चाहर जाट गोत्र का इतिहास
यह चाहर जाटवंश उस चोल जाटवंश की शाखा है जिसका शासन रामायणकाल में दक्षिणी भारत में था और महाभारतकाल में इनका राज्य उत्तर दिशा में था। चोल देश के नरेश ने महाराजा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में काफी धनराशि भेंट की थी।
(देखो तृतीय अध्याय, चोलवंश प्रकरण)।
आठवीं शताब्दी में दक्षिण भारत में चोलवंशज जाटों का राज्य था जिसमें तमिलनाडु और मैसूर के अधिकांश प्रदेश शामिल थे। 14वीं शताब्दी में इनका राज्य मलिक काफूर ने जीत लिया था।
(अधिक जानकारी के लिए देखो षष्ठ अध्याय, चोल जाटवंश प्रकरण)।
13वीं शताब्दी में गुलाम वंश के शासनकाल में जांगल प्रदेश (बीकानेर) में सीधमुख नामक स्थान पर जाट राजा मालदेव चाहर का शासन था।
उसकी पुत्री राजकुमारी सीमादेवी ने मुसलमान सेनापति से अपना धर्म बचाने के लिए बड़ी वीरता से युद्ध किया और उसके हाथ न आई तथा अपने परिवार सहित बचकर निकल गई।
(इसकी अधिक जानकारी के लिए देखो, अध्याय सप्तम, चाहर गोत्र की राजकुमारी सीमादेवी की अद्भुत वीरता प्रकरण)।
चाहर लोगों में रामकी चाहर बड़ा वीर योद्धा हुआ। उसने सोगरिया गढ़ी के राजा खेमकरण के साथ मिलकर मुगल सेनाओं पर आक्रमण करके उन्हें बड़ा तंग किया था।
चाहर जाटों ने महाराजा सूरजमल, की, मुगलों के विरुद्ध युद्धों में बड़ी सहायता की थी। आगरा कमिश्नरी में चाहर जाटों के 242 गांव हैं जो चाहरवाटी के नाम से सब एक ही क्षेत्र में बसे हुए हैं।
खोखर जाट गोत्र का इतिहास / History of Khokhar Jat tribe
चाहर जाट गोत्र का इतिहास – History of Chahar Jat tribe
सिनसिनवाल, खूंटेल तथा सोगरवार जाटों की भांति वहां पर चाहर जाट भी फौजदार कहलाते हैं। फौजदार का खिताब बादशाहों की ओर से उन लोगों को दिया जाता था जो कि किसी प्रदेश के किसी भाग की रक्षा का भार अपने ऊपर ले लेते थे।
तरावड़ी (आगरा कमिश्नरी) के आस-पास 150 गांव चाहर जाटों के हैं जिनको फौजदार कहते हैं। जिला मुरादाबाद में चाहर जाटों की बड़ी संख्या है।
इस जिले के जटपुरा गांव के चाहर अपने पूर्ववर्ती रतनाथ जोगा का नाम बड़े आदर्शपूर्वक लेते हैं जो कि फिरोजपुर का निवासी था। उसने इधर आकर सम्भल के समीप सौंधन नामक किले को जीतकर वहां ही रहने लग गया था।
यह आठवीं शताब्दी की घटना है। किल्ली गांव के पास जोगा पीर की समाधि पर फाल्गुन बदी चतुर्थी के दिन एक मेला भरता है। इस दिन वहां कई हजार जाट एकत्र होते हैं, विशेषकर चाहर जाट बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
इस पीर की चाहर परम्परा ने ही सिंहपुर, लखौरी, भारथल, मन्नीखेड़ा, मुण्डाखेड़ी, फूलपुर, रमपुरा, चिदावली, गहलुवा, गुलालपुर, सेण्डा, मुकन्दपुर, नारायणा, काजीखेड़ा, पौटा नामक गांव बसाए।
जिला बुलन्दशहर में चित्सौना गांव में चाहर हैं। जिला मुजफ्फरनगर में चाहरों के कई गांव बहादुरपुर, अफीमपुर, चोरवाला, सेनी, सयदपुर आदि हैं। मेरठ में सादपुर गांव चाहरों का है।
चाहर जाट गोत्र का इतिहास – History of Chahar Jat tribe
बिजनौर जिले में कई गांव चाहर जाटों के हैं – रायपुर, भगीन, मारगपुर, भूना की गांवड़ी आदि। पहाड़ी धीरज देहली में हरफूलसिंह चाहर के नाम पर हरफूल बस्ती आबाद है।
पंजाब के अमृतसर, जालन्धर, फिरोजपुर, नाभा, कपूरथला, पटियाला, मालेरकोटला में चाहर जाटों की बड़ी संख्या है जो अधिकतर सिक्ख धर्म के अनुयायी हैं। पाकिस्तान में गुजरांवाला में चाहर जाट हैं जो कि मुसलमान हैं।
महाराजा रणजीतसिंह से पहले चाहरों के कई छोटे-छोटे राज्य एवं जागीरें पंजाब में थीं जो महाराजा रणजीतसिंह ने सिक्ख राज्य में मिला लीं।
राजस्थान में चाहर जाटों के गांव सिखाली, सियाऊ, सूऊ, तोपनी, लाड़नों के पास है। हरयाणा के हिसार में माढी, खढकर, पीलीजेहां गांव चाहर जाटों के हैं।
जिला रोहतक तहसील झज्जर में माछरोली आधा (यह आधा कीन्हा जाटों का है), सिलाना, सिलानी, कन्होरी (1/3) गांव चाहर गोत्रों के हैं। यहां पर चाहर खाप में 17 गांव हैं, जिनका प्रधान गांव सिलानी है।
चाहर जाट गोत्र का इतिहास