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गहलावत जाट गोत्र का इतिहास

गहलावत जाट गोत्र का इतिहास

गहलावत जाट गोत्र का इतिहास

ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति की 13 कन्याओं का विवाह सूर्यवंशी महर्षि कश्यप के साथ हुआ था। उनमें से एक का नाम दिति था जिससे एक पुत्र हिरण्यकशपु हुआ जिसके 5 पुत्रों में से एक का नाम प्रहलाद था।

प्रहलाद का पुत्र विरोचन था जिसका पुत्र बलि था जो बड़ा प्रतापी सम्राट् था। इनकी प्रसिद्धि के कारण सूर्यवंशी क्षत्रियों का संघ उनके नाम पर बल या बलियान जाटवंश प्रचलित हुआ जो कि वैदिक काल से है।

इसी बलवंश के वीर योद्धा भटार्क ने कच्छ-कठियावाड़ में अपने वंश के नाम पर बलभीपुर राज्य की स्थापना की। इस नगर का दूसरा नाम बला था।

वहां पर इस बल वंश का शासन सन् 470 से 757 ई० तक रहा। सन् 757 ई० में सिंध के अरब शासक हशाब-इब्न अलतधलवी के सेनापति अबरूबिन जमाल ने गुजरात-काठियावाड़ पर चढाई करके बल्लभी के इस बलवंश को समाप्त कर दिया।

वहां से निकलकर वलवंशी गुहिल वंश प्रवर्तक गुहदत्त या गुहादित्य बाप्पा रावल उत्पन्न हुए। टॉड ने भी इस मत की पुष्टि की है।

गुहादित्य बाप्पा रावल ने अपने नाना मान मौर्य जो कि चित्तौड़ का शासक था, को मारकर चित्तौड़ का राज्य हस्तगत कर लिया। इसने अपने बलवंश के स्थान पर गुहिलवंश के नाम पर अपना शासन आरम्भ किया।

बलवंश की शाखा – गुहिल, सिसौदिया, राणा, गहलौत, मुण्डतोड़, गहलावत हैं।

(देखो तृतीय अध्याय बल-बालियान प्रकरण)।

बलवंशी बाप्पा रावल का पिता शत्रु ने मार दिया। उसकी माता वहां से निकलकर दूसरे स्थान पर जा पहुंची जहां पर इस रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया।

छीलर जाट गोत्र का इतिहास – छिकारा

गहलावत जाट गोत्र का इतिहास

गहलावत जाट गोत्र का इतिहास – History of Gehlavat Jat gotra गुहिलोत, गुहिलावत, मुण्डतोड़,

उस पुत्र का नाम बाप्पा रावल रखा गया। रानी के मरने पर उसका पालन-पोषण बड़नगर की कमला ब्राह्मणी ने किया। उसको शत्रुओं से बचाने के लिए एक गुफा में छिपाकर रखा गया और उसका नाम गोहदित्त या गुहादित्ता रख लिया गया।

शक्ति प्राप्त करके भीलों की मदद से इसने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।

राजस्थान के राजवंशों का इतिहास पृ० 23-26, लेखक जगदीशसिंह गहलोत (राजपूत) ने गहलोत राजवंश के विषय में लिखा है –

इस वंश का सबसे पहला शिलालेख जो मिला है, उससे यह अनुमान किया जाता है कि वि० सं० 625 (सन् 568) के आसपास मेवाड़ में गुहिल (गुहदत्त) नाम का एक प्रतापी सूर्यवंशी राजा हुआ जिसके नाम से उसका वंश गुहिल वंश कहलाया।

संस्कृत शिलालेखों और पुस्तकों में इस वंश के नाम गुहिलपुत्र, गुहिलोत, गौहिल्य मिलते हैं। भाषा में ग्रहिल, गहलोत और गेलोन प्रसिद्ध हैं।

