खिलाफ भी वही कानूनी डण्डा इस्तेमाल किया जाएगा, जो व्यापारियों की धांधली को खत्म करने के लिए बनाया गया है।” बीच-बीच में “छोटूराम जिन्दाबाद”, “बेदखली बन्द करो”, “मालगुजारी खत्म करो”, के नारे गूंजते रहे। यदि चौ० सर छोटूराम जीवित रहते तो बड़े-बड़े जागीरदारों-सेठ-साहूकारों की जमीनें किश्तों पर मुज़ारों को अवश्य मिलतीं। किसान नेता चौधरी देवीलाल ने अपनी डायरी में लिखा है कि, “दरअसल चौ० छोटूराम के सहारे से मैं अपने दबे हुए मुजारों को उभारना चाहता था और हुआ भी ऐसा ही। जिला फिरोजपुर और हिसार के किसान खुलकर मेरे साथ आने लगे। जागीरदारों का डर दूर होने लगा।”1
15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारतवर्ष को गुलामी से छुटकारा मिला। श्री गोपीचन्द भार्गव स्वतन्त्र संयुक्त पंजाब के पहले मुख्यमंत्री बने। मुजारों के आंदोलन से पंजाब की स्वदेशी कांग्रेस सरकार के जमींदार लॉबी के तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार स्वर्णसिंह ने दफ़ा 307 के तहत चौधरी देवीलाल को हवालात में बन्द करवा दिया। मुजारों के हकों के लिए लड़ने की प्रशंसा में अपनी सरकार की ओर से आपको यह पहला इनाम मिला। आखिर भार्गव वजारत खत्म हुई।
13 अप्रैल, 1950 को श्री भीमसेन सच्चर पंजाब के नये मुख्यमन्त्री बने। 4 दिन बाद 17 अप्रैल 1950 को 307 का मुकदमा नई सरकार ने वापिस लिया और चौधरी देवीलाल जेल से रिहा हुए। भीमसैन सच्चर ने किसानों से खुश होकर बेदखली बन्द करने के फैसले का ऐलान कर दिया। किन्तु शिमला पहुंचने तक भार्गव साहब तथा विधान सभा के मालगुजार सदस्यों के कारण सच्चर साहब का इरादा कानून बनने से पहले ही टूट गया। हालात इतने बिगड़ गये कि सच्चर साहब को जाना पड़ा।
18 अगस्त 1950 को भार्गव साहब पुनः पंजाब के मुख्यमन्त्री बने और 20 जून, 1951 तक इस पद पर बने रहे। पंजाब सरकार ने 1950 में एक ऐसा अध्यादेश जारी कर दिया, जिससे को लाभ के स्थान पर हानि हुई। इस अध्यादेश ने एक सौ स्टैण्डर्ड एकड़ तक की सीमा वाले जमींदारों को बेदखली का हक प्रदान कर दिया।1
चौधरी देवीलाल ने भार्गव सरकार तुड़वाने का निश्चय किया। कुछ ही दिनों बाद चौ० साहब के प्रयत्नों से सरदार गुरमुखसिंह मुसाफिर की अध्यक्षता में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली में बुलाई गई। इस बैठक में भार्गव मन्त्रिमण्डल की जनता-विरोधी नीतियों के कारण मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास करवाकर, सब सदस्यों सहित नेहरू जी से मिले और उन्हें भार्गव साहब के कारनामों से परिचित करवाया। श्री देवीलाल के प्रयत्नों तथा दूसरे साथियों के सहयोग से, भार्गव के सत्ताधारी दल को यह करारी चोट पड़ी। 20 जून, 1951 को भार्गव शासन समाप्त हो गया और पंजाब पर राज्यपाल का शासन लागू हो गया।
सन् 1952 में चौधरी देवीलाल के पिता चौ० लेखराम जी का देहान्त हो गया।
सन् 1952 में देश में आम चुनाव हुए। चौधरी देवीलाल कांग्रेस के टिकट पर सिरसा क्षेत्र से चौ० शिवकरणसिंह गोदारा (गांव चौटाला) को हराकर पंजाब विधानसभा के एम० एल० ए० बने। इस चुनाव के बाद हाई कमाण्ड की सहायता से भीमसैन सच्चर पुनः 1952 में पंजाब के मुख्यमन्त्री बन गये। प्रतापसिंह कैरों विधायकों के बहुमत के बावजूद भी दौड़ में पिछड़ गये। परन्तु इसी दिन से पंजाब-हरयाणा का सवाल जोरों से चल पड़ा।
कैरों भी पंजाब प्रान्त की प्रगति में सच्चर का साथ देने लगे। कैरों महकमा माल के वजीर थे। विधानसभा के हिन्दू सदस्यों में बहुमत हरयाणा के लोगों का था। मन्त्रिमण्डल में इनकी ओर से चौ० लहरीसिंह तथा पण्डित श्रीराम शर्मा दो को ही लिया गया। शेष सभी मन्त्री पंजाब के थे। चौधरी देवीलाल ने 1952 में एम० एल० ए० बनते ही यह स्पष्ट कर दिया कि हरयाणा प्रदेश के प्रति बिजली, सड़क, पानी, स्कूल सम्बन्धी निर्माण कार्यों से लेकर राजनैतिक प्रतिनिधित्व तक किसी भी किस्म के सौतेले बर्ताव को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू के नाराज होने पर सन् 1956 में लाला भीमसैन सच्चर को इस्तीफा देना पड़ा और सरदार प्रतापसिंह कैरों पंजाब के मुख्यमन्त्री बने। कैरों ने अपने मन्त्रिमण्डल में हरयाणा प्रदेश के प्रोफेसर शेरसिंह को उप मुख्यमन्त्री नियुक्त किया और लाला मूलचन्द जैन, चौ० चान्दराम, बक्शी प्रतापसिंह, चौ० दलवीरसिंह इत्यादि हरयाणा प्रदेश के विधायकों को अपने मन्त्रिमण्डल में स्थान दिया। चौधरी देवीलाल उसी समय कैरों मन्त्रिमण्डल में मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त हुए। श्री स्वरूपसिंह को उपाध्यक्ष के पद पर सुशोभित किया। चौ० देवीलाल के कहने पर कैरों ने राव वीरेन्द्रसिंह को उपमन्त्री बना दिया।
सन् 1957 के आम चुनाव में चौधरी देवीलाल को टिकट नहीं मिला। 1959 के उपचुनाव में सिरसा से विधानसभा के लिये भारी बहुमत से चुने गये। सन् 1962 में आम चुनाव हुये। चौ० देवीलाल ने कांग्रेस के विरुद्ध अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम हरयाणा लोक समिति रखा गया जिसका चुनाव निशान ‘सूर्य’ का था। चौ० देवीलाल फतेहाबाद के क्षेत्र से विधानसभा के लिये भारी मतों से विजयी हुए। आप की पार्टी के सब उम्मीदवार कामयाब हुए और वहां के कांग्रेसी उम्मीदवार हार गये।
रोहतक जिले के बेरी हल्के से आपकी पार्टी के उम्मीदवार प्रोफेसर शेरसिंह कांग्रेस के उम्मीदवार पं० भगवतदयाल से हार गये थे। अतः विधानसभा के पहले सत्र के शुरु होते ही, चौधरी देवीलाल, विरोधी पक्ष के सदस्यों की सहायता से, प्रो० शेरसिंह को पंजाब विधान परिषद् का सदस्य चुनने में कामयाब हो गये। चौधरी देवीलाल ने कैरों के खिलाफ यह बड़ी कामयाबी ली जिससे चौधरी साहब की जनता में मान्यता
हरयाणा राज्य का निर्माण तथा राजनीति
