Raj Karega Jat
सन् 1923 में रोहतक जिले की एक सभा में चौ० साहब ने नारा दिया – ‘राज करेगा जाट’ । इसी तर्ज पर बाद में चौ० साहब ने पेशावर की एक सभा में साफ-साफ कह दिया था – ‘पंजाब में अरोड़ा खत्री रहेंगे या जाट और गक्खड़ ।’
यह सुनकर इन लोगों के दिल की धड़कन तेज हो जाती थी । लेकिन ये अपने अखबारों में चौ० साहब के विरोध में कभी लिखना नहीं छोड़ते थे ।
उन्होंने कभी भी चौ० साहब का पूरा नाम नहीं लिखा। कहीं छोटू लिखते थे तो कभी छोटूखान । कई बार उन्होंने चौ० साहब को हिटलर लिखा ।
इसके जवाब में चौ० साहब कहते ‘जहां यहूदी रहेंगे वहां हिटलर तो अवश्य होगा ।’ ये लोग चौ० छोटूराम को पश्चिमी पंजाब में जाने पर काले झण्डे दिखाया करते थे और ये झण्डे इन्होंने पक्के तौर पर बनवाकर अपने घरों में रख लिये थे ।
उन्हीं में से आज भी कुछ लोग हरयाणा के बाजारों में मेहंदी से चितकबरा सिर किए अपना बुढ़ापा काट रहे हैं । इन्होंने अवश्य अपनी उस विरासत को अपनी संतानों को दे दिया है ।
Raj Karega Jat / राज करेगा जाट – Best speech of Sir Chhotu Ram
चौ० साहब ने जाटों की गरीबी के कारण ढूंढ लिए थे । पूरे संयुक्त पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह का राज्य जाने के बाद 55 हजार सूदखोर पैदा हो गए थे जिनकी 100 साल से ब्याज की कमाई बढ़कर पंजाब राज्य के सालाना बजट से तीन गुणा अधिक थी ।
इनके बाट बट्टे और ताखड़ी नकली और काणी होती थी । (पूर्ण जानकारी के लिए मेरी पुस्तक असली लुटेरे कौन? के अध्याय ‘जाटों ने चौ० छोटूराम की शिक्षाओं को भुलाया’ तथा ‘जाटों की टूटती पीठ’ को अवश्य पढ़ें ।)
जब सन् 1938 में ‘पंजाब कृषि उत्पादन मार्केट एक्ट’ पर पंजाब सदन में बहस हुई तो इन हिन्दू पंजाबियों के नेता डॉ० गाकुलचन्द नारंग ने कहा ‘इस बिल के पास होने से रोहतक का दो धेले का जाट लखपति बनिये के बराबर मार्केट कमेटी में बैठेगा ।’
इसके उत्तर में चौ० साहब ने गरजकर कहा, ‘नारंग जी आप तो एक दिन एक बैठक में कह रहे थे कि जाट तो राष्ट्रवादी कौम है, उसके अपने अधिकार हैं फिर आज उनके अधिकार कहां चले गए?’ चौ० साहब बहुत हाजिर जवाब थे और अपनी बात को दृढ़ता और आत्मविश्वास से कहते थे ।
चौ० साहब इस बात को बार-बार दोहराते थे कि जाट कौम बोलना सीखे और दुश्मन को पहचाने । उनके निशाने पर दो दुश्मन थे – मंडी और पाखण्डी ।
लेकिन अफसोस है कि चौ० साहब ने इन दुश्मनों के विरुद्ध जो कानून बनवाए उनको हम न तो गति दे पाए और न ही याद रख पाए ।
उन्होंने अपने समय में इस लुटेरे वर्ग को नंगा कर दिया था और एक कोने में लगा दिया था । वे यह भी भली-भांति जानते थे कि अंग्रेजों से कैसे और कब काम लेना है । उन्होंने अपनी कौम के फायदे का कोई एक अवसर भी नहीं गंवाया ।
एक तरफ तो वे अपने जाट गजट में अंग्रेजों की शासन प्रणाली की बखिया उधड़ते थे तो दूसरी तरफ इसी ‘जाट गजट’ के लिए अंग्रेजों से ग्रांट भी लेते थे । चौ० साहब बहुत ही बुद्धिमान और पक्के इरादे वाले जाट थे जिन्होंने बड़ी सफाई से अंग्रेजों को दूहा और कांग्रेस को धोया ।
पंजाब में तो कांग्रेस का इन्होंने लगभग सफाया ही कर दिया था । इसी कारण नेहरू, गांधी पंजाब में उनके देहान्त तक कांग्रेसी सरकार के लिए मुंह ताकते रहे । उधर अंग्रेज जान गए थे कि चौ० साहब के बगैर पंजाब में पत्ता भी हिलने वाला नहीं ।
राज करेगा जाट
इसीलिए दूसरे विश्वयुद्ध में जब अंग्रेज युद्ध के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे थे तो चौ० साहब ने समय की नजाकत को भांपते हुए गेहूं का मूल्य 6 रुपये प्रति मन से बढ़ाकर 10 रुपये प्रति मन की मांग कर डाली ।
