दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम
आधुनिक युग में दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम को अपने समय का भामाशाह, कुबेर का अवतार, हरिश्चन्द्र, दधीचि ऋषि और हरयाणा का कोहेनूर हीरा की उपमा दी गई है।
जननी जने तो भक्त जने या दाता या शूर।
नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे गंवावै नूर॥
महाकवि कालिदास ने महाराजा रघु के जन्म के विषय में अपने महाकाव्य रघुवंश में लिखा है – “भवो हि लोकाभ्युदयाय दादृशाम्” अर्थात् रघु जैसे महापुरुषों का जन्म संसार के कल्याण के लिए होता है।
ठीक इसी प्रकार लोक कल्याण के लिए ही हमारे चरित नायक दानवीर सेठ चौधरी सर छाजूराम का जन्म सन् 1861 ई० में जाट लाम्बा वंश में अलखपुरा गांव (जिला भिवानी), त० बवानी खेड़ा में हुआ था।
आपके पिता जी का नाम सालिगराम था। आपके पूर्वज झुझुनूं के निकटवर्ती गोठड़ा से आकर यहां पर आबाद हुए थे। वहां से चलकर ढाणी माहू में बसे। ये लोग एक अंग्रेज की जमींदारी में सामान्य जीवन बिताते थे।
आपके परदादा चौ० थानाराम इसी गांव ढाणी माहू (भिवानी) में रहे थे। आपके दादा चौ० मनीराम ढाणी माहू को छोड़कर सरसा में जा बसे।
लेकिन कुछ दिनों बाद आपके पिता चौ० सालिगराम सरसा से नारनौंद जिला जींद में आकर बस गए। किसी कारणवश सन् 1860 में आपके पिताजी नारनौंद छोड़कर अलखपुरा गांव में आकर बस गये।
आपके पिता साधारण स्थिति के किसान थे। आपका बचपन माता-पिता के साथ ही अलखपुरा के ग्रामीण वातावरण में बीता। आपने प्रारम्भिक शिक्षा बवानी खेड़ा के स्कूल में प्राप्त की और छात्रवृत्ति प्राप्त करते रहे।
भिवानी स्कूल से मिडल पास के बाद आपको रिवाड़ी के हाई स्कूल में दाखिल करवा दिया गया। दूसरे विषयों के अतिरिक्त आप संस्कृत, अंग्रेजी, महाजनी, हिन्दी, उर्दू में बहुत प्रवीण थे। परन्तु पारिवारिक परिस्थितियों वश दसवीं से आगे न पढ़ सके और शिक्षा यहीं पर रुक गई।
दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम का हजारीबाग कलकत्ता को प्रस्थान –
भिवानी में पढ़ते हुए आपका सम्पर्क यहां के आर्यसमाजी इंजीनियर श्री राय साहब शिवनाथ राय से हो गया जो आपकी मेहनत से खुश थे। अतः वे अपने साथ आपको हजारीबाग कलकत्ता ले गये। आप घर रहकर इंजीनियर साहब के बच्चों को पढ़ाते रहे। उस समय आपकी आयु 20-22 वर्ष की थी। कुछ समय में ही आपका सम्पर्क यहां राजगढ़ के सेठ के साथ हो गया।
आप उस सेठ साहब के बच्चों को भी पढ़ाते रहे। उन दिनों कलकत्ता में अधिकांश व्यापार पर मारवाड़ी सेठों का कब्जा था। मारवाड़ी लोग अंग्रेजी भाषा बहुत कम जानते थे। छाजूराम समय निकाल कर उन्हीं सेठों की व्यापार सम्बन्धी चिट्ठी आदि अंग्रेजी में लिख दिया करते थे। इस समय आपको सभी मुंशी जी तथा मास्टर जी के नामों से जानते थे।
कलकत्ता में व्यापारसम्बन्धी लोगों की चिट्ठियां लिखते रहने के कारण आपको कुछ व्यापार सम्बन्धी बातों की विशेष जानकारी हो गई। कलकत्ता में रहते हुए आप दलालों के साथ बाजार में चले जाते थे। उनकी बातचीत तथा कार्य व्यवहार बड़े ध्यान से देखते थे और कुशाग्र बुद्धि होने के कारण आपने दलालों की सब बातें समझ लीं।
व्यापार में प्रवेश – प्रभु की कृपा का विश्वास करके आपने पुरानी बोरियों का काम शुरु किया। दिन रात के कठोर परिश्रम के कारण आय में विशेष वृद्धि होने लगी। कुछ समय के बाद नई बोरियों की दलाली तथा क्रय-विक्रय आरम्भ कर दिया। इस प्रकार आपने काफी धन कमाया और शीघ्र ही बड़े दलालों में गिनती होने लगी।
कुछ समय बाद ही आपको Andre Wyule and Company (एण्डरुयूल एण्ड कम्पनी) में दलालों का काम मिल गया। इस कम्पनी से आपको 75 प्रतिशत दलाली मिलती थी। जबकि दूसरे दलालों को केवल 25 प्रतिशत ही दलाली मिलती थी। यह अंग्रेज कम्पनी थी जिसमें जूट का कारोबार था।
जिस समय आपने दलाली का काम शुरु किया, आप एक ब्राह्मण के ढाबे पर रोटी खाते थे तथा उसका महीना भर में हिसाब कर देते थे। सामाजिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि ब्राह्मण और महाजन साहूकार ही सब कुछ थे। उनके विरुद्ध बोलने की तथा सत्य कहने की भी किसी में हिम्मत नहीं होती थी। हरिजन आदि की तो बात क्या, जाट को भी अछूत समझा जाता था।
जिस ब्राह्मण ढाबे पर आप रोटी खाते थे, वहीं पर भोजन करने वाले महाजनों और ब्राह्मणों ने उस ढाबे के स्वामी को मिलकर कहा कि एक जाट का लड़का हमारे साथ बैठकर भोजन करे, यह हमें स्वीकार नहीं। या तो आप इस जाट युवक को यहां भोजन खिलाना बन्द कर दें अन्यथा हम सब तुम्हारे ढाबे से भोजन करना स्वयं ही छोड़ देंगे।
ढाबे के मालिक ने अगले रोज युवक छाजूराम को सब बातें बताईं और भोजन खिलाने में असमर्थता प्रकट की। युवक छाजूराम सब समझ गये। बहुत ऊँचा उठने का दृढ़ संकल्प किया। एक लखपति करोड़पति सेठ महाजन से तथा ब्राह्मण से भी ऊँचा सम्मान पाने की तथा अपनी जाति को ऊपर उठाने की तीव्र लालसा जाग उठी। युवक छाजूराम ने अन्य किसी ढाबे पर भोजन का प्रबन्ध कर लिया।
आप धीरे-धीरे कलकत्ता में कम्पनियों के हिस्से (Share) खरीदते रहे और बड़े-बड़े व्यापारियों की गिनती में आ गये। कुछ ही समय बाद आपने कलकत्ता में जूट का कारोबार पूर्ण रूप से अपने हाथ में ले लिया। कलकत्ता की मार्केट में आप ‘Jute King’ (पटसन का बादशाह) के नाम से