चौधरी देवीलाल से हरयाणा की उपेक्षा सहन नहीं हुई। इसी कारण से उसको पृथक् राज्य बनाने हेतु ये कष्टकारी आंदोलनों से जूझते रहे। आखिर उनकी जीत हुई और प्रथम नवम्बर 1966 को भारतीय संघ के सत्रहवें राज्य के रूप में हरयाणा का निर्माण हुआ। प्राचीनकाल से हरयाणा प्रदेश का नाम चला आता है जिसकी सीमा मौटे तौर पर दिल्ली के चारों ओर 200-250 मील रही है और दिल्ली इसकी राजधानी रही है। परन्तु सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई और उन्होंने हरयाणा का नाम नक्शों पर से हटा दिया। इसके जिलों को तोड़कर पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि प्रान्तों में मिला दिया गया था। इसके पश्चात् 109 वर्ष के बाद फिर छोटी सीमा का प्रदेश हरयाणा का निर्माण हुआ तथा भारत के नक्शे पर दिखाया जाने लगा। इस महान् कार्य का श्रेय चौधरी देवीलाल को है।
हरयाणा प्रान्त के मुख्यमन्त्री
1 नवम्बर 1966 को हरयाणा प्रान्त का निर्माण होने पर इसी दिन पं० भगवतदयाल शर्मा केन्द्रीय नेताओं के साथ अपनी सांठ-गांठ तथा भूतपूर्व पंजाब प्रदेश की कांग्रेस के अध्यक्ष होने की स्थिति का लाभ उठाते हुए, हरयाणा के प्रथम मुख्यमन्त्री बन बैठे। वह तो पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष के नाते हरयाणा राज्य के निर्माण का विरोध करते आ रहे थे। इस स्थिति परिवर्तन से हरयाणा के अधिकारों के लिए पिछले कई वर्षों से लड़ाई लड़ने वाले चौधरी देवीलाल का मुख्यमन्त्री बनने का वास्तविक अधिकार था। पंजाब के भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों से हरयाणा के हकों के लिए लड़ाई लड़कर कष्ट झेलने वालों में देवीलाल के अतिरिक्त किसी और का नाम खोजने पर भी नहीं मिलता।
चौधरी देवीलाल हरयाणा के बनते ही हरयाणा के हितों तथा स्वाभिमान की रक्षा के लिए सन् 1962 में स्वेच्छा से छोड़ी कांग्रेस में अपने अनुयायियों समेत पुनः मिल गये थे। श्री भगवतदयाल शर्मा राज्य की राजनैतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए देवीलाल के प्रभाव को शून्य कर देना चाहते थे। अपनी स्थिति और सुदृढ़ करने के लिए 18 नवम्बर 1966 को श्री रामकिशन गुप्ता को राज्य कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित करवा लिया।
सन् 1967 के आम चुनाव में चौधरी देवीलाल ने विपरीत दिशा को देखकर कांग्रेस टिकट का प्रत्याशी बनना ठीक नहीं समझा। कुल 81 सदस्यों के सदन में 48 स्थान प्राप्त करके 7 सदस्यों के बहुमत से पं० भगवतदयाल शर्मा दूसरी बार मार्च 10, 1967 को हरयाणा के मुख्यमन्त्री निर्वाचित हुए। उन्होंने 11 सदस्यों को मन्त्रिमण्डल में ले लिया। मुख्यमन्त्री बनते ही पण्डित जी ने जात-पात का भेदभाव पैदा कर दिया। उन्होंने एक सम्मेलन में, जो रोहतक अनाज मण्डी में हुआ था, अपने एवं लोकप्रियता प्रसिद्ध हो गई।
चौधरी देवीलाल – Chaudhary Devi Lal
भाषण में खुले तौर पर कहा कि “अब मैं इन चौधरियों की नहीं चलने दूंगा। इनके डोगे (लाठी या बैंत) खूंटियों पर रखवा दूंगा आदि आदि।” इनका तात्पर्य जाटों से था। इससे हरयाणा की जाट जाति एवं एम० एल० ए० सभी मुख्यमन्त्री से नाराज हो गये। मन्त्रिमण्डल के गठन के बाद 17 मार्च 1967 को स्पीकर के चुनाव के अवसर पर पंडित जी के प्रतिनिधि श्री दयाकिशन को विरोधी पक्ष के उम्मीदवार राव वीरेन्द्रसिंह के मुकाबले में 3 मत कम मिले। भगवतदयाल के विरुद्ध विद्रोह की यह योजना गुप्त रूप से दिल्ली में तैयार की गई थी।
इस आकस्मिक नाटक के सूत्रधार चौधरी देवीलाल उस समय विधानसभा की दीर्घा में बैठे थे। चौधरी साहब के छोटे पुत्र श्री प्रतापसिंह पहली बार जिला सिरसा के रोड़ी निर्वाचन क्षेत्र से जीतकर हरयाणा के विधायकों की श्रेणी में शामिल हुए थे। उस दिन अपने दल के नेता भगवतदयाल के विरुद्ध विद्रोह का झंडा ऊंचा करने वाले 12 कांग्रेसी विधायकों में से यह भी एक थे।
पं० भगवतदयाल 17 मार्च के दिन विधानसभा सदन में अपने मन्त्रिमण्डल की निर्णायक हार के बाद मन्त्रिमण्डल की बागडोर चौ० हरद्वारी लाल को सौंपकर स्वयं केन्द्रीय नेताओं से विचारविमर्श करने दिल्ली चले गये। केन्द्रीय नेताओं ने कांग्रेस दल के इस अपमान के लिए पण्डित जी को ही उत्तरदायी ठहराया। इधर चण्डीगढ़ में संयुक्त मोर्चे का विधिवत् गठन हो चुका था। संयुक्त मोर्चे के नेताओं ने तत्कालीन उपमुख्यमन्त्री चौ० हरद्वारीलाल को अपने यहां मन्त्री पद का प्रलोभन देकर फुसला लिया।
चौ० हरद्वारीलाल ने पहले तो मन्त्रिमण्डल के अन्य सदस्यों से यह कहा कि दिल्ली से पण्डित जी का फोन आया है कि मेरे हाथ मजबूत करने के लिए सब लोग अपना त्यागपत्र लिखकर मेरे पास दिल्ली भिजवा दें। जब सबके त्यागपत्र उनके कब्जे में आ गये तो राज्य के गवर्नर को पेश करके पण्डित जी का मन्त्रिमण्डल भंग करवा दिया। अब पण्डित जी को त्यागपत्र देने के सिवाय अन्य कोई रास्ता नहीं रह गया था। अतः उन्होंने 22 मार्च, 1967 को अपना त्यागपत्र राज्यपाल के पास भिजवा दिया। इस तरह से पं० भगवतदयाल का शासन तेरहवें दिन समाप्त हो गया। इसके पश्चात् वे हरयाणा के मन्त्रिमण्डल में नहीं आ सके।
24 मार्च 1967 को राव वीरेन्द्रसिंह हरयाणा के दूसरे मुख्यमन्त्री बने। उनके नेतृत्व में संयुक्त मोर्चे के 15 सदस्यों ने मन्त्री पद की शपथ ली1। इस मन्त्रिमण्डल में चौधरी साहब की अनुपस्थिति सबको खटक रही थी। राव साहब ने चौधरी साहब के पुत्र प्रतापसिंह को अपने मन्त्रिमण्डल में शामिल करने की स्वीकृति मांगी, जिसे चौधरी साहब ने अस्वीकार कर दिया। राव साहब के साथ भी चौधरी साहब की पटड़ी नहीं बैठी। राव साहब का लक्ष्य विशाल हरयाणा बनाने का था। अतः इसके संयुक्त मोर्चे को विशाल हरयाणा पार्टी के नाम से भी बोला जाता था।
चौधरी देवीलाल – Chaudhary Devi Lal
राव साहब ने जल्दी ही अपने अभिमानी स्वभाव का परिचय देना शुरु कर दिया। संयुक्त मोर्चे की निर्धारित नीतियों का उल्लंघन होने लगा। चौधरी साहब ने 13 जुलाई 1967 को राव के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया। 21 नवम्बर 1967 के दिन राव मन्त्रिमण्डल भंग हो गया। इस तरह राव साहब का मन्त्रिमण्डल 8 महीने रहा।