इस पर पंजाब के गर्वनर ने सभी राज्यों के कृषिमन्त्री या प्रतिनिधियों को अपने दफ्तर बुलाया जिसमें दक्षिण राज्य के श्री राजगोपालाचार्य ने गेहूं का भाव न बढ़ाने के लिए समर्थन किया तो चौ० साहब ने तड़ाक से कहा कि ये दक्षिण वाले हैं, ये चावल बोते हैं, गेहूं नहीं ।
इस पर भी जब गर्वनर नहीं माना तो चौ० साहब ने उनकी टेबल पर मुक्का मारकर कहा यदि गेहूं का भाव 10 रुपये प्रति मन नहीं किया गया तो वे पंजाब के खेतों में खड़े गेहूं को आग लगवा देंगे और उठकर चले गए ।
क्या कोई पिट्ठू अपने शासक पर इस प्रकार का व्यवहार करने की हिम्मत रखता है ? क्या आज भी इस आजाद देश में मुख्यमन्त्री या मंत्री या किसान नेता अपनी मांग को इस प्रकार मनवा सकता है ? लेकिन अंग्रेजों ने उनकी मांग को मानना पड़ा ।
चौ० साहब ने अपने राजनीतिक जीवन में अनेक किसान हितैषी कानून बनवाए जिनको इस लेख में लिखना सम्भव नहीं है । याद रहे चौ० छोटूराम भारतवर्ष के प्रथम कृषि दार्शनिक थे ।
Raj Karega Jat / राज करेगा जाट
कुछ लोग कहते थे कि चौ० छोटूराम आजादी के पक्षधर नहीं थे । यह प्रचार उनके विरोधियों ने शुरू किया था क्योंकि उन्होंने सन् 1929 में कहा था – हम गौरे बनियों का राज बदलकर काले बनियों का राज नहीं चाहते अर्थात् उनके विचार में बनिया तो बनिया ही है, चाहे काले हो या गौरे ।
उन्होंने तो सिर्फ हमें लूटना है । जब लुटना ही है तो कोई भी लूटे, इसमें क्या फर्क है ? ऐसी ही टिप्पणी एक बार शहीदे-आजम भगतसिंह ने भी की थी ।
चौ० साहब अच्छी तरह जानते थे कि उस समय यदि आजादी मिली तो वह सत्ता हस्तांतरण होगा और यह सत्ता बनियों को मिलेगी और यह शत-प्रतिशत सच हुआ क्योंकि इस देश के प्रधानमन्त्री का चयन करने वाला असल में कर्मचन्द गांधी बनिया जाति से था ।
चौ० साहब चाहते थे कि किसान और मजदूर का राज हो जिसमें जाट स्वयं ही सर्वोपरि होगा । इसलिए वे चाहते थे कि जाट कौम पहले शिक्षित हो ताकि देश आजाद होने पर सत्ता पर कायम रह कर अच्छी तरह से शासन करे ।
इसलिए उन्होंने आजादी के लिए कभी भी हड़बड़ी और जल्दबाजी नहीं दिखलाई । विरोधी यह भी कहते हैं कि चौ० साहब कभी जेल नहीं गए । मोहम्मद जिन्ना तो कभी एक दिन के लिए भी जेल नहीं गए फिर वे पाकिस्तान के राष्ट्रपति कैसे बने ?
Raj Karega Jat / राज करेगा जाट – Best speech of Sir Chhotu Ram
यह जानने का विषय है कि नेहरू और गांधी को जेलों में जो सुविधाएं मिली वे सुविधाएं आज तक हमारे घरों में भी हमें नहीं मिलती और इसका उदाहरण पाकिस्तानी हत्यारा कसाब से भी लिया जा सकता है जिसको उसकी सुरक्षा में लगे सिपाहियों से कहीं बेहतर खाना मिलता रहा ।
चौ० साहब भली भांति जानते थे कि उसी समय सत्ता मिलने पर कौन लोग सत्ता पर काबिज होंगे । इसलिए उन्होंने एक दिन कहा था,
‘बड़ी विचित्र बात है कि आज भी भारत पर 12 प्रतिशत उच्च जाति के लोगों का राज 88 प्रतिशत भारतीय जनता पर है ।’
हम सभी जानते हैं कि किस प्रकार नेहरू और गांधी ने जिन्ना की पाकिस्तान की मांग के सामने घुटने टेक दिए थे जबकि उसी जिन्ना को जो पंजाब में पाकिस्तान की तलाश करने गया था को चौ० साहब ने रातोंरात पंजाब से खदेड़ दिया था।
9 मई 1944 को लायलपुर की एक विशाल जनसभा में चौ० साहब ने जिन्ना को चैलेंज किया था कि वह उसके इक्यासी मुस्लिम विधायकों में से किसी एक को भी तोड़ कर दिखाए, पाकिस्तान बनाने की तो बात ही छोड़ो ।
इसी दम पर चौ० साहब ने 14 अगस्त 1944 को गांधी को एक पत्र विस्तार से लिखा था कि उन्हें जिन्ना के बहकावे में नहीं आना है । लेकिन अफसोस, कर्मचन्द गांधी उस पत्र का उत्तर ही नहीं दे पाए और इसका इन्तजार करते-करते चौ० साहब चले गए ।
Raj Karega Jat / राज करेगा जाट – Best speech of Sir Chhotu Ram
बोलना ले सीख और दुश्मन को ले पहचान