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गढ़वाल जाट गोत्र का इतिहास

History of Garhwal Jat gotra

गढ़वाल जाट गोत्र का इतिहास

गढ़वाल जाट गोत्र तोमर या तंवर वंश की शाखा है। चन्द्रवंशी सम्राट् ययाति के पुत्र तुर्वसु के नाम पर क्षत्रिय आर्यों का दल तंवर या तोमर जाट वंश प्रचलित हुआ था (देखो तृतीय अध्याय, तंवर-तोमर प्रकरण)।

अनंगपाल के समय में गढ़वाल जाटों का राज्य गढ़मुक्तेश्वर में था। एक गढ़वाल जाट सरदार मुक्तासिंह ने गढ़मुक्तेश्वर का निर्माण कराया था।

जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का शासक हुआ तो गढ़वाल जाटों के साथ उसका युद्ध हुआ। इन्होंने बड़े पराक्रम के साथ चौहानों को पीछे धकेल तो दिया, किन्तु स्थिति ऐसी हो गई कि इन जाटों को गढ़मुक्तेश्वर छोड़ना पड़ा और ये वहां से राजपूताने की ओर चले गये।

राजपूताना में आकर इन जाटों ने झुंझनूं के निकटवर्ती प्रदेश में केहड़, भाटीवाड़, छावसरी पर अपना अधिकार जमा लिया। यह घटना 13वीं सदी की है। उस समय झुंझनूं में जोहिया जाट राज्य करते थे।

जिस समय मुसलमान नवाबों की शक्ति इधर बढ़ने लगी तो इन गढ़वाल जाटों का उनसे युद्ध हुआ, जिसके फलस्वरूप इनको वहां से तितर-बितर होना पड़ा। इनमें से एक दल कुलोठ पहुंचा, जहां चौहानों का अधिकार था।

लड़ाई में विजय प्राप्त करके इन जाटों ने कुलोठ पर अपना अधिकार जमा लिया।5 इन गढ़वाल जाटों की संख्या राजस्थान, हरयाणा तथा यू० पी० के कई जिलों में है।

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History of Garhwal Jat gotra
गढ़वाल जाट गोत्र का इतिहास

गढ़वाल जाट गोत्र का इतिहास – History of Garhwal Jat gotra

इस गढ़वाल जाट गोत्र का वीर योद्धा कम्पनी हवलदार मेजर छेलूराम था जिसका वर्णन इस प्रकार है –

  1. कम्पनी हवलदार-मेजर छेलूराम विक्टोरिया क्रास (मरणोपरान्त)

कम्पनी हवलदार-मेजर छेलूराम का जन्म 10 मई 1905 ई० को दिनोद गांव जि० भिवानी के किसान चौधरी जयराम गढवाल गोत्री जाट के घर हुआ।

आप 10 मई 1926 को राजपूताना राइफल रेजीमेंट में भरती हुए और द्वितीय विश्वयुद्ध में 4 राजपूताना पलटन के साथ युद्ध के मैदान में गये। आपकी पलटन 5 इन्फेन्ट्री ब्रिगेड में शामिल थी।

आपकी पलटन ने 19 अप्रैल 1943 की रात्रि को शत्रु के शक्तिशाली मोर्चों पर जो दजेबल गर्सी पहाड़ी (Djbel Garci feature) पर थे, आक्रमण कर दिया।

इस युद्ध में सी० एच० एम० छेलूराम ने अद्भुत वीरता, निश्चय और कर्त्तव्य पालन का आदर्श प्रदर्शन किया। शत्रु के मोर्चों की ओर बढ़ते हुए अगली पंक्ति के सैनिक, शत्रु की मशीनगनों के फायर से रुक गये।

यह देखकर वीर छेलूराम अपनी टोमीगन लिये हुए शत्रु के प्रचण्ड मशीनगन और मोरटर फायर में से एकदम झपटकर आगे बढ़े और अकेले ने शत्रु के 4 सैनिकों को मारकर यह प्रचण्ड फायर बन्द करा दिया, जिससे आगे को बढ़ना जारी हो गया।

जब अगली कम्पनियां शत्रु के मोर्चों के समीप पहुंच चुकी थीं, तब शत्रु ने मशीनगनों और मोरटरों का प्रचण्ड फायर खोल दिया, जिससे कम्पनी कमांडर प्राणघातक घायल हो गया।

सी. एच. एम. छेलूराम ने उस अफसर को एक सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया। इस कार्य के दौरान वह स्वयं भी घायल हो गया। तब उसने अपनी कम्पनी की कमान संभाली और उसे शीघ्र संगठित किया।

शत्रु ने भी शीघ्रता से भारी जवाबी हमला कर दिया। हाथों-हाथ के इस भयंकर युद्ध में वीर छेलूराम ने एक अद्भुत वीरता दिखाई जो कि बड़ी प्रशंसनीय है।

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गढ़वाल जाट गोत्र का इतिहास – History of Garhwal Jat gotra

उसने एक स्थान से दूसरे स्थान तक झपटकर अपने जवानों को एकत्र किया और चिल्लाकर कहा कि जाटो, पीछे नहीं हटना है, हम सब आगे ही बढ़ेंगे।

अपने जवानों को जोश दिलाकर शत्रु के जवाबी हमले को संगीनें मार-मार कर वापिस धकेल दिया। इस हाथों-हाथ युद्ध में वीर छेलूराम प्राणघातक घायल हो गया।

उसने अपने को पीछे ले जाने से इन्कार कर दिया और अन्तिम सांस तक अपने जवानों को जोश दिलाता रहा।

कुछ देर पश्चात् वह वीरगति को प्राप्त हुआ। वीर छेलूराम के इस तेजस्वी नेतृत्व के कारण हमारे सैनिकों का एक अति आवश्यक स्थान पर कब्जा हो गया।

सी. एच. एम. छेलूराम की मत्यु 19 अप्रैल 1943 की रात्रि के आक्रमण में हो गई और 20 अप्रैल 1943 को ब्रिटिश सरकार ने आपको सर्वोच्च पदक विक्टोरिया क्रॉस (मरणोपरान्त) से सम्मानित किया। भारतीयों तथा जाट जाति को आप पर बड़ा गौरव है।

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1,2,3,4. क्रमशः 168, 287, 287 व 162, जाट्स दी एन्शेन्ट् रूलर्स – लेखक बी.एस. दहिया|

  1. यवन – चन्द्रवंशी सम्राट् ययाति के एक पुत्र तुर्वसु की सन्तान यवन कहलाई, ये जाट हैं।
  2. (महाभारत आदिपर्व, अध्याय 85वां, श्लोक 34-35, पृ० 265)।
  3. असीरिया – आज का कुर्दिस्तान प्रदेश है जो ईरान और ईराक के बीच में स्थित है। वहां पर जाट मुसलमान बड़ी संख्या में हैं।
  4. जाट इतिहास पृ० 554, 595, लेखक ठाकुर देशराज।
  5. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-1015

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