राव मन्त्रिमण्डल के भंग होते ही हरयाणा पर राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। राष्ट्रपति शासन के 6 मास बाद 1968 में हरयाणा विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हुये। चौधरी देवीलाल ने राज्य कांग्रेस के मामलों में अपने ढंग का महत्त्व स्वीकार करवा लिया था। एक बार पुनः राज्य कांग्रेस के सशक्त धड़े की बागडोर इनके सुगठित हाथों में थी। चौधरी साहब ने रोहतक की एक विशाल सभा में यह ऐलान कर दिया कि मैं आने वाले चुनाव में कांग्रेस दल का प्रत्याशी नहीं हूंगा। चौधरी साहब के बड़े पुत्र ओमप्रकाश को सिरसा तहसील के ऐलनाबाद निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस का प्रत्याशी बना दिया परन्तु वह चुनाव हार गये।
चौ० बंसीलाल ने 1967 में चुनाव लड़ा, वे जीतकर एम० एल० ए० बने परन्तु मन्त्रिमण्डल में नहीं लिये गये। 1968 के इस मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस टिकट पर चौ० बंसीलाल हरयाणा विधानसभा के लिये विजयी हुए। चौधरी देवीलाल ने इनको मुख्यमन्त्री बनवाने में भरपूर प्रयत्न किया। 21 मई, 1968 के दिन कांग्रेस पार्टी के नेता का चुनाव हुआ। चौ० बंसीलाल को सर्वसम्मति से नेता चुन लिया गया। आप हरयाणा के तीसरे मुख्यमन्त्री बने।
चौधरी देवीलाल चौ० मुख्त्यारसिंह एम० पी० और चौ० चांदराम की सहायता से चौ० बंसीलाल ने पं० भगवद्दयाल को हरयाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनने दिया। इसीलिये पंडित जी ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। इनके साथ 22 कांग्रेसी विधायक भी कांग्रेस से त्यागपत्र देने वाले थे परन्तु चौ० देवीलाल के प्रयत्न से वे सब भगवतदयाल से टूटकर बंसीलाल के खेमे में आ गये। चौ० बंसीलाल ने चौ० देवीलाल को खादी बोर्ड का चेयरमैन बना दिया।
चौधरी देवीलाल कहने पर मुख्यमन्त्री चौ० बंसीलाल ने भजनलाल को अपने मन्त्रिमण्डल में शामिल कर लिया। ऐलनाबाद के चुनाव में चौ० ओमप्रकाश हारे थे। अब उन्होंने पैटीशन जीत लिया। उस क्षेत्र में मध्यावधि चुनाव मई, 1969 में हुआ जिसमें ओमप्रकाश भारी बहुमत से जीत गया।
देवीलाल ने 1-1-1971 को खादी बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसका कारण मुख्यमन्त्री चौ० बंसीलाल का लोगों के साथ कड़ा व्यवहार एवं चौ० देवीलाल के साथ संघर्ष था। साथ ही उनके साथी मनीराम बागड़ी जैसे कहने लग गये थे कि आपका जनता में सम्मान है। किसानों और मुजारों के लिये आपने अपने जीवन के बेहतरीन दिन संघर्ष में बिताये हैं। अब उन्हें लाभ पहुंचाने की स्थिति में आकर आप खद्दर की दुकान पर जा बैठे हैं। यह काम आप जैसे प्रभावशाली राजनैतिक व्यक्ति को शोभा नहीं देता।
उन दिनों उत्तरप्रदेश में चौ० चरणसिंह के भारतीय क्रान्ति दल की धूम थी। राजस्थान भी इस बी. के. डी. के प्रचार और प्रसार में यू० पी० का मुकाबला कर रहा था। 3-1-71 को इस बी. के. डी. का वार्षिक अधिवेशन रोहतक में आयोजित हुआ। इस अधिवेशन के स्वागतमन्त्री श्री रामेश्वर नादान थे। अन्य प्रबन्धकर्त्ताओं में राजस्थान के कुम्भाराम आर्य, दिल्ली और यू० पी० से प्रकाशवीर शास्त्री, रघुवीर सिंह शास्त्री और हरयाणा के श्रीराम शर्मा, महन्त श्रियोनाथ तथा कोकचन्द शास्त्री थे। चौ० चरणसिंह ने इस सम्मेलन का उद्घाटन किया।
चौ० देवीलाल भी इस अवसर पर मंच पर उपस्थित थे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और
बी० के० डी० में शामिल हो गये। इसके पश्चात् आज तक कांग्रेस में शामिल न होकर इसके विरोधी हैं। सम्पूर्ण भारत में लोकसभा के चुनावों के साथ-साथ कुछ प्रान्तों में विधानसभा के चुनाव भी होने जा रहे थे। हरयाणा इनमें से एक प्रान्त था। चौ० देवीलाल ने विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस के दो महारथियों को ललकारा। मुख्यमन्त्री बंसीलाल को तोशाम हल्के से, सिंचाई एवं बिजली मन्त्री चौ० भजनलाल को आदमपुर से। इस चुनाव में चौ० देवीलाल दोनों ही स्थानों पर हार गये।
इस 1971 के चुनाव में हरयाणा प्रदेश में विरोधी पक्ष की स्थिति 1968 के मुकाबले में सुधरी थी। 1968 में विरोधी दलों को केवल 19 स्थान मिले थे जबकि 1971 में इनकी संख्या 29 हो गई थी। राज्यसभा के 2 स्थान खाली थे। विरोधी सदस्यों ने चौ० साहब को कहा कि हमारे पास कम से कम 29 मत हैं और राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए 27 मतों की जरूरत है। इसलिए आप राज्यसभा का चुनाव लड़िए, हम आपकी जीत का विश्वास दिलाते हैं। चौ० साहब मान गये। जब परिणाम निकला तो इन्हें केवल 19 मत मिले। लगातार्दो बार की हार से इतनी मायूसी हुई कि अपने घर जा बैठे। सन् 1972 में पूरे वर्ष अपने गांव चौटाला में बैठे रहे और अपनी खेती-बाड़ी की देखभाल करते रहे।
श्री प्रकाशसिंह बादल चौधरी साहब के पास चौटाला पहुंचे और उन्होंने चौ० देवीलाल को किसान आन्दोलन में अकाली दल का सहयोग देने का वचन दिया। बादल के कहने पर आप फिर से मैदान में आ गए। उस समय स्वामी इन्द्रवेश जी ने किसान आन्दोलन का भार उठा रखा था तथा वे हरयाणा के किसानों की संघर्ष समिति के प्रधान थे।
दिल्ली में किसान सम्मेलन में डेढ़ लाख किसान चौ० देवीलाल व श्री बादल के भाषण सुनने आये। चौधरी देवीलाल को किसान संघर्ष समिति का प्रधान चुन लिया गया। उन्होंने अपनी कार्यकारिणी समिति का निर्माण किया। 29-5-73 को सिरसा से शुरु करके 5 जून, 1973 तक रिवाड़ी में समाप्त होने वाले 7 जलसे लगातार करने का निश्चय किया।
चौ० देवीलाल की मुख्यमन्त्री चौ० बंसीलाल द्वारा कराई गई गिरफ्तारियां
29-5-73 को सिरसा में किसान सम्मेलन में स्वामी इन्द्रवेश व चौ० देवीलाल ने अपने भाषण दिये। भाषण के बाद पुलिस द्वारा चौ० देवीलाल को गिरफ्तार करके सिरसा से हिसार लाया गया। उसी हिसार जेल में मनीराम बागड़ी. डा० मंगलसैन, सरदार प्रकाशसिंह बादल इत्यादि नेताओं को भी लाया गया था। वहां से बागड़ी को रोहतक जेल में तथा देवीलाल को अम्बाला जेल में लाया गया।