विख्यात हो गये। देश के बड़े करोड़पतियों में आपकी गणना होने लगी। आप कलकत्ता की 24 कम्पनियों के सबसे बड़े शेयर होल्डर (Share Holder) हिस्सेदार थे। जिसमें से दस एण्डरुयल एण्ड कम्पनी, दो ओबाराहर्टा, दस बर्ड एण्ड कम्पनी और दो जार्डन एण्ड कम्पनी की थीं।
नवीन गुलिया एक साहसी व्यक्तित्व – Navin Gulia
एण्डरुयल एण्ड कम्पनी की 10 और बिड़ला ब्रदर्स की कुल 12 कम्पनियों (मिलों) के आप निर्देशक (Director) थे। आप पंजाब नेशनल बैंक के निर्देशक भी बने परन्तु बाद में त्यागपत्र दे दिया। आपको इन हिस्सों के कारण 16 लाख रुपये प्रतिवर्ष लाभांश (Dividend) भाग मिलता था। आपका व्यापार चरम सीमा तक पहुंच गया था। करोड़ों रुपया बैंकों में जमा था।
24 कम्पनियों के 75 प्रतिशत हिस्से (Share) आपके थे। हिसार में 5 सम्पूर्ण गांव आपके थे। अलखपुरा और शेखपुरा में दो शानदार महल खड़े हैं। कलकत्ता में आलीशान कोठियों के अतिरिक्त शानदार वैभवयुक्त दर्शनीय एक अतिथि भवन था जो उन दिनों 5 लाख रुपये की लागत से बना था।
आपने लाखों रुपयों में कई गांवों की जमींदारी का विशाल भू-भाग खरीदकर विशाल जमींदारी अलखपुरा पैतृक जन्म स्थान के आसपास बनाई।
आपकी विशाल जमींदारी को लोग अलखपुरा रियासत तक कह दिया करते थे। आपकी गणना भारतवर्ष के बड़े-बड़े करोड़पति सेठों में की जाती थी। आपके पास वैसे तो अनेकों बहुमूल्य वस्तुएं थीं किन्तु एक कार जिसका नाम “रोल्स-रॉयस” था वह उन दिनों में एक लाख रुपये की खरीदी थी। कलकत्ता में सबसे पहले इस कीमती कार को आपके सुपुत्र श्री सज्जनकुमार ही लाए थे।
वे ही इस कार में बैठकर प्राय: बाहर जाया करते थे। किन्तु आप तो अपनी साधारण कार में ही बाहर जाया करते थे। कलकत्ता आपकी सब प्रकार की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया। व्यापार की सफलता और दानशीलता ने आपका मान और प्रतिष्ठा बढ़ा दी।
आप कलकत्ता में ही नहीं अपितु भारतवर्ष के गणमान्य व्यक्तियों की कतार में आ खड़े हुए। आप एक आदर्श व्यापारी थे। आपकी सफलता का कारण आपकी निष्ठा और व्यापार व उद्योग को स्वस्थरूप से बढ़ाना था।
आपने अद्वितीय ख्याति एक प्रबुद्ध ईमानदार और सफल व्यापारी तथा उच्चकोटि के दानी के रूप में प्राप्त की। आपने ईमानदारी व नेक नियति से कमाई हुई अतुल धन दौलत का दिल खोलकर उदारता से दान भी किया। आप जितना अधिक दान दिया करते थे, उससे कई गुना अधिक लाभ भगवान् आपको देता था। आप ईश्वर सत्ता में दृढ़ विश्वास (आस्तिक होना) रखते थे।
यौवन काल, विवाह तथा सन्तति – आप नवयुवक होकर भी चंचलता रहित रहे। जब चरित नायक दानवीर सेठ सर चौ० छाजूराम ने यौवन में प्रवेश किया तब उनका प्रत्येक सुन्दर अंग और भी सुन्दरता से पूर्ण हो गया था। आपका शरीर प्रकृति से ही सुन्दर था और यौवनावस्था में प्रवेश करके तो अत्यधिक अंगलावण्य से निखर उठा और सुन्दरता, चेहरे पर लालिमा बड़ी आयु होने पर बुढ़ापे तक भी झलकती थी।
यौवनकाल के बसन्तकाल में आपने भी प्राचीन ग्रामप्रथा के अनुसार गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। आपका विवाह डोहकी (दादरी तहसील) ग्राम की सुन्दर कन्या से हुआ। विवाह के कुछ दिनों के बाद हैजे की बीमारी के कारण उसका स्वर्गवास हो गया और उससे कोई सन्तान नहीं हुई।
तत्पश्चात् दूसरा विवाह विलावल (भिवानी) गांव की बुद्धिमती कन्या लक्ष्मीदेवी से सन् 1890 के आसपास हुआ। आप साक्षात् ही लक्ष्मी का रूप बनकर आई। उसका स्वर्गवास 19 मार्च 1973 को हुआ। इस दिव्य दम्पती से जाट क्षत्रिय जाति को 6 सन्तानें प्राप्त हुईं। सबसे बड़ा पुत्र सज्जन कुमार जो युवावस्था में ही स्वर्ग सिधार गया। उससे छोटा पुत्र भी छोटी आयु में ही गुजर गया।
कमला देवी लड़की बचपन में ही स्वर्गधाम चली गई। आपने जिसकी याद में “लेडी हैली हास्पिटल” (Lady Haily Hospital) भिवानी में बनवाया था1। दो लड़के महेन्द्रकुमार तथा प्रद्युम्नकुमार आजकल दिल्ली, कलकत्ता, अलखपुरा और शेखपुरा की कोठियों में रहते हैं। उनकी दूसरी पुत्री सावित्रीदेवी भारतवर्ष के प्रसिद्ध डा० भूपालसिंह मेरठ निवासी के सुपुत्र डा० नौनिहालसिंह से विवाही गई थी।
जीवन्त पर्यन्त सर छाजूराम ने गृहस्थ धर्म का पालन किया। घर पर आने वाले मेहमानों की भीड़ लगी रहती थी जिनकी अच्छी खातिरदारी होती थी। ऋषि दयानन्द सरस्वती द्वारा निर्दिष्ट गृहस्थ आश्रम के कर्म-काण्ड पांच महायज्ञ प्रतिदिन किये जाते थे। जब कभी कोई दुखिया आता था तो वह द्वार से खाली हाथ न लौटता था। धार्मिक विद्वानों तथा आर्य संन्यासियों को आपका बड़ा सहारा था।
वैदिक धर्म की शिक्षाओं तथा आर्यसमाज के सिद्धान्तों का आपके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा जो जीवन भर बना रहा। आर्यसमाज और सर छाजूराम में चोली-दामन का सा गहरा सम्बन्ध रहा है।
दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम की दान योग्यता
- 1. आपने आर्यसमाज की सैंकड़ों संस्थाओं में दान दिया। आर्यसमाज के उच्चकोटि के त्यागी तपस्वी सन्त स्वामी श्रद्धानन्द जी ने गंगा के किनारे हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की। सेठ चौ० छाजूराम ने उस गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के भवन बनवाने में काफी धनराशि दान में दी।
- 2. कर्मवीर डॉ० संसारसिंह जी ने कन्या गुरुकुल कनखल की स्थापना की। इनकी संस्था में भी आपने कन्या शिक्षा प्रसार हेतु सबसे बड़ी धनराशि भवन निर्माणार्थ दान में दी।