ये एक ही शब्द हैं। देश के गौरव, मेवाड़ के महाराणा इसी गहलोत वंश के थे। मेवाड़ (उदयपुर) का यह राजवंश लगभग वि० सं० 625 (568 ई०1) से लेकर देश की आजादी तक, समय के अनेक हेरफेर सहता हुआ इसी प्रदेश पर लगभग 1380 वर्ष तक राज्य करता रहा।

चाहर जाट गोत्र का इतिहास

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मेवाड़ के गहलोत वंशी शासक विक्रम की 11वीं शताब्दी तक अर्थात् गुहिल (गुहदत्त) (1) से रणसिंह (33) तक राजा की उपाधि धारण करते रहे हैं। रणसिंह के खेमसिंह, राहप और माहप नामक तीन पुत्र थे।

राजकुमार राहप को सीसौदे गांव की जागीर मिली जिसके नाम से ये सीसोदिया कहलाने लगे और उसने राणा उपाधि धारण की। ज्येष्ठ पुत्र क्षेमसिंह या खेमसिंह मेवाड़ की गद्दी पर

बैठा। सं० 1236 के लगभग मेवाड़ का राज्य क्षेमसिंह के ज्येष्ठ पुत्र सामन्तसिंह के हाथ से निकल गया तब उसने डूंगरपुर राज्य की स्थापना की परन्तु कुछ दिनों के पश्चात् क्षेमसिंह के दूसरे पुत्र कुमारसिंह ने अपने पूर्वजों के मेवाड़ राज्य पर फिर अधिकार कर लिया।

क्षेमसिंह से रतनसिंह (42) तक ये नरेश रावल कहलाये। रावल रतनसिंह से सं० 1360 (सन् 1303 ई०) में बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ छीन लिया और रतनसिंह के काम आने पर रावल शाखा की समाप्ति हुई।

अतः सीसौदिया की शाखा के राणा हमीर ने सं० वि० 1382 (सन् 1325) के आसपास बादशाही हाकिम राजा मालदेव सोनगर की पुत्री से विवाह करके, युक्ति द्वारा पुनः चित्तौड़ पर अपना कब्जा कर लिया। तब से यहां के नरेशों की उपाधि राणा हुई और गांव सीसौदा के निवासी होने से सिसौदिया कहलाने लगे।

गढ़वाल जाट गोत्र का इतिहास

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जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड) पृ० 119-124 पर लेखक ठाकुर देशराज ने लिखा है कि – मौर्य जाटों का राज्य चित्तौड़ पर 184 ई० पू० से 713 ई० तक 897 वर्ष रहा।

और इसी मौर्य की शाखा राय नामक का शासन सिंध पर 184 ई० पू० से 660 ई० तक 844 वर्ष रहा। (देखो, पंचम अध्याय, मगध साम्राज्य पर मौर्य-मोर वंशज जाट नरेशों का शासन, प्रकरण)। बप्पा रावल जिसे कि गहलोतों का विक्रमादित्य कहना चाहिये, चित्तौड़ के मौर्य राजा मान के ही यहां सेनापति बना था। फिर उसने सन् 713 में चित्तौड़ को अपने कब्जे में कर लिया।


जाट समाज गोत्र सूची: जाट एक क्षत्रिय समुदाय है जो भारत में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, राजस्थान, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, … गहलात (गुजरात), गहलावत (गहलावत), गहले (गहले), गहलोर (आभूषण), गहलोत (गहलोत), गहमोट (गहमोत)। गहरवार … नागर ब्राह्मण समाज की उत्पत्ति, इतिहास, गोत्र और कुलदेवता …

  1. जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव-खण्ड) पृ० 120-121, लेखक ठाकुर देशराज ने लिखा है कि चित्तौड़ में मान मौर्य का जो शिलालेख मिला है उस पर संवत् 770 अंकित है अर्थात् सन् 713 में राजा मान आनन्द से चित्तौड़ पर राज्य कर रहा था।

किन्तु टॉड राजस्थान सन् 729 में बाप्पा रावल को चित्तौड़ का अधीश्वर होना मानता है
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-1018

हुड्डा जाट गोत्र का इतिहास

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