चौ० बंसीलाल ने चौ० देवीलाल को ‘सी’ क्लास जेल दिलाई। उनके पुत्र ओमप्रकाश को ‘बी’ क्लास जेल दी गई। चौधरी साहब ने कहा था कि बड़ी हैरानगी की बात है कि बाप को ‘सी’ क्लास और बेटे को ‘बी’ क्लास जेल में रखा गया है।
चौ० बंसीलाल के आदेश से तारीखों पर चौधरी देवीलाल को अम्बाला जेल से सिरसा तक साधारण कैदी की तरह हथकड़ियां लगाकर बस में ले जाया जाता था। 30 मई सन् 1973 से 4 अक्तूबर 1973 तक यही क्रम चलता रहा। 4 अक्तूबर को पंजाब-हरयाणा के उच्च न्यायालय ने देवीलाल तथा उनके सब साथियों को रिहा कर दिया।
जेल से रिहा होते ही हिसार जिले के भट्टू गांव में एक विशाल किसान सम्मेलन किया गया जिसमें श्री मनीराम बागड़ी, शिवराम वर्मा, स्वामी इन्द्रवेश और चौधरी देवीलाल ने भाषण दिये। किसान संघर्ष समिति करनाल के नाम से एक मोर्चे का आयोजन हो चुका था।
मोहनसिंह तुड़ और प्रकाशसिंह बादल के नेतृत्व में पंजाब के 500 किसानों का एक मजबूत जत्था करनाल पहुंचा। उनके साथ चौधरी देवीलालएवं उनके साथी भी शामिल हो गये। करनाल स्टेशन पर पहुंचते ही इस जत्थे को आगे बढ़ने से रोकने के लिए भारी संख्या में पुलिस तैयार थी। जनता की काफी भीड़ जमा हो गई। जत्था इस जनता में शामिल होकर शहर में जुलूस निकालना चाहता था। इसके लिए पुलिस और जत्थे में काफी देर झड़पें होती रहीं। धारा 144 लगी हुई थी। अन्त में पुलिस ने इन सब सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया। सरदार मोहनसिंह तुड़ को रोहतक जेल में भेजा और चौ० देवीलाल, श्री शिवराम वर्मा, कर्नल पी० एस० गिल आदि को महेन्द्रगढ़ जेल में भेज दिया।
करनाल मोर्चे में गिरफ्तार लोगों पर मुकदमा शुरु हो गया। दो अढ़ाई माह तक मुकदमों की सुनवाई होती रही। न्यायाधीश ने चौधरी देवीलालऔर उनके साथियों को 7 से 15 दिन तक की सजा सुनाई। चौ० साहब ने अपने साथियों के साथ सज़ा के दिन रोहतक जेल में काटे।
रोड़ी हल्के के कांग्रेसी विधायक श्री हरकिशनसिंह की मृत्यु के कारण यहां का उपचुनाव हुआ। सब दलों ने मिलकर चौ० देवीलाल को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। कांग्रेस के उम्मीदवार चौ० बंसीलाल के रिश्तेदार चौ० इन्द्राजसिंह थे। कांग्रेस का पूरा जोर लगाने के बावजूद भी चौ० देवीलाल 17,000 मतों से विजयी हुए। गुजरात में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें विरोधी पक्ष की जीत हुई और वहां पर उनकी सरकार बनी। यह बात 11 जून 1975 की है।
25 जून 1975 को प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। उसी दिन सब बड़े-बड़े विरोधी दल के नेताओं को कैद कर लिया गया। चौ० देवीलाल को उसी दिन सोहना में गिरफ्तार कर लिया गया। वहां से आपको हिसार जेल में लाया गया और 10 दिन के बाद वहां से महेन्द्रगढ़ जेल में भेज दिया गया। जुलाई महीने में आपको चर्मरोग एग्जीमा सारे शरीर में फैल गया।
इलाज के लिए मैडीकल रोहतक में लाया गया। अस्पताल में दाखिल न करके रोहतक जेल में रखा गया। वहां पर आप अन्य नेताओं से मिले। 2 माह यहां रहने के बाद आपको गुड़गांव जेल में भेजा गया। 26 जनवरी, 1977 को चौधरी देवीलाल को रिहा कर दिया गया। आपने 19 माह तक जेल में रहकर काफी कष्ट सहन किये।
चौधरी देवीलाल हरयाणा के मुख्यमन्त्री के पद पर
चौधरी चरणसिंह व जयप्रकाश नारायण के प्रयत्नों से कई पार्टियों का विलय करके जनता पार्टी का गठन 23 जनवरी, 1977 को हो गया था। आपातकाल स्थिति 21 माह तक रहकर देश में लोकसभा के आम चुनाव मार्च 1977 में हुए जिसमें जनता पार्टी की महान् विजय हुई। उत्तरी भारत में तो कांग्रेस का पूरा सफाया हो गया, यहां से कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार कामयाब न हो सका। देश में 23 मार्च 1977 को जनता पार्टी का शासन स्थापित हो गया। मोरारजी देसाई देश के प्रधानमन्त्री बने और चौ० चरणसिंह गृहमन्त्री बने।
गृहमन्त्री चौ० चरणसिंह ने भारत के 8 प्रान्तों में जून 1977 में मध्यावधि चुनाव कराये। उन प्रान्तों में से एक हरयाणा प्रान्त भी था। इन आठ प्रान्तों में से एक हरयाणा प्रान्त भी था। इन आठ प्रान्तों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। जनता पार्टी की भारी विजय हुई। इन सब प्रान्तों में जनता पार्टी का शासन स्थापित हुआ। हरयाणा प्रान्त में जनता पार्टी को 90 में से 75 सीटें प्राप्त हुईं।
21 जून 1977 के दिन चौधरी देवीलालहरयाणा विधान सभा की जनता पार्टी के नेता निर्वाचित होकर हरयाणा प्रान्त के पांचवें मुख्यमन्त्री बने। याद रहे कि चौ० बंसीलाल हरयाणा प्रान्त के तीसरे मुख्यमन्त्री 21 मई 1968 से दिसम्बर 1975 तक रहे और दिसम्बर 1975 में भारत के रक्षामन्त्री बने। दिसम्बर 1975 में कांग्रेस पार्टी के हरयाणा के चौथे मुख्यमन्त्री श्री बनारसीदास गुप्ता बने जो 20 जून 1977 तक रहे।
चौ० देवीलाल ने अपना मन्त्रिमण्डल बनाया और ब्रिगेडियर रणसिंह अहलावत, जो बेरी हल्के से विजयी हुए थे, को स्पीकर चुना गया। फिर चौ० देवीलाल ने उनको कृषि मन्त्री नियुक्त किया। वह चौधरी साहब के अच्छे सलाहकार व सहायक रहे।
काजला जाट गोत्र – Kajla Jat gotra
मुख्यमन्त्री चौ० देवीलाल के कारनामे
मुख्यमंत्री बनने के बाद चौ० देवीलाल ने हरयाणा की जनता की भलाई के लिए निम्नलिखित कार्य किए –
- 1. भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त कदम उठाया।
- 2. 6¼ एकड़ भूमि पर सारा मालिया माफ कर दिया।
- 3. मजदूर-किसानों को राहत देने के लिए “काम के बदले अनाज” की योजना चलाई।
- 4. किसानों के ट्रेक्टरों पर लगे टोकन टैक्स माफ कर दिये और लोगों को बारात या जलसों में ट्रेक्टरों में बैठकर जाने की अनुमति दी।