- 3. गुरुकुल वृन्दावन, वोलपुर आदि शिक्षण संस्थाओं में भी आप द्वारा दी गई दानार्थ धनराशि आज भी पत्थरों पर अंकित है। आप द्वारा दिया गया दान भारतवर्ष के विभिन्न भागों में उच्चकोटि की शिक्षण संस्थाओं के रूप में फल-फूल रहा है।
- 4. बंगाल में आर्यसमाज का विस्तार करने के लिए दानवीर सेठ छाजूराम ने आर्यसमाज के प्रचारार्थ अतुल धनराशि तो खर्च की ही थी तथा आर्य कन्या विद्यालय बनवाने में 50,000 की धनराशि भी दान दी। कलकत्ता में आर्यसमाज कार्नवालिस स्ट्रीट और आर्य महाविद्यालय के लिए 50,000 रुपये दान दिये। कलकत्ता में आप आर्यसमाज के उत्सवों कार्यक्रमों में सक्रिय भाग लेते थे। वहां महात्मा हंसराज, स्वामी श्रद्धानन्द जैसे अनेक त्यागी तपस्वी आर्यनेताओं से आपका गहरा सम्पर्क व मित्रता हो गई।
- 5. जिन दिनों डी० ए० वी० कॉलिज लाहौर आर्थिक संकट से गुजर रहा था, उन दिनों सेठ
1. जिसके बनाने में 5 लाख रुपये की धनराशि सेठ चौ० छाजूराम ने लगाई थी।
छाजूराम के पास कलकत्ता में उनके मित्र श्री लखपतराय एडवोकेट, बाबू चूड़ामणि, डॉ० रामजीलाल आदि महात्मा हंसराज जी के परामर्श के बाद पहुंचे। इस मित्रमण्डली को आया देखकर आप अत्यधिक प्रसन्न हुए। इन्होंने पहले सेठ छाजूराम से 21 हजार और फिर 31 हजार रुपये मांगने का विचार किया। धन्य है दानवीर सेठ छाजूराम जिसने 31 हजार की मांग पर भी 50 हजार रुपये डी० ए० वी० कॉलिज लाहौर के लिए इस मित्रमण्डली को दानार्थ दिये।
- 6. सन् 1916 में सेठ चन्दूलाल जी का स्वर्गवास हो गया। मित्रमण्डली ने निश्चय किया कि सेठ चन्दूलाल की स्मृति में एक संस्था कायम की जाये। प्रमुख व्यक्तियों ने सन् 1918 में उनकी स्मृति में सी० ए० वी० हाई स्कूल संस्था विधिवत् प्रारम्भ कर दी। सेठ छाजूराम ने इसी संस्था के छात्रावास (बोर्डिंग हाउस) के लिए 67,000 रुपये की राशि देकर अपने ही इंजीनियरों की देख-रेख में बनवाया। इसके अतिरिक्त आपने 60,000 रुपये छात्रों को छात्रवृत्ति के लिए तथा 25,000 रुपये स्कूल भवन के लिए दान दिये। इस प्रकार कुल डेढ़ लाख रुपये अकेले इस दानवीर ने दानार्थ दिये।
- 7. एक बार किसी राजनैतिक उद्देश्य से लाला लाजपतराय कलकत्ता में चन्दा इकट्ठा करने हेतु पहुंचे और सदा की तरह सेठ छाजूराम की कोठी में उनके साथ ठहरे। सभा का आयोजन किया गया और उस सभा में दान की अपील की गई। लाला लाजपतराय ने अपनी इच्छा से बाबूजी के नाम से 200 रुपये दान सुना दिया। सेठ छाजूराम खड़े होकर बोले कि सम्माननीय ला० लाजपतराय जी आपने जो मेरे नाम से 200 रुपये सुनाये हैं वह ठीक नहीं, क्योंकि मैं 2000 का संकल्प करके रुपये लेकर सभा में आया हूं। सेठ जी ने 2000 रुपये दान देकर अपना संकल्प पूरा किया।
- 8. जिस प्रकार प्रथम महायुद्ध में गांधीजी ने अंग्रेजों को सहायता देने का वचन दिया था, उसी तरह सेठ चौ० छाजूराम ने प्रथम महायुद्ध सन् 1914 में सरकार को ‘युद्ध फंड’ (War Fund) में 1,40,000 रुपये का योगदान दिया और सरकार को ‘युद्ध ऋण’ (War Loan) में कई हजार रुपये देकर मदद के और स्वयं के प्रति तथा कुछ अंश में आर्यसमाज के प्रति सरकार के शक को ठीक नीति से दूर करके यह सिद्ध कर दिया कि आर्य “वसुधैव कुटुम्बकम्” पर विश्वास करते हैं।
- 9. आपने अतिथि भवन कलकत्ता में सैण्ट्रल ऐवन्यू पर 5 लाख रुपये की लागत से बनाया था जहां पर दीन-दुखियों अथवा प्रेमी मित्रों का शानदार स्वागत होता था।
- 10. आपने अलखपुरा में आर्यसमाज की स्थापना की। आर्यसमाज के संगठन के माध्यम से गांवों के गरीब मज़दूर किसानों को भ्रातृभाव से रहने और आर्य बनने की प्रेरणा दी जिसके लिए अपने बड़े धनराशि खर्च की। जिसका प्रभाव यह हुआ कि आज तक भी कभी अलखपुरा गांव में सांग नहीं हो सका है।
- 11. आप जाट महासभा तथा आर्यसमाज के नियमों का पालन किया करते। आपने दहेज-प्रथा का डटकर विरोध किया। अपनी सुपुत्री सावित्रीदेवी के शुभ विवाह पर केवल 101 रुपया दान दिया तथा कन्यादान में किसी भी व्यक्ति से एक रुपये से अधिक दान नहीं लिया।
- 12. सेठ चौ० छाजूराम की मित्रता अंग्रेजों की झूठी पत्तल चाटने वाले अंग्रेजों के दासों से नहीं थी अपितु देशभक्त, आंदोलनकारी, विद्रोही, क्रांतिकारी आर्य पुरुषों से थी।
इसका एक ठोस प्रमाण यह भी है कि जब देशभक्त वीर भगतसिंह सिन्धु गोत्री सिक्ख जाट ने 17 दिसम्बर 1928 ई० को सांडर्स को अपने रिवाल्वर की गोली से मारकर लाला लाजपतराय की मौत का बदला ले लिया, तब वह वीर पुलिस की आंखों में धूल झोंककर लाहौर से रेलगाड़ी द्वारा कलकत्ता पहुंचा और वहां वह सीधा सेठ चौ० छाजूराम के पास चला गया। ऐसे संकटकाल में आपने वीर भगतसिंह को ढ़ाई-तीन महीने तक अपनी कोठी में ऊपरवाली मंजिल में छिपाकर रखा।
- 13. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और पं० मोतीलाल नेहरु का स्वागत – सेठ चौ० छाजूराम पंजाब में जमींदार लीग की ओर से सन् 1926 में एम० एल० सी० बनकर राष्ट्रीय नेताओं से अधिक निकट सम्पर्क में आ चुके थे। सन् 1928 में पण्डित मोतीलाल नेहरू कांग्रेस दल के प्रधान बनाये गये थे। वे कलकत्ता में पधारे और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से मिले। उस समय सेठ छाजूराम के नेताजी से अच्छे सम्बन्ध बन चुके थे। कांग्रेस पार्टी की सहायता के लिए नेताजी ने पं० मोतीलाल नेहरू को कुछ धनराशि भी जनता की ओर से भेंट की। इस अवसर पर सेठ छाजूराम जी ने पं० मोतीलाल नेहरु का हार्दिक स्वागत किया और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को कांग्रेस पार्टी के चन्दे में अपनी तरफ से 5,000 रुपये दान के रूप में दिये। इसके बाद तो नेताजी से सेठ छाजूराम जी के सम्बन्ध और अधिक घनिष्ठ बन गये। अन्य ऐसे अवसरों पर जब भी कभी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, पं० मदनमोहन मालवीय, गांधी जी, जवाहरलाल नेहरु, सरदार पटेल, राजगोपालाचार्य, कृपलानी, जितेन्द्रमोहनसेन गुप्त (मेयर कलकत्ता) तथा उनकी श्रीमती नेलीसेन गुप्ता आदि अनेक गणमान्य व्यक्तियों एवं नेताओं को किसी देशहित अथवा समाज कल्याण के कार्यों के लिए धन की आवश्यकता हुई तो सहायता चाहने पर सेठजी ने दिली इच्छा से धनराशि दानार्थ दी। सेठजी के जीवन पर्यन्त इन सबसे अच्छे सम्बन्ध बने रहे।
