सारण – रणधावा जाट गोत्र का इतिहास
यदु वंश में राजा गज ने गजनी का निर्माण किया। उसके पुत्र शालिवाहन ने गजनी से आकर पंजाब में शालिवाहनपुर (शालपुर) नगर की स्थापना करके उसे अपनी राजधानी बनाया।
इस सम्राट् के 15 पुत्रों में से एक का नाम बलन्द था जो इसका उत्तराधिकारी बना। राजा बलन्द के 7 पुत्रों में से एक का नाम भट्टी था जिससे भट्टी जाट गोत्र प्रचलित हुआ।
राजपूत संघ में मिलने से ये जाट भट्टी राजपूत कहलाने लगे और फिर ये भट्टी राजपूत मुगलकाल में बहुत से मुसलमान भी बन गये। आजकल भट्टी ईसाई भी हैं।
भट्टी जाट राजकुमार अपने पिता बलन्द का उत्तराधिकारी बना जिसके दो पुत्र मसूरराव और मंगलराव नामक थे।
मसूरराव के दो पुत्र अभेराव और सारनराव थे। सारनराव के नाम पर भट्टी जाटों का एक समूह सारण कहलाने लगा जो कि एक जाट गोत्र है।
पंजाब से जाकर इस भट्टी जाटवंश का शासन मालवा तथा जांगल प्रदेश में था। राजपूताना, जोधपुर, बीकानेर नाम पड़ने वाले स्थानों को पहले जांगल प्रदेश कहते थे।
सारण जाटों का शासन जांगल प्रदेश (बीकानेर) क्षेत्र में 300 गांवों पर था जिनकी राजधानी भाडंग थी।
इन गांवों के बीच में इनके जिले या परगने 1. केजर 2. भोग 3. बुचावास 4. सवाई 5. बादीनू 6. सिरसीला आदि थे।
रामरतन चारण ने इन सारण जाटों के अधिकृत गांवों की संख्या 360 लिखी है। इसी रामरतन चारण ने अपने इतिहास में लिखा है कि गोदारा जाटों का सरदार पांडु इन सारन जाटों के अधीश्वर पूला की स्त्री को भगा ले गया, इसी कारण जांगल प्रदेश के सभी जाट राज्य गोदारों के विरुद्ध हो गये।
जोधा राठौर के पुत्र बीका ने जब जांगल शासक जाट शासकों पर आक्रमण शुरु किया तो पांडु गोदारा बिना शर्त उसके साथ मिल गया। अब राठौरों और जाट गोदारों की दोनों बड़ी शक्तियों ने एक-एक करके वहां से सब जाट राज्यों को जीत लिया।
कहना होगा कि पांडु गोदारा ने बीका की सहायता करके जाटों के राज्य के लगभग 3000 गांवों पर बीका का अधिकार करवा दिया। पांडु गोदारा ने जयचन्द राठौर की भांति देशद्रोही का कार्य किया।
बीका ने अपने नाम पर वहां पर बीकानेर नगर की स्थापना सन् 1488 ई० में की, जिसको आज 532 वर्ष हो गये हैं।
पांडु गोदारा यदि राठौर के हाथ अपनी स्वाधीनता को न बेचता तो राठौरों पर इतनी आपत्ति आती कि फिर वे जांगल प्रदेश की ओर आने का साहस तक न करते।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-1027
यह कहना उचित नहीं कि जांगल प्रदेश के जाटों को राठौर राजपूतों ने जीत लिया। बल्कि यह बात साफ है कि जाटों के सर्वनाश का कारण उनकी पारस्परिक फूट थी। उसी फूट का शिकार सारण जाट भी हो गये।
उनका प्रदेश युद्धों के समय उजाड़ दिया गया और वे पराजित कर दिये गये, किन्तु शांति-प्रिय सारनों ने जो वीरता अपने राज्य की रक्षा के लिये दिखाई थी, वृद्ध सारन जाट उसे बड़े गर्व के साथ अपनी सन्तानों को सुनाते हैं।
आज भी सारण जाटों के 90 गांव सरदारशहर (राजस्थान) के पास हैं। सुजानगढ़ के नागौरिया, मन्दिरमार्गी श्वेताम्बरी जैन साधुओं की गद्दी पर बहुत काल से सारनवंशी जाट जैन साधुओं का ही अधिकार चला आ रहा है।
हिसार में कुगरा, बड़छपर, रीयासर, हसनगढ़, माजरा, खेरटी, बिरबाल आदि 24 गांव सारण जाटों के हैं।
जि० मुजफ्फरनगर में ऊन, पण्डौरा, चन्दोड़ी,
जि० रोहतक में फरमाना, मदीना 1/2, भैनी चन्द्रपाल, सिंघपुरा, निदाना 1/2, बेडला, सैमाण आदि गांव सारण जाट के हैं।
सारण – रणधावा जाट गोत्र का इतिहास
रणधावा
रणधावा जाट गोत्र है जो कि यदुवंशी भट्टी सारण गोत्र की शाखा है। सर लिप्ल ग्रीफन ने भी इनको यदुवंशी लिखा है और इनका बीकानेर से पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र में आना लिखा है।
सारण गोत्री जाटों का बीकानेर में बड़ा राज्य था जो कि राठौर बीका ने विजय कर लिया। (देखो सारण गोत्र प्रकरण, लेख की शुरुवात में)।
इन सारण जाटों का दल काजल नामक नेता के नेतृत्व में बीकानेर क्षेत्र से गुरदासपुर क्षेत्र में पहुंचा और वहां धावा बोलकर उस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
शत्रु पर रण में धावा बोलने के कारण इन जाटों का नाम रणधावा पड़ गया। फिर यह एक गोत्र ही बन गया जो कि सारन की शाखा है।
काजल जाट वीर के वंशजों ने सम्पारी, खोंडा, धर्मकोट, डोडा, तलवंडी, कण्ठूनगर की रियासतें बना लीं थीं। खोंडा बटाला के निकट है।
सन् 1773 में इनका नेता सिक्ख धर्म का अनुयायी बन गया था जो कि कन्हैया मिसल का सैनिक अधिकारी नियुक्त हो गया था। इन्होंने खोंडा, अजान, बुद्धीपुर, शाहपुर, माली, समराला, जफरवाल और नौशीरा पर अधिकार कर लिया था।
बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने ये सब खालसा राज्य में मिला लीं।
चम्पारी रियासत का नेता सांवलसिंह रणधावा सन् 1750 में सिक्ख धर्मी बन गया और भंगी मिसल की सेना का सेनापति नियुक्त किया गया। कुछ दिन बाद वह एक युद्ध में मारा गया।
रणधीर चन्द रणधावा ने सन् 1540 में बटाला के पास झण्डा नामक गांव आबाद किया। उसके पोते तुरगा ने तलवंडी आबाद की और इसके वंशज यहीं पर रहते रहे। रणधावा जाटों ने महाराजा रणजीतसिंह की युद्धों में बड़ी सहायता की थी।
पंजाब के सभी जिलों में रणधावा जाटों की कुछ-न-कुछ संख्या पाई जाती है परन्तु इनकी जिला गुरदासपुर में बड़ी संख्या है। जिला अमृतसर में इनके कई गांव हैं। रणधावा जाट अधिकतर सिक्ख धर्मी हैं।
सारण – रणधावा जाट गोत्र का इतिहास