- 5. विकास के कामों को तेज करने के लिए मैचिंग ग्रांट की योजना चालू की। यानि गांव की पंचायत किसी कार्य के लिए जितनी राशि सरकार में जमा करेगी, उतनी ही राशि सरकार उसे और देगी, जिससे वह राशि दुगुनी हो जाएगी।
- 6. चौधरी साहब के शासनकाल में औले पड़ने से गेहूं, चने की फसल को काफी हानि पहुंची, इसके लिए आपने 300 रुपये एकड़ के हिसाब से किसानों को मुआवजा दिलवाया। भारतवर्ष में यह पहली मिसाल है।
- 7. हर गांव में हरिजनों की चौपालें सरकारी खर्च पर बनवाईं।
- 8. 5 जुलाई 1977 को जिलाधिकारियों द्वारा चन्दे व फण्ड एकत्रित करने बन्द कर दिये।
- 9. पिछड़ी जातियों के लिए 2% की बजाए 5% सीटें सुरक्षित कराईं।
- 10. बैंकों द्वारा किसानों को दिये जाने वाले ऋण पर ब्याज की दर 14% से घटकर 11% कराई गई, जिससे किसानों को 3% ब्याज का लाभ हुआ।
- 11. किसानों के गन्ने का मूल्य बढ़ाया गया।
- 12. बेरोजगारों को काम देने के लिए ग्राम उद्योगों की योजना चालू की।
- 13. सितम्बर 1977 में अचानक बाढ़ आयी। साहबी नदी ने 200 गांव डुबो दिये। चौ०
देवीलाल ने इन गांवों को बचाने के लिए 5 मीटर चौड़ा बांध बनवाने की योजना बनायी और प्रधानमन्त्री से मिलकर एक मास्टर प्लान तैयार करवाई। बाढ़ पीड़ित गांव के लिए रिंग बांध बांधने की स्कीम का उद्घाटन किया।
- 14. चौ० सर छोटूराम के जन्मदिन पर बसन्त पंचमी के दिन हरयाणा प्रान्त में छुट्टी की घोषणा की।
- 15. हरयाणा के अनेक देहाती प्राइमरी, मिडल, हाई स्कूलों की ऊंची श्रेणी की।
प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई द्वारा देवीलाल सरकार को हटाने की पहला षड्यन्त्र
प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई और जनता पार्टी अध्यक्ष चन्द्रशेखर ने देवीलाल की सरकार को तुड़वाने का षड्यन्त्र चौ० भजनलाल के द्वारा किया। भजनलाल ने अपना अलग गुट बना लिया और चौधरी देवीलाल के विरुद्ध स्वयं सरकार बनाने का ऐलान कर दिया। शक्ति परीक्षण के लिए दोनों गुटों को प्रधानमन्त्री ने दिल्ली बुलाया। चन्द्रशेखर की अध्यक्षता में मीटिंग हुई। प्रधानमन्त्री भी वहां उपस्थित थे। दोनों धड़ों के एम० एल० ए० की गिनती की गई। 75 एम० एल० ए० में से चौ० भजनलाल की तरफ 38 तथा चौ० देवीलाल की ओर 37 थे। स्पीकर ब्रिगेडियर रणसिंह साहब भी वहीं पर थे।
ये प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने उनसे कहा कि आप स्पीकर हैं, आपका पार्टी के आपसी झगड़ों में भाग लेना गलत है अतः आप बाहर जायें। यदि आप वोटिंग में भाग लेना चाहते हो तो स्पीकर पद से अपना त्यागपत्र दे दो। उन्होंने स्पीकर पद से त्यागपत्र देकर अपना वोट चौ० देवीलाल को दिया, जिससे दोनों धड़ों की संख्या बराबर-बराबर हो गई। इस तरह से देवीलाल सरकार टूटने से बच गई। फिर शक्ति परीक्षण के लिए 7 दिन और दिये गये।
इस बार शक्तिपरीक्षण में देवीलाल को 40 मत मिले तथा वे 40 मतों से विजयी हुए। इसके लिए बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्त्ता चौ० देवीलाल को धन्यवाद देने आये। चौ० देवीलाल ने बड़ी प्रसन्नता से उनको कहा कि आप ब्रिगेडियर रणसिंह को धन्यवाद दो, जिन्होंने स्पीकर पद से अपना त्यागपत्र देकर मेरी सरकार को बचा लिया। यह घटना जून 1979 की है। इसके बाद चौधरी देवीलाल की सरकार एक वर्ष तक और चलती रही1।
मई 1979 ई० में चौ० भजनलाल अपने साथ लगभग 50 एम० एल० ए० को लेकर भारत दर्शन पर गये। इन्हीं दिनों हरयाणा कृषि मन्त्री ब्रिगेडियर रणसिंह अहलावत दिल्ली हरयाणा भवन में ठहरे हुए थे। मई मास की एक रात्रि को राजा दिनेशसिंह मे अपने प्राइवेट सेक्रेटरी को भेजकर ब्रिगेडियर साहब को बुलाया। आप उसकी कार में बाबू जगजीवनराम जी की कोठी पर गए जहां पर राजा दिनेशसिंह भी मौजूद थे।
बाबूजी ने ब्रिगेडियर साहब से कहा कि “आप हमारे गुट में आ जाओ, हम आपको हरयाणा का मुख्यमंत्री बनायेंगे।” ब्रिगेडियर साहब ने इस बत को यह कर कर अस्वीकार कर दिया कि हरयाणा में किसान सरकार है और मैं भी एक किसान हूं, अतः ऐसा करना मेरे को शोभा नहीं देता। आपने चौ० चरणसिंह व चौधरी देवीलाल के गुट को नहीं छोड़ा। आपने वापस आकर ये सब बातें श्रीमती चन्द्रावती देवी को बतला दीं। उसने दिन निकलते ही इन सब बातों से चौ० चरणसिंह को अवगत कराया। चौ० चरणसिंह बड़े खुश हुए और उन्होंने ब्रिगेडियर साहब की बड़ी प्रशंसा की2।
चौधरी देवीलाल की जगह चौ० भजनलाल मुख्यमंत्री
चौधरी देवीलाल ने अपने मन्त्रिमण्डल में चौ० भजनलाल को मंत्री बनाकर बड़ा धोखा खाया। 8 मई सन् 1982 को हरयाणा विधान सभा के चुनाव प्रचार में भालोठ गांव (जि० रोहतक) के जलसे में चौ० चरणसिंह ने अपने भाषण में कहा था कि “मैंने चौधरी देवीलाल को कहा था कि चौ० भजनलाल को अपने मन्त्रिमण्डल में मत लो क्योंकि यह कभी भी धोखा दे सकता है। और उसने ऐसा ही किया।” यह घटना इस तरह से हुई। जब प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई और चन्द्रशेखर ने सांठ-गांठ करके चौ० चरणसिंह का उनके गृहमन्त्री पद से इस्तीफा मांग लिया, तो भारतवर्ष के किसानों को बड़ा भारी खेद हुआ।
भारत के किसानों ने अपनी शक्ति चौ० चरणसिंह के साथ दिखाने के लिए उनके 77वें जन्मदिन 23 दिसम्बर 1978 को दिल्ली बोट क्लब पर एक विशाल किसान रैली का आयोजन किया। यह संसार की सबसे बड़ी रैली ती जिसमें भारत के 40 लाख किसानों ने भाग लिया और चौ० चरणसिंह को 77 लाख रुपये की थैली भेंट की। चौ० देवीलाल मुख्यमन्त्री हरयाणा के प्रयत्नों से उस रैली में हरयाणा के किसान सबसे अधिक संख्या में पहुंचे और आपने हरयाणा की ओर से 52 लाख रुपये इस 77 लाख की थैली में शामिल किये।
इस भारी किसान रैली से डरकर मोरारजी देसाई ने चौ० चरणसिंह को उपप्रधानमन्त्री तथा वित्तमन्त्री का पद दे दिया। परन्तु दिल में द्वेष बढ़ता गया। मोरारजी ने चौधरी देवीलाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिये चौ० भजनलाल को दोबारा उकसाया और हरयाणा विधान सभा के 75 जनता पार्टी सदस्यों के दो धड़े करवा दिये। जब देखा कि भजनलाल ने एम० एल० ए० खरीद कर अपना धड़ा मजबूत कर लिया है तब सब सदस्यों को दिल्ली बुलाकर शक्ति परीक्षण करवा दिया जिसमें चौ० भजनलाल विजयी हुए।