- 14. महात्मा हंसराज के शिष्य नवयुवक भानीराम1 रोहतक जिले में जाट हाई स्कूल खोलने का निश्चय कर चुके थे। किन्तु वे चेचक की बीमारी से अचानक चल बसे और यह कार्य प्राण त्यागते समय अपने मित्र चौ० बलदेवसिंह2 को सौंप गये। चौ० बलदेवसिंह भी डी० ए० वी० कॉलिज लाहौर में पढ़े थे। उन्होंने इस कार्य के लिए जीवन दान करने की घोषणा की और असंख्य जाटों ने धन से सहयोग दिया। सेठ जी ने स्वयं भी जीवनपर्यन्त इस संस्था की सहायता की। सेठ जी के मित्र हिसार के डा० रामजीलाल और उनके भाई चौ० मातुराम (गांव सांघी जिला रोहतक) तथा चौ० छोटूराम आदि के प्रयत्नों से 26 मार्च, सन् 1913 में जाट हाई स्कूल रोहतक की नींव रखी गई। सन् 1913 से 1921 ई० तक चौ० छोटूराम इसकी प्रबन्धकर्तृ सभा के सचिव रहे। सैनिकों से धन मांगने में चौ० छोटूराम ने बहुत प्रयत्न किया और उनसे काफी धनराशि प्राप्त की और गांव-गांव घूमकर खूब चन्दा इकट्ठा किया। सन् 1916 में इसी जाट हाई स्कूल रोहतक का वार्षिक उत्सव हुआ।
इस अवसर पर सेठ छाजूराम जी को भी निमन्त्रित किया गया था। उस समय स्कूल की सहायता के लिए आम जनता से अपील की गई। जब लोग अपनी शक्ति के अनुसार 5-5, 10-10 रुपये बढ़ चढ़कर देने लगे तो सेठ चौ० छाजूराम ने खड़े होकर अपनी ओर से 61 हजार रुपये दान देने की घोषणा की।
इसके साथ ही यह भी ऐलान किया कि जाट हाई स्कूल रोहतक का जो भी छात्र दसवीं कक्षा की परीक्षा में प्रथम नम्बर पर आयेगा उसे एक सोने का मैडल उनकी तरफ से भेंट किया जाएगा। मैडल के अतिरिक्त आगे कॉलिज में पढ़ने के लिये 12 रुपये मासिक छात्रवृत्ति भी देने के लिए कहा।
उसी वर्ष होने वाली हाई स्कूल की परीक्षा में सूरजमल नामक होनहार छात्र प्रथम नम्बर पर आया और सोने का मैडल प्राप्त करने में सफल रहा। वह मैडल आज भी उनके पास मौजूद है। यह सूरजमल गांव खांडा जिला हिसार निवासी थे जो निरन्तर कई वर्षों तक संयुक्त पंजाब की विधान सभा के सदस्य तथा मन्त्री पद पर जमींदार पार्टी की ओर से रहे। इसके अतिरिक्त वह कई वर्षों तक महाराजा भरतपुर के प्रधान मन्त्री भी रहे।
1. चौ० भानीराम गंगाना गांव (जि० सोनीपत) के निवासी थे।2. चौ० बलदेवसिंह का गांव हुमायूंपुर (जि० रोहतक) और आप धनखड़ गोत्र के जाट थे।
- 15. दानवीर सेठ छाजूराम ने जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी (दिल्ली) के आधे से ज्यादा भवन अपने सात्विक दान से बनाए जिसका प्रमाण आज भी उन भवनों की दीवारों पर अंकित पत्थर पर है।
- 16. इण्टर कॉलिज बड़ौत (मेरठ) को आपने बहुत बड़ी राशि सहायतार्थ प्रदान की थी।
- 17. जिन दिनों पं० मदनमोहन मालवीय जी ने बनारस में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की, उन दिनों वे धन इकट्ठा करने हेतु कलकत्ता पहुंचे। वे सेठ छाजूराम जी के पास भी गए। सेठजी ने उन्हें बड़े सम्मान के साथ 11,000 रुपये दान दिया। अब तक कलकत्ता में इतनी बड़ी धनराशि उन्हें किसी से भी न मिली थी।
- 18. सेठ चौ० छाजूराम जी ने इन्द्रप्रस्थ महाविद्यालय में 50,000 रुपये दानार्थ दिये।
- 19. स्वामी केशवानन्द (जन्म ढाका गोत्री जाट परिवार में) द्वारा संचालित जाट हाई स्कूल संगरिया को 50,000 रुपये की धनराशि सेठ छाजूराम ने दान में दी। इसके अतिरिक्त एक अन्य अवसर पर 15,000 रुपये दानार्थ देकर आप ने इस स्कूल में विशाल कूप बावड़ी का निर्माण करवाया जिससे पीने के पानी की समस्या का समुचित प्रबन्ध हो गया।
- 20. सन् 1924-25 में जाट हाई स्कूल हिसार की स्थापना के लिए 4 लाख रुपये दान देकर स्कूल की शिक्षा के लिए विशाल भवन बनवाये। साथ ही छात्रों की सुविधा के लिए शानदार छात्रावास का भी निर्माण करवाया।
- 21. अखिल भारतीय जाट महासभा की स्थापना सन् 1906 में मुजफ्फरनगर (उत्तरप्रदेश) में हुई। इस जाट महासभा ने देश की स्वतन्त्रता के लिए क्षत्रिय जाट जाति में देशव्यापी कार्यक्रमों द्वारा नवचेतना व स्फूर्ति प्रदान पैदा की। दानवीर सेठ छाजूराम ने एक बार तत्कालीन अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा के अधिवेशन का 10,000 रुपये सम्पूर्ण व्यय स्वयं दिया था।
- 22. सन् 1925 में अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा के पुष्कर अधिवेशन पर जिसके सभापति जाट महाराजा श्रीकृष्णसिंह भरतपुर नरेश थे, उसका सभी व्यय लगभग 5000 रुपये सेठ चौ० छाजूराम जी ने दिया। इस सम्मेलन में दिल्ली जाट कुमार सभा के प्रधान युवक लाजपतराय तथा अन्य सदस्य जो उन दिनों कॉलिजों में पढ़ा करते वे सभी नवयुवक सम्मिलित हुए थे।
अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा की शाखाएं आगे चलकर उत्तरप्रदेश, हरयाणा, पंजाब तथा राजस्थान में फैल गई थीं। दिल्ली जाट कुमार सभा के सदस्य कॉलिज के छात्रों ने एक बार दिल्ली में सेठ चौ० छाजूराम जी का शानदार स्वागत एक होटल में प्रीतिभोज देकर किया। उस समय भी जाट कुमार सभा के खर्च के लिए 2,500 रुपये सेठ जी ने दानार्थ दिए तथा युवकों को देश व जाति सेवा की प्रेरणा दी।
इस प्रकार के संगठनों द्वारा पैदा की गई चेतना का नतीजा यह निकला कि अगले कुछ वर्षों में ही जाटबहुल प्रत्येक जिले में जाटों के हाई स्कूल और छात्रावास स्थापित हो गए जिनकी स्थापना में सेठ जी दान देने में किसी से पीछे न रहे। अनेक स्थानों में स्वयं भी छात्रावास स्थापित किए। उदाहरणार्थ पिलानी में स्वयं एक विशाल छात्रावास बनवाया ताकि निर्धन छात्र सुव्यवस्थित ढंग से निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर सकें।
- 23. रवीन्द्रनाथ टैगोर चकित रह गए – जिन दिनों रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने शान्ति निकेतन विद्यालय का वार्षिक उत्सव मना रहे थे, उन दिनों कलकत्ता के बड़े-बड़े सेठों को उत्सव में पधारने के लिए निमन्त्रण दिया। परन्तु सेठ चौ० छाजूराम को शायद छोटा व्यापारी समझकर निमन्त्रण नहीं दिया। सेठ छाजूराम अपने घनिष्ठ मित्र सेठ बिड़ला जी के कहने पर उनके साथ इस शुभ कार्य के अवसर पर चले गए। उत्सव में कुछ सांस्कृतिक, साहित्यिक कार्यक्रमों के बाद ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर झोली बनाकर चन्दा, दान मांगने के लिए सबके आगे घूमे। बड़े-बड़े सेठों ने कागज पर धनराशि लिखकर उनकी झोली में भेंट कर दी। सबसे बाद में टैगोर साहब आपके पास भी गये। तब आपने टैगोर जी से नम्रता से कहा कि इनमें से जो सबसे अधिक दान वाली पर्ची है उसे निकालने की कृपा करें।
- पर्चियां देखी गईं, जिनमें सबसे अधिक राशि वाली पर्ची सेठ बिड़ला जी की 5,000 रुपये की थी। देखते ही दानवीर सेठ चौ० छाजूराम ने 20,000 रुपये की राशि भेंट कर दी और सब पर्चियां वापिस करवा दीं तथा स्वयं खड़े होकर उन सबसे दुगुनी धनराशि मांगी। यह सब देखकर टैगोर जी चकित रह गये। तत्पश्चात् वहीं पर ही आपकी टैगोर जी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।
- 24. महात्मा गांधी जी को आशा से अधिक दान दिया – कलकत्ता में श्री चित्तरंजनदास की स्मृति में एक स्मारक बनाने के लिए धनराशि एकत्रित की जा रही थी। स्वयं महात्मा गांधी भी इसके लिए प्रयास कर रहे थे। जब गांधी जी कलकत्ता में बड़े-बड़े धनिक लोगों से दान मांग रहे थे तो उसी समय चन्दा इकट्ठा करने वाली दूसरी पार्टी वाले व्यक्ति सेठ छाजूराम जी के पास भी गए। सेठ जी ने उन्हें 11,000 रुपये चन्दा रूप में दिए। महात्मा गांधी जी जितना धन कलकत्ता से एकत्रित करना चाहते थे उसमें अभी 10,000 रुपये की कमी रहती थी। गांधी जी ने यह चर्चा सेठ बिड़ला जी के सामने की। वह तो पहले ही काफी बड़ी धनराशि चन्दे के रूप में दे चुके थे। सेठ बिड़ला ने गांधी जी को बताया कि केवल सेठ चौ० छाजूराम जी इस कमी को पूरा कर सकते हैं। महात्मा गांधी उनके पास पहुंचे और उनको बताया कि केवल कलकत्ता से पांच लाख तथा अन्य दूसरे नगरों से पांच लाख, कुल दस लाख रुपए की धनराशि मिली है और दस हजार रुपए की कमी बतलाई। दानवीर सेठ चौ० छाजूराम ने सुनते ही 10,000 रुपये नकद गांधी जी को भेंट कर दिए।
बात कर ही रहे थे कि सेठ जी अपनी कोठी के अन्दर गए और बाहर आकर 5,000 रुपये की और अतिरिक्त धनराशि महात्मा जी की सेवा में यह कहते हुए अर्पित कर दी कि आपने यहां पधार पर मेरे निवास स्थान को पवित्र किया है। इस प्रकार कुल 26,000 रुपये सेठ छाजूराम जी ने उस स्मारक के लिए दान दिए जो कलकत्ता में एक व्यक्ति की दानार्थ दी गई सबसे बड़ी धनराशि थी। इसके अतिरिक्त भी इस दानवीर ने गांधी जी की अपीलों पर स्वतन्त्रता प्राप्ति के उद्देश्य से चलाए गए गांधी जी के सत्याग्रहों, आंदोलनों तथा जनहित के अन्य कार्यों में अनेक अवसरों पर सहायतार्थ दान देकर सहयोग किया।
जाट इतिहास व जाट शासन की विशेषतायें
- 25. सेठ चौ० छाजूराम ने अपनी पुत्री कमला की स्मृति में जो कि बाल्यावस्था में ही प्रभु को प्यारी हो गई थी, भिवानी में पांच लाख रुपए की लागत से लेडी हेली हॉस्पिटल (Lady Hailly Hospital) बनवाया। इस हस्पताल के बनने से भिवानी तथा आस-पास के इलाके के सभी लोगों को विशेषकर गरीब लोगों को बड़ा लाभ हुआ। सेठ जी इस हस्पताल का सारा खर्च स्वयं अपनी ओर से देते थे। यहां किसी भी प्रकार के मरीज से दवाओं के लिए कोई भी पैसा नहीं लिया जाता था। जहां कहीं भी धर्मार्थ हस्पताल का निर्माण हुआ और सेठ जी को पता चलता, उसके लिए यथाशक्ति धन से सहायता करते थे।
- 26. मिराण गांव में विशाल जलकुण्ड का निर्माण – हरयाणा में मिराण गांव तोशाम से सिवानी मार्ग पर स्थित है। इस गांव के निवासी पीने का पानी ऊंटों पर कई-कई कोस से लाया करते थे। वर्षा का इकट्ठा किया हुआ पानी बहुत जल्दी सूख जाता था। इस गांव के कुछ व्यक्ति सेठ चौधरी छाजूराम जी के पास पहुंचे और यह सारा कष्ट सुनाया। सेठ जी ने शीघ्र ही कई हजार रुपये की लागत से मिराण गांव में एक विशाल पक्का जलकुण्ड (जलगृह) का निर्माण करवा दिया जिससे हजारों मनुष्यों, पशु पक्षियों के जीवन की रक्षा हुई। यह जलकुण्ड आज भी सेठ जी की स्मृति को ताजा कर रहा है।