इस तरह से चौ० भजनलाल हरयाणा प्रान्त के छठे मुख्यमन्त्री बन गए। यह घटना जून 1979 की है। चौधरी देवीलालदो वर्ष तक हरयाणा के मुख्यमन्त्री रहे। 4 जनवरी 1980 को भारत में लोकसभा के आम चुनाव हुए जिसमें इंदिरा कांग्रेस की जीत हुई और जनवरी 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी फिर देश की प्रधानमन्त्री बनी। चौ० भजनलाल ने इंदिरा जी को सबसे पहले मुबारिकबाद दी और अपने जनता पार्टी तथा अन्य विधायकों समेत दल बदलकर इंदिरा कांग्रेस में शामिल हो गया। इस तरह से चौ० भजनलाल ने आयाराम गयाराम का एक विश्व रिकार्ड रख दिया। लोकसभा के इस चुनाव में चौधरी देवीलाल सोनीपत संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुन लिए गए।
जाटों ने चौधरी छोटूराम की शिक्षाओं को भुलाया तो कष्ट उठाया
19 मई 1982 को हरयाणा विधान सभा के चुनाव
अब हरयाणा विधान सभा के चुनाव 1982 में हुये। चौ० चरणसिंह भारतीय लोकदल के प्रधान थे। चौ० देवीलाल, कर्पूरी ठाकुर, बीजू पटनायक, कुम्भाराम आर्य आदि चौ० चरणसिंह से नाराज होकर उनकी सलाह के विरुद्ध जनता पार्टी के सम्मेलन में पहुंच गये। चन्द्रशेखर की अध्यक्षता में यह सम्मेलन 12 अप्रैल 1982 को हुआ था। वहां उन्होंने जनता पार्टी में शामिल होने का ऐलान कर दिया। चुनाव 19 मई 1982 को होने थे, इससे कुछ ही दिन पहले यह घटना हुई। परन्तु जनता पार्टी में कोई लाभ न होने के कारण ये नेता फिर चौ० चरणसिंह की पार्टी में चुनाव से पहले वापिस आ गए। चौ० देवीलाल व डा० स्वरूपसिंह ने हरयाणा में टिकटों का फैसला
किया। 19 मई 1982 को चुनाव हुए जिनमें चौ० देवीलाल की लोकदल पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी जिसके हरयाणा के अध्यक्ष डॉ० मंगलसेन थे, ने मिलकर चुनाव लड़ा तथा सीटों का बटवारा मिलकर किया। चौ० देवीलाल को 90 में से 48 सदस्यों का, जिसमें कुछ भारतीय जनता पार्टी के भी शामिल थे, समर्थन था। चौ० देवीलाल एवं डॉ० मंगलसेन 48 सदस्यों के हस्ताक्षर करवाकर तत्कालीन राज्यपाल श्री जी० डी० तपासे के पास शनिवार 22 मई को पहुंचे और चौ० देवीलाल ने अपना बहुमत राज्यपाल को बताया।
राज्यपाल ने चौ० देवीलाल को 24 मई सोमवार को 10 बजे सुबह राजभवन में अपने साथियों सहित उपस्थित होकर मुख्यमन्त्री की शपथ लेने के लिए बुलाया। परन्तु श्रीमती इन्दिरा गांधी के संकेत पर राज्यपाल ने रविवार 23 मई 1982 के दिन चौ० भजनलाल को मुख्यमन्त्री पद की शपथ दिला दी जबकि उनकी पार्टी अल्पसंख्यक थी। राज्यपाल ने चौ० भजनलाल को 30 जून 1982 को विधानसभा में अपनी पार्टी का बहुमत सिद्ध करने के लिए मौका दिया। इस दौरान में चौ० भजनलाल ने अन्य कई विधायकों को खरीद लिया।
सुना जाता है कि यह खरीद 20-20 लाख रुपये देकर तथा अन्य प्रलोभन देकर की गई। 30 जून को चौ० भजनलाल ने अपना बहुमत सिद्ध कर दिया और वे दोबारा हरयाणा प्रान्त के मुख्यमन्त्री बन गये। यह इन्दिरा गांधी, राज्यपाल तपासे तथा चौ० भजनलाल का जानबूझकर किया गया षड्यंत्र, अन्याय, भ्रष्टाचार और कांग्रेस (ई) की खुले तौर पर अवैधानिक कार्रवाई थी। चौ० भजनलाल को 23 मई को मुख्यमन्त्री पद की शपथ दिलाने के अगले दिन चौ० देवीलाल अपने 48 साथियों सहित राज्यपाल तपासे के राजभवन में पहुंचे और वहां जाकर उसके द्वारा किये गये अन्याय पर उसको बुरी तरह धमकाया तथा लज्जित किया।
चौधरी देवीलाल – Chaudhary Devi Lal
31 अक्तूबर 1984 को प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की अपनी कोठी में अपने ही दो अंगरक्षकों ने गोलियां मारकर हत्या कर दी। उसी दिन उसके पुत्र राजीव गांधी को राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह द्वारा प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिला दी गई। देश के लोकसभा के आम चुनाव 24 दिसम्बर 1984 को हुये जिसमें कांग्रेस (इ) भारी बहुमत से विजयी हुई। इसका कारण इन्दिरा सहानुभूति – इन्दिरा लहर था। हरयाणा के चौ० देवीलाल की दलित मजदूर किसान पार्टी1 के सभी 10 उम्मीदवार हार गये और चौ० साहब भी स्वयं सोनीपत हल्के से चौ० धर्मपालसिंह मलिक कांग्रेस उम्मीदवार से हार गए। परन्तु इतनी बुरी हार के पश्चात् भी साहसी वीर चौ० देवीलाल ने अपने संघर्ष के लक्ष्य को जारी रखा।
24 जुलाई 1985 को श्री राजीव गांधी ने उग्रवादियों से डरकर संत हरचन्दसिंह लोंगोवाल के साथ पंजाब समझौता कर लिया जिसकी 9 व 7 धाराएं हरयाणा के खिलाफ जाती हैं। इस समझौता के लिए चौ० भजनलाल और बंसीलाल से पूछा तक भी नहीं गया। इस समझौते का मुख्यमन्त्री चौ० भजनलाल, चौ० बंसीलाल ने स्वागत किया। हरयाणा के किसी भी कांग्रेसी नेता ने इसका विरोध नहीं किया। चौ० देवीलाल ने इसका डटकर विरोध किया और इस समझौते को हरयाणा के किसानों तथा जनता के साथ अन्याय बताया और इसको मानने से इन्कार कर दिया।
1. नोट – 1983 में लोकदल में बहुगुणा तथा उसकी पार्टी का विलय हो गया। उस समय इस पार्टी का नाम दलित मजदूर किसान पार्टी रखा गया जिसके अध्यक्ष चौ० चरणसिंह थे। 24 दिसम्बर 1984 के लोकसभा चुनाव के बाद फिर इस पार्टी का नाम लोकदल ही रखा गया।
संघर्ष समिति का गठन तथा उसके आन्दोलन
चौ० देवीलाल ने पंजाब समझौते में हरयाणा के हितों की अवहेलना के विरुद्ध रोष प्रकट करने हेतु संघर्ष समिति का गठन किया जिसमें हरयाणा की सभी जातियां शामिल हुईं। चौ० देवीलाल हरयाणा लोकदल एवं हरयाणा संघर्ष समिति के अध्यक्ष बने। इस संघर्ष समिति में मुख्य नेता यह थे –