- 27. वैदिक एवं लौकिक साहित्य के प्रति जागरूक – महर्षि दयानन्द सरस्वती अपने जीवन में चारों वेदों का भाष्य करना चाहते थे किन्तु अधूरा छोड़कर स्वर्गवासी हो गए। दानवीर सेठ छाजूराम ने वैदिक वाङ्मय के विद्वान् आर्य जाति के विख्यात संन्यासी आर्य मुनि जी को वेदों का भाष्य लिखने को कहा। आर्य मुनि जी ने सन् 1910 के आसपास वेदों का भाष्य अजमेर में लिखना आरम्भ किया। वेदों के भाष्य को प्रकाशित करने के लिए धन की आवश्यकता थी। सेठ छाजूराम जी ने स्वेच्छा से वेदों के भाष्य की छपाई आदि का सम्पूर्ण व्यय आर्य मुनि जी को दिया।
डा० कालिकारंजन कानूनगो ने जाट इतिहास अंग्रेजी भाषा में लिखा जिसका प्रकाशन 30 अप्रैल सन् 1925 में किया गया था। इसका सम्पूर्ण व्यय सेठ चौधरी छाजूराम ने दिया था। इससे उनका लेखकों, कवियों, साहित्यकारों को सहयोग देना प्रकट होता है और यह भी पता चलता है कि सेठ जी को क्षत्रिय जाट जाति के इतिहास के प्रचार व प्रसार में भी विशेष दिलचस्पी थी।
- 28. दीनबन्धु चौधरी सर छोटूराम का सम्पर्क में आना – एक बार सेठ छाजूराम जी कलकत्ता से अलखपुरा आ रहे थे। गाजियाबाद स्टेशन पर गाड़ी रुकी। वहां युवक छोटूराम ने आपको तम्बाकू डालकर अपनी कली पिलाई। सेठ जी ने युवक से पूछकर सब बातें मालूम कर लीं। युवक छोटूराम भी मेरठ के रास्ते से लाहौर जाने के लिए उसी रेलगाड़ी में सफर कर रहा था। उन्हें पता चला कि छोटूराम ने एफ० ए० की परीक्षा दे रखी है और आगे पढ़ने के लिए पैसे की कमी के कारण असमर्थ है। यह भी पता चला कि छोटूराम पढ़ने में बड़ा प्रवीण है। दानवीर सेठ छाजूराम ने स्वयं ही युवक छोटूराम को कहा कि अगर संस्कृत लेकर बी० ए० करना चाहो और डी० ए० वी० कॉलिज लाहौर में दाखिल होने को तैयार हो तो मैं तुम्हारी पढ़ाई का खर्च देता रहूंगा। छोटूराम ने बड़ी खुशी से कृतज्ञतापूर्ण स्वर में सेठ जी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
जब एफ० ए० परीक्षा का नतीजा आया तो छोटूराम अच्छे अङ्क प्राप्त करके पास हो गये। तब उसने सेठ जी को लिखा, मैं संस्कृत लेकर ही बी० ए० में प्रविष्ट हो रहा हूं किन्तु लाहौर की अपेक्षा दिल्ली में पढ़ने में मुझे सहूलियत रहेगी, क्योंकि यहां जिला बोर्ड से भी छात्रवृत्ति मिलने की सम्भावना है। उचित आदेश से सूचित करें।
सेठ छाजूराम जी ने लिख दिया कि मेरी सहायता तुम्हें दिल्ली में भी मिलती रहेगी। छोटूराम ने सन् 1905 में संस्कृत विषय लेकर बी० ए० पास किया और वे संस्कृत में विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पर रहे। सेठ छाजूराम ने युवक छोटूराम की धन से भरपूर सहायता की। चौधरी छोटूराम ने सेठ छाजूराम को अपना धर्मपिता मान लिया और सदा उनको धर्मपिता कहकर पुकारते थे।
सेठ छाजूराम ने बाद में चौधरी सर छोटूराम के लिए रोहतक में एक विशाल कोठी भी रहने के लिए बनवाई जो आगे चलकर नीली कोठी के नाम से प्रसिद्ध हुई। एक समय आया जब रोहतक में नीली कोठी को वह महत्त्व प्राप्त हो गया जो दिल्ली में बिड़ला भवन, इलाहाबाद में आनन्द भवन तथा गुजरात में साबरमती आश्रम को प्राप्त हुआ।
पंचायत और इसके जन्मदाता जाट थे
- 29. राजनीति में प्रवेश – पंजाब में 1926 ई० का चुनाव कोई साधारण चुनाव नहीं था। इस चुनाव में शहरी नेता जिनमें कुछ आर्यसमाजी और सिख भी शामिल थे, यह प्रतिज्ञा कर चुके थे कि इस चुनाव में चौधरी छोटूराम और उनके समर्थकों को नहीं जीतने देना है, चाहे जितना धन बहाना पड़े। सर छोटूराम एवं उनके हितैषी मित्र सेठ चौधरी छाजूराम के पास पहुंचे और सारी स्थिति बताकर आप को चुनाव लड़ने के लिए कहा गया। उनके कहने पर आपने जमींदार लीग की ओर से चुनाव लड़ना पड़ा जिसमें आप राय साहब लाजपतराय को हराकर भारी बहुमत से एम० एल० सी० चुने गए। आप एम० एल० सी० रहते हुए गन्दी राजनीति से सदा बचे रहे। जनहित के कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए उनके द्वारा किए गए जनहित के कार्यों को देखते हुए सन् 1931 में सरकार ने बाबू छाजूराम को सी० आई० ई० (C.I.E.) की उपाधि से विभूषित किया तथा कुछ समय बाद ‘सर’ की उपाधि भी प्रदान की।
- 30. अकाल पीड़ितों व बाढ़ पीड़ितों की सहायता – सन् 1899 ई० (संवत् 1956 वि०) में देश भर में भयंकर अकाल पड़ा। यह छप्पना अकाल के नाम से प्रसिद्ध है। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच रही थी। चारे के अभाव में पशु तथा अन्न आदि खाद्य पदार्थों के अभाव में मनुष्य कराल काल के मुंह में जा रहे थे। हालात इतने बुरे थे कि श्मशान भूमि ठंडी न होने पाती थी। धन्य है! कर्मवीर उदार दानी सेठ छाजूराम जी को जिसने अनेक नर-नारियों तथा मूक पशुओं को मौत के मुंह से बचाया। सेठ जी ने ऐसे समय में देश के अनेक भागों में अन्न, चारा, वस्त्र तथा पैसे बांट कर अनेक परिवारों को घोर अकाल की लपेट से बचाकर महान् उपकार किया।
इस छप्पना अकाल के बाद भी जब कभी ऐसी नौबत आई तब सेठ जी जनता की सहायता में तत्पर दिखाई दिये। इसी छप्पना अकाल के समय सन् 1899 ई० में सेठ छाजूराम ने भिवानी में अनाथालय भी प्रारम्भ कर दिया था। सन् 1930 (सम्वत् 1987) में देश के कुछ भागों में पुनः अकाल पड़ा। इस समय आर्थिक मन्दा (World Depression) भी चल रहा था। इस अकाल का कुप्रभाव वैसे तो देशव्यापी था, पर हरयाणा में हांसी, भिवानी, तोशाम के क्षेत्रों में इसका अधिक कुप्रभाव रहा।