श्री बनारसीदास गुप्ता, मास्टर हुकमसिंह, हीरानन्द आर्य श्रीमती चन्द्रावती देवी, बलवन्त राय तायल, कृपाराम पूनिया, राव वीरेन्द्र के पुत्र राव अजीतसिंह, मूलचन्द जैन, चौ० वीरेन्द्रसिंह, डा० मंगलसेन, श्री सूरजभान, खुर्शीद अहमद, राव रामनारायण। भगवतदयाल शर्मा (जो चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस में मिल गये), प्रोफेसर सम्पतसिंह आदि। चौ० देवीलाल ने चुनाव लड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी से समझौता किया। 14 अगस्त 1985 को देवीलाल तथा उनके साथियों सहित 19 विधायकों ने अपने त्यागपत्र दे दिये।
1. 5 दिसम्बर 1985 को संघर्ष समिति की न्याय-यात्रा हिसार से शुरु हुई जो पैदल चलकर 19 दिसम्बर 1985 को दिल्ली बोट क्लब पहुंची। बड़ी भारी संख्या में जनता वहां पहुंच गई थी। संसद का घेराव करने के लिए भीड़ आगे को बढ़ती जा रही थी। पुलिस ने लोगों को रोका, 25,000 कार्यकर्त्ताओं ने गिरफ्तारियां दीं। न्याय यात्रा पूरे तौर से सफल रही। दिल्ली की सरकार घबरा गई।
2. 23 जनवरी 1986 को ‘हरयाणा बन्द’ हुआ। पूरे हरयाणा में सब दुकानें बन्द रहीं। सब पहिये जाम हो गये। कोई रहड़ी, मोटर साईकल, गाड़ी, साईकल तक भी न चली। दिल्ली सरकार ने हरयाणा से होकर जाने वाली रेलगाड़ियां, बसें आदि रोक दीं। कहरावर (जि० रोहतक) के स्टेशन पर पंजाब मेल को रोक लिया। उसमें सिक्ख यात्री भी बहुत थे। इस गांव के लोगों ने उन यात्रियों को खाना, दूध, चाय आदि दिया तथा उनके साथ अच्छा सलूक किया। परन्तु उनकी गाड़ी को शाम तक रोके रखा।
इस दिन पुलिस की गोलियों से धर्मवीरसिंह गांव प्योदा (कुरुक्षेत्र), लाट गांव (जि० सोनीपत) के सरपंच बलवीरसिंह और ओमप्रकाश गोयल पानीवाला मोटा (जिला सिरसा) शहीद हुये और सैंकड़ों लोग घायल हुये। 26 जनवरी 1986 को प्रधानमन्त्री ने चण्डीगढ़ पंजाब को भेंट करना था, परन्तु 23 जनवरी के ‘हरयाणा बन्द’ को देखकर उनका ऐसा करने का साहस न हुआ। चौ० देवीलाल ने इन तीनों शहीदों के परिवारों को एक-एक लाख रुपये दिये।
3. 23 मार्च 1986 को जींद में समस्त ‘हरयाणा सम्मेलन’ हुआ जिसमें लोगों की कई लाख की संख्या थी।
4. 23 मई 1986 को चौधरी भजनलाल मुख्यमन्त्री हरयाणा के खिलाफ असहयोग आंदोलन
चल पड़ा। चौ० भजनलाल तथा उसके किसी मंत्री की शहर व गांव में जाकर जलसा करने की हिम्मत न पड़ी। यही कहावत प्रसिद्ध हो गई कि हरयाणा की जनता मुख्यमंत्री भजनलाल के आदेश को न मानकर अपने नेता देवीलाल के ही आदेश का पालन करती है। प्रधानमंत्री ने भजनलाल को दिल्ली बुला लिया और उसकी जगह चौ० बंसीलाल का रेलमंत्री पद से इस्तीफा मांगकर उसे हरयाणा का मुख्यमन्त्री नियुक्त कर दिया। चौ० बंसीलाल 4 जून 1986 को दोबारा हरयाणा के मुख्यमंत्री बने।
5. चौ० बंसीलाल ने देवीलाल आंधी को रोकने के लिए सरकारी रैलियां शुरु कीं, परन्तु 21 जून 1986 के हरयाणा बन्द ने फिर भारी भूकम्पी झटका दिया।
6. चौ० बंसीलाल ने 9 जुलाई 1986 ई० को रोहतक अनाज मण्डी में अपना जलसा रखा। चौ० देवीलाल ने उसी दिन रोहतक में ही अपना जलसा रखा। चौ० बंसीलाल के आदेश पर 7-8 जुलाई 1986 ई० को लोकदलभाजपा के सब नेता और सक्रिय कार्यकर्त्ता गिरफ्तार कर लिए गये। चौ० देवीलाल को 8 जुलाई 1986 को रोहतक में गिरफ्तार किया गया। रोहतक शहर में धारा 144 लगाई गई, परन्तु चौ० बंसीलाल ने खुद अपना जलसा बन्द नहीं किया। सरकारी ट्रकों में लोगों को लाया गया किन्तु वे चौ० देवीलाल की जय बोलते आये। पुलिस ने देवीलाल के समर्थकों के ट्रेक्टरों को रोकना चाहा मगर वे रुक न सके।
7. 23 जनवरी 1987 को उन तीन शहीदों की पहली बरसी पर रोहतक जाट हाई स्कूल के विशाल मैदान में शहीदी रैली हुई जिसमें लगभग 10-12 लाख लोगों ने भाग लिया। इस अवसर पर चौ० अजीतसिंह, पं० भगवतदयाल तथा दूसरे प्रान्तों से आये कई नेताओं ने चौ० देवीलाल के समर्थन में भाषण दिये। लोकदल उपाध्यक्ष बहुगुणा ने भी अपना भाषण दिया।
पं० भगवतदयाल के भाषण के कुछ अंश -“मैंने आज तक इतनी बड़ी रैली नहीं देखी है। इसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से लोग यहां अपने खर्चे से तथा अपनी इच्छा से आये हैं। देवीलाल हरयाणा के मुख्यमन्त्री तो बन गये इसमें कोई शक नहीं है, परन्तु हमने तो इनको भारत के नेता बनाना है जिससे ये इस भ्रष्ट कांग्रेस सरकार को दिल्ले से भी उखाड़ फेंकें। मैं अपना समर्थन चौ० देवीलाल को देता हूं और इस पर अटल रहूंगा। मेरे अन्दर कुछ कमियां हैं लेकिन मैं जबान का पक्का हूं। मैं ब्राह्मण हूं जिसकी जबान कभी भी बदल नहीं सकती।”
मगर बड़े आश्चर्य की बात है कि चुनाव से ही कुछ दिन पहले, प्रधानमन्त्री द्वारा दिये जाने वाले प्रलोभन से पण्डित जी, जबान पर कायम न रहकर, कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये।
इस विशाल रैली तथा देवीलाल की संघर्ष समिति के बढ़ते प्रभाव को देखकर चौ० बंसीलाल तथा केन्द्रीय सरकार घबरा गई। उन नेताओं को डर हुआ कि यदि 23 मार्च 1987 को केरल, बंगाल और जम्मू-कश्मीर के साथ हरयाणा के चुनाव करा दिये तो कांग्रेस की करारी हार होगी और हरयाणा में कांग्रेस की हार हो जाने पर उत्तरी भारत में कांग्रेस का सफाया हो जाएगा। अतः केन्द्रीय सरकार के चुनाव आयोग पर दबाव देकर हरयाणा के चुनाव 23 मार्च को नहीं होने दिये तथा यहां पर चुनाव की तारीख 17 जून रख दी गई।
चौधरी चरण सिंह महीनों के लकवे की बीमारी के कारण बोल नहीं सकते थे। उनका इलाज राममनोहर लोहिया हस्पताल में चल रहा था, फिर अमेरिका ले जाया गया। वहां पर इलाज न होने के कारण वापिस भारत लाया गया तथा 29 मई 1987 को भारत के महान् नेता का स्वर्गवास हो गया। 5 मार्च 1987 को चौ० अजीतसिंह ने अपने नाम से लोकदल (अ) अलग बना लिया। दूसरा बहुगुणा के नाम से लोकदल (ब) बन गया। इस तरह चुनाव के कुछ ही दिन पहले लोकदल के दो धड़े हो गये जिसका लाभ कांग्रेस को और हानि लोकदल की होनी थी।
चौ० अजीतसिंह ने चौधरी देवीलाल के मुकाबिले में अपने 54 उम्मीदवार खड़े किये। 90 सीटों के लिए चौधरी देवीलाल का लोकदल (ब) और भारतीय जनता पार्टी ने सीटों का बटवारा करके मिलकर चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने सब 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये। लोकसभा के लिए भिवानी से लोकदल (ब) के उम्मीदवार चौ० रामनारायण I.A.S. और कांग्रेस के चौ० दयानन्द थे। रोहतक से लोकसभा के लिए लोकदल (ब) के उम्मीदवार सन्त हरद्वारी लाल, कांग्रेस के प्रो० शेरसिंह लोकदल (अ) की श्रीमती गायत्री देवी थी।