यहां भी अन्न च चारे के अभाव में मनुष्य, पशु, काल का ग्रास बन रहे थे। सेठ चौधरी छाजूराम ने अपनी तरफ से दान सहायता केन्द्र खोल दिये, जिनका मुख्य केन्द्र बवानीखेड़ा था। इस इलाके के जन जीवन को अकाल से बचाने के लिए सेठ छाजूराम की ओर से लगभग 1,50,000 रुपये का अन्न तथा चारा जनहित में बांटा गया।
सन् 1928 ई० में भिवानी शहर में पीने के पानी के लिए लोगों को बड़ा भारी कष्ट था। भिवानी में तत्कालीन तहसीलदार चौधरी घासीराम, पण्डित नेकीराम शर्मा, श्री श्रीदत्त वैद्य आदि एक डेपुटेशन बनाकर कलकत्ता सेठ छाजूराम के पास गए तथा उनसे भिवानी शहर वालों के पानी का कष्ट दूर करने की प्रार्थना की। सेठ छाजूराम जी ने उनको कलकत्ता से 2,50,000 रुपये चन्दा दानार्थ दिलवाया और स्वयं 50,000 रुपये पानी के लगवाने हेतु दानार्थ दिये।
सन् 1914 में दामोदर घाटी (बिहार व पश्चिमी बंगाल) में भयंकर बाढ़ आई। चारों ओर दूर-दूर तक तबाही मच रही थी जिसमें अनेक नर-नारियों तथा पशुओं की जान जा रही थी। सेठ चौ० छाजूराम कलकत्ता से प्रतिदिन रेल द्वारा बाढ़ पीड़ितों को धन, अन्न, वस्त्र, कपड़े बांटने जाया करते थे। इस प्रकार लगभग 30-35 हजार रुपये खर्च करके बाढ़ पीड़ितों की सहायता की।
जाटों की टूटती पीठ (दिल्ली) और बढ़ती पीड़ा
- 31. बीमारी में रोगियों की सहायता – सन् 1909 (संवत् 1966) में सारे देश में प्लेग की महामारी फैल गई थी। कोई भी गांव अथवा नगर इस महामारी से अछूता न बचा था। सब ओर हाहाकार मचा हुआ था। सारा भारत प्लेग की भीषण ज्वाला में धधक रहा था। ऐसे भीषण तथा संकटकाल में दुखियों की, रोगियों की सहायता करना धीर वीर दानी व्यक्ति का ही काम था।
उस समय सेठ चौ० छाजूराम जी ने अन्न, धन, दवा, वस्त्र आदि से अपने देश में विभिन्न केन्द्रों पर बने संगठनों को दानार्थ लाखों रुपये देकर दीन दुखियों की सेवा की। कोई भी ऐसा समय दृष्टिगोचर नहीं होता कि जब देश में दैवी आपत्ति आई और आपने दान देकर सहयोग नहीं किया हो।
सन् 1918 (संवत् 1975) में देश भर में एक अन्य प्रकार की महामारी, जिसे एन्फ्लुएन्जा (Influenza) (यानी एक प्रकार का शीतप्रधान छूत से फैलने वाला ज्वर) का नाम दिया जाता है, फैल गई। इसे कार्तिक वाली बीमारी के नाम से भी पुकारा जाता है। इससे असंख्य नर-नारियां काल का ग्रास बन गये। देश में इस बीमारी से अनेक भागों में 10 प्रतिशत व्यक्ति नष्ट हो गये थे जिनमें स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक बताई जाती है।
ऐसे महाविनाश के अवसर पर दानवीर सेठ चौ० छाजूराम जी ने बहुत अधिक धनराशि अनेक स्थानों पर सेवा के लिए दानार्थ दी। दिनों भिवानी में एक सेवक दल संगठित हुआ था। सेठ जी ने इस संगठन को बहुत बड़ी धनराशि, अन्न, दवा, वस्त्र आदि दानार्थ दिये। सेठ जी ने केवल भिवानी, बवानीखेड़ा, हांसी, तोशाम, हिसार, रिवाड़ी आदि हरयाणा के ही इलाकों में सहायतार्थ धन नहीं दिया अपितु कलकत्ता जैसे देश के विभिन्न बड़े-बड़े नगरों, कस्बों, गांवों में भी समाजसेवी संस्थाओं, समाजसुधारकों को धन देकर देश के अनेक भागों में सेवार्थ भेजा।
- 32. गौ सेवक – आप धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे। गऊ को आप पवित्रतम प्राणी मानते थे। महर्षि दयानन्द द्वारा लिखित गोकरुणानिधि पुस्तक पढ़ने के बाद तो आप पर विशेष प्रभाव पड़ा। आपने गोरक्षा हेतु गोशालाएं खोलने का विचार बनाया और कई गोशालाओं के निर्माणार्थ बहुत बड़ी धनराशि दान दी। कलकत्ता में गोशाला के निर्माण का फैसला आपकी इच्छा से हुआ जिसके निर्माण में आपने इस गोशाला के लिए सबसे बड़ी धनराशि स्वयं दान में दी तथा दूसरे लोगों को इसके निर्माण हेतु धन से सहायता करने की प्रेरणा दी।
इसके अतिरिक्त आपने एक लाख रुपये की धनराशि से भिवानी में एक आदर्श गोशाला बनवाई। जब भी किसी व्यक्ति ने गोशाला के लिए सहायता मांगी तो दानवीर सेठ चौ० छाजूराम ने गोमाता की सेवा तथा रक्षा के लिए सदा ही खुश होकर धन दिया।
- 33. गांव में भवन निर्माण – आपके पूर्वज मुजारे के रूप में खेती करने वाले साधारण किसान थे। इसलिए अधिक आमदनी न होने के कारण गांव में अपना रहने के लिए कोई पक्का सुन्दर मकान न बना सके। जब सेठ छाजूराम जी का व्यापार अच्छा खासा चल गया और उनके पास बहुत बड़ी धनराशि जमा हो गई, तब कलकत्ता में कई शानदार कोठियां खरीदीं तथा कई शानदार कोठियां स्वयं भी बनवाईं। आपने अपने गांव में भी भवन बनाना चाहा। इससे पहले 1913 ई० में गांव अलखपुरा में एक कुंआ बनवाना था। उस समय स्कीनर स्टेट की जमींदारी के अधीन होने के कारण तथा मुजारे होने के कारण कुंआ बनाने पर मालकान ने नाराजगी प्रकट की। जब सन् 1916 में आपने अपने गांव अलखपुरा में ही पक्का मकान बनाना शुरु किया तब स्टेट के मालिक ने मकान बनाना बन्द कर दिया। इस पर सेठ जी को विवश होकर मुकदमा लड़ना पड़ा। यह मुकदमा प्रिवी कौंसिल लन्दन तक चला। इस मुकदमे में जीत बाबू छाजूराम जी की हुई। इसके बाद आपने अपने गांव में अपनी शानदार तीन मंजिली विशाल हवेली बनाई। इसके अतिरिक्त हांसी से 4 मील दूर शेखपुरा (अलिपुरा) में लाखों रुपये की शानदार कोठी बनाई।
आपने अपनी निजी जमींदारी बनाकर अलग स्टेट बनाने का विचार किया। इसी उद्देश्य से अतुल धनराशि लगाकर शेखपुरा, अलिपुरा, अलखपुरा, कुम्हारों की ढ़ाणी, कागसर, जामणी, मोठ गढी आदि गांवों की जमींदारी का विशाल भू-भाग खरीदकर विशाल जमींदारी बनाई। जामणी गांव खाण्डा खेड़ी से दो मील पर स्थित है। यहां 2600 बीघे जमीन सेठ छाजूराम जी ने खरीदी थी। इसका मालिक हिस्टानली नामक अंग्रेज था। यह ठेके का गांव था।
सेठ चौ० छाजूराम जी ने अपनी जामणी की जमीन की पैदावार को सम्भालने के लिए खाण्डा खेड़ी में ही एक कोठी बनाई जो बाद में आर्य कन्या पाठशाला के लिए दानार्थ दे दी तथा सन् 1916 से लेकर आज तक यह आर्य कन्या पाठशाला इसी कोठी में चली आ रही है।
जाटों के साथ पक्षपात के कुछ उदाहरण
- 34. भरतपुराधीश महाराजा कृष्णसिंह जी की सहायता – उन दिनों महाराजा भरतपुर कृष्णसिंह तेजस्वी राजाओं में गिने जाते थे। तमाम भारत के जाट उनको अपना नेता मानते थे। सेठ चौ० छाजूराम और सर छोटूराम का उनसे घनिष्ठ सम्बन्ध व मित्रता थी। पंजाब के प्रतिष्ठित नेता चौ० लालचन्द भी महाराजा के यहां राजस्व मन्त्री बन चुके थे। सन् 1926 के आस-पास महाराजा भरतपुर अंग्रेज सरकार के कर्जदार हो गये थे। महाराजा भरतपुर ने ऐसे संकटकाल में चौधरी लालचन्द को ही सहायतार्थ सेठ छाजूराम जी के पास भेजा। सेठ जी ने बड़ी उदारता के साथ महाराजा भरतपुर की सहायतार्थ दो लाख रुपये कर्ज के रूप में दिये।
- 35. सेठ घनश्यामदास जी बिड़ला से मित्रता – हमारे चरित नायक स्वयं कलकत्ता के जूट के बादशाह कहलाते थे। कलकत्ता के सभी बड़े-बड़े लखपति करोड़पति सेठों से आपकी मित्रता थी। किन्तु बिड़ला जी से विशेष सम्पर्क व मित्रता थी क्योंकि आप दोनों की विचारधारा एक जैसी ही थी। यद्यपि सेठ छाजूराम जी कट्टर आर्यसमाजी थे तथा बिड़ला जी सनातन धर्मी थे परन्तु फिर भी शिक्षा तथा समाज कल्याण के कार्यों में दान के विषय में दोनों ही सुधारक थे। साहस और उत्साह के साथ शिक्षण संस्थाओं में दान देते थे।
सेठ घनश्यामदास जी जो बिड़ला बन्धुओं में तीसरे भाई थे, उनका विवाह सेठ महादेव चिड़ावा वाले की सुपुत्री दुर्गादेवी से हुआ। सेठ घनश्यामदास बिड़ला की सन्तान आपको सदा नाना ही कहती रही। वास्तव में आप दोनों में आदर्श मित्रता थी। सेठ चौ० छाजूराम जी के महाप्रयाण के अवसर पर कलकत्ता के सभी सेठों के साथ श्री घनश्यामदास जी बिड़ला तथा जुगलकिशोर जी बिड़ला आदि सेठ छाजूराम की शवयात्रा और दाह संस्कार में सम्मिलित हुए तथा अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित की।
- 36. स्वभाव तथा चरित्र – सर सेठ चौ० छाजूराम जी ने अपनी कष्ट एवं ईमानदारी की कमाई में से करोड़ों रुपया मानव जाति के कल्याणार्थ दान किया था। वास्तव में दानवीर सेठ सर छाजूराम को क्षत्रिय जाट जाति का भामाशाह कह दिया जाए तो कोई अत्युक्ति न होगी। सेठ सर छाजूराम जी किसी वार्त्ता के प्रसंग में कह दिया करते कि “मैंने दरिद्रता की चरम सीमा अपने जीवन में देखी है जबकि आज लोग मुझे करोड़पति कह देते हैं।” “मैंने एक ऐसी जाति (जाट) में जन्म लिया है जहां व्यापार किसी ने नहीं किया, मैं वही काम करता हूं।” “जिस प्रभु ने मुझ पर इतनी कृपा की उसके नाम पर जो दान करूं वही थोड़ा है।” “जितना मैं दान देता हूं उतना ही अधिक भगवान् मुझे लाभ दे देता है।” “मेरी इच्छा रुपया कमाकर गरीबों का उद्दार, शिक्षा और समाज कल्याण के कार्य करने की थी। वह भगवान् की दया से लगभग पूरी हो गई। अब बेशक मैं परमपिता परमात्मा को प्यारा हो जाऊँ। मेरी कोई विशेष इच्छा शेष नहीं है।”
इतना धन होने की दशा में मनुष्य को जो दुर्व्यसन लग जाते हैं सो उनसे आप को आर्यसमाज के संसर्ग ने बचा लिया। जीवन पर्यन्त उनके चरित्र पर किसी प्रकार का कभी धब्बा नहीं लगा। ईमानदारी, कठोर परिश्रम तथा प्रभु का विश्वास – ये ही हर काम में सफलता प्राप्त करने के आपके मूलमन्त्र थे। वे एक साधारण कुल में पैदा होकर इतने उंचे उठे, महान् बने, इसमें उनकी सतत लग्न
और कार्यशीलता ही मुख्य आधार थे। उनमें वे सभी गुण विद्यमान थे जो एक अच्छे व्यक्ति में होते हैं। वे सबके दुःख दूर करनेवाले, कुल का नाम उज्जवल करनेवाले, दानी, शूरवीर, अच्छे विचारों वाले, सत्यवक्ता, समान व्यवहार करनेवाले, प्रेमी, परोपकारी, गुणी और धर्मात्मा थे। जीवन में आपने कभी भी कुमार्ग पर पैर न रखा। उनका आहार अतुल धन सम्पत्ति का स्वामी होते हुये शुद्ध सात्विक तथा निरामिष होता था। वे शुद्ध खादी के स्वदेशी वस्त्र पहनते थे और सिर पर गोल सुन्दर केसरिया रंग की पगड़ी धारण करते थे। आपका चरित्र आदर्श तथा स्वभाव विनम्र, दयालु एवं उदार था। इतने श्रेष्ठ एवं देवता पुरुष से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।
- 37. स्वर्गवास – लगभग 4 मास की लम्बी बीमारी के बाद 7 अप्रैल 1943 ई० को 82 वर्ष की आयु में क्षत्रिय जाट जाति का दानवीर कर्ण, अपने समय के भामाशाह का स्वर्गवास हो गया। आपके महान् गुणों से भावी सन्तति प्रेरणा लेती रहेगी। वे अपनी ललित कीर्ति और कमनीय कारनामों के कारण सदैव के लिए अमर हो गये। जब तक भारत की वीराग्रगण्य क्षत्रिय जाति का इस धरा धाम पर नामोनिशान है, दानवीर सेठ छाजूराम जी तब तक हम क्षत्रिय जनों के लिए तो जीवित जागृत पूजनीय हैं।
दानवीर सेठ चौ० छाजूराम के स्वर्गवास की सूचना मिलने पर दीनबन्धु सर चौ० छोटूराम ने आंखों में आंसू भरकर उनको श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए कहा था -“भारतवर्ष का महान् दानवीर गरीबों और अनाथों का धनवान् पिता पतितोद्धारक तथा मेरे धर्मपिता आज अमर होकर हमारे लिए प्रेरणास्रोत बन गये। मैं अपने धर्मपिता के महाप्रयाण पर श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूं और उनकी इच्छाओं, आकांक्षाओं के अनुसार कार्य करने का संकल्प लेता हूं।”