17 जून 1987 को चुनाव हुआ जिसमें देवीलाल की आंधी ने कांग्रेस का सफाया कर दिया जिसका नतीजा इस प्रकार है –
विधानसभा की 90 सीटों में से लोकदल (ब) 59 पर विजयी हुआ। कांग्रेस केवल 5 पर, भारतीय जनता पार्टी 18 सीटों पर विजयी हुई, आजाद 6 पर, सी.पी.एम. 1 सी.पी.आई. 1 – इन सबको देवीलाल ने अपना समर्थन दिया था। लोकदल (अ) सब स्थानों पर हार गया। इस दल के 53 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। केवल एक चौ० ओमप्रकाश बेरी हारकर अपनी जमानत बचा सके। लोकसभा के लिए सन्त हरद्वारीलाल व चौ० रामनारायण विजयी हुए, बाकी सबकी जमानत जब्त हुई।
तोशाम विधानसभा क्षेत्र से चौ० धर्मवीर ने चौ० बंसीलाल को हराया। इस तरह से न्याय युद्ध की बड़ी भारी जीत हुई। 18 जून 1977 को चौ० बंसीलाल ने मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा दे दिया। हरयाणा के राज्यपाल एस० एम० एच० बर्नी ने चौ० देवीलाल को 20 जून 1987 को हरयाना के मुख्यमन्त्री पद की शपथ दिला दी। चौ० देवीलाल ने अपना मन्त्रीमण्डल बनाया।
मुख्यमन्त्री बनते ही चौ० देवीलाल द्वारा किए गए जन-कल्याण कार्य
- 1. 227.51 करोड़ रुपये के ऋण माफ कर दिये हैं। इसमें 7.48 लाख छोटे किसानों, भूमिहीन मजदूरों, छोटे दुकानदारों, दस्तकारों, अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों को लाभ होगा।
- 2. खेत के बिल्कुल साथ लगती वन विभाग के वृक्षों के एक पंक्ति की बिक्री से होने वाली आय की 50 प्रतिशत राशि खेत के मालिक को दी जाएगी ताकि इस प्रकार के वृक्षारोपण से होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति हो सके।
- 3. शिक्षित बेरोजगार युवकों के लिए साक्षात्कार पर जाने हेतु हरयाणा रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है।
- 4. 17 जून 1987 को 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाले या इससे अधिक आयु वाले वृद्ध व्यक्तियों को 100 रुपये प्रति मास की दर से वृद्धावस्था पेंशन दी गई है। जिनकी संख्या 6 लाख 25 हजार है।
- 5. किसानों को उनके उत्पादन का लाभदायक मूल्य सुनिश्चित किया जाएगा ताकि उनके आर्थिक स्तर में सुधार हो सके।
- 6. खेतों तथा कारखानों में उत्पादन बढ़ाने के लिए बिजली और जल आपूर्ति में वृद्धि करने के प्रयास किए जाएंगे
- 7. सतलुज-यमुना योजक नहर के निर्माण को शीघ्र पूरा करवाने के लिए कदम उठाए जायेंगे ताकि हम अपने हिस्से के पानी का अत्यधिक उपयोग कर सकें।
- 8. लोगों की शिकायतों को तत्परता से दूर किया जाएगा। यह भी ध्यान रखा जाएगा कि उन्हें कोई असुविधा न हो।
- 9. किसानों को रबी के बीजों, उर्वरकों, खरपतवार नाशक तथा कीटनाशक दवाइयों पर अनुदान देने के लिए सात करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
- 10. सूखा प्रभावित क्षेत्रों में तकावी तथा आबियाना की वसूली स्थगित कर दी गई है।
- 11. सूखे से प्रभावित किसानों को राहत पहुंचाने के लिए किसानों द्वारा लिए गए अल्पकालीन ऋणों को मध्यम कालीन ऋणों में बदल दिया गया है।
- 12. राज्य के समृद्ध लोगों तथा राज्य से बाहर बसे हरयाणवियों को स्कूल भवनों, हस्पताल तथा धर्मशालाओं जैसी सामाजिक उपयोगिता की परियोजनाओं के लिए दान देने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए मैचिंग ग्रांट दी जाएगी।*
राष्ट्र की विपक्षी पार्टियों को संगठित करने में चौ० देवीलाल का योगदान
चौ० देवीलाल ने, हरयाणा के मुख्यमन्त्री बनते ही, भारतवर्ष में द्विदलीय शासन प्रणाली की स्थापना के प्रयास आरम्भ कर दिये। इस शृंखला में चौ० देवीलाल ने 23 सितम्बर 1987 ई० को बड़खल झील सूरजकुण्ड (हरयाणा) में भारत के विपक्षी दलों की सर्वप्रथम एक सभा बुलाई। इस सभा में भारत में कांग्रेस (इ) के विकल्प के रूप में एक संगठित दल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। इस सभा में देश की लगभग सभी विपक्षी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं ने भाग लिया।
इसी सिलसिले में चौ० देवीलाल ने 23 नवम्बर, 1987 ई० को शामली (उत्तरप्रदेश) में एक विशाल सभा का आयोजन किया। इसके पश्चात् सभी विपक्षी पार्टियों को तोड़कर ‘आमलेट’ सिद्धान्त का नारा चौ० देवीलाल द्वारा किया गया। इसका पालन करने हेतु 11 अक्टूबर 1988 ई० को बंगलोर में विपक्षी पार्टियों के संगठन “जनता दल” नामक पार्टी का विधिवत् उद्घाटन किया गया।
इस “जनता दल” नामक पार्टी का अध्यक्ष विश्वनाथ प्रतापसिंह को बनाया गया। 15 नवम्बर, 1988 ई० को चौ० देवीलाल की अध्यक्षता में लोकदल को तथा 17 नवम्बर, 1988 को चौ० अजीतसिंह की अध्यक्षता में जनता पार्टी को, विधिवत् सम्मेलन करके, “जनता दल” में विलीन कर दिया गया। श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह की अध्यक्षता में “जन मोर्चा” पहले ही 2 अक्टूबर, 1988 ई० को “जनता दल” में विलीन हो चुका था।
16 अक्टूबर, 1988 ई० को मद्रास के “मरीना बीच” पर विपक्षी पार्टियों की एक विशाल सभा का आयोजन किया गया तथा 16 नवम्बर, 1988 ई० को आगरा में दूसरी विशाल जनसभा करके जनजागरण अभियान आरम्भ कर दिया गया। भारतवर्ष में बहुदलीय पार्टी शासन की अपेक्षा द्विदलीय शासन प्रणाली स्थापित करने में चौ० देवीलाल सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं तथा आज सारे देश की राजनीति चौ० देवीलाल के चारों ओर चक्कर काटती नजर आ रही है। इस प्रकार चौ० देवीलाल राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष के एक शक्तिमान तथा सक्रिय भूमिका अदा करनेवाले नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। सभी की निगाहें आप पर टिकी हुई हैं।