पूनिया जाट गोत्र का इतिहास
यूनानी इतिहासकार हैरोडोटस का हवाला देकर बी० एस० दहिया ने लिखा
“पौनिया जाटों की एक स्वतंत्र रियासत काला सागर के निकट लघु एशिया (Asia Minor) में थी। वहां से महान् सम्राट् दारा (Darius) ने इनको अमरिया के निकट बैक्ट्रिया (Bactria) क्षेत्र में भेज दिया।” पौनिया और तोखर गोत्र के जाट छठी शताब्दी ई० पू० यूरोप में थे।
दूसरे जाट वंशों एकी भांति समय अनुसार पौनिया जाट भी विदेशों से अपने पैतृक देश भारतवर्ष में लौट आये। ये लोग भारतवर्ष के उत्तर-पश्चिमी दर्रों से आये। पहले ये लोग इसी पश्चिमी सीमा में बस गये।
इसके प्रमाण इस बात से हैं कि आज भी पौनिया जाटों की संख्या पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर बसे हुए बन्नूं, डेरा ईस्माइलखान, डेरा गाजीखान, डेरा फतहखान नगरों में हैं।
ये डेरा नाम वाले तीनों किले पौनिया जाट राजा जसवन्तसिंह ने अपने तीन पुत्रों सहित इस्लाम में प्रवेश करने पर बनवाये थे। डेरा इस्माइलखान के किले पर यह लेख लिखा हुआ है।
वहां पर एक कहावत भी प्रचलित है कि “मान पैनिया चट्ठे, खानपीन में अलग-अलग लूटने में कट्ठे।” अर्थात् ये तीनों गोतों के जाट उधर के बहुसंख्यक लड़ाकू गिरोह थे। उस क्षेत्र में मान और चट्ठा मुसलमानधर्मी जाटों की भी बड़ी संख्या है।
भारत की पश्चिमी सीमा से चलकर पौनिया जाटों का एक बड़ा दल जांगल प्रदेश (राजस्थान) में सन् ईस्वी के आरम्भिक काल में पहुंच गया था। इन्होंने इस भूमि पर पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्तिम काल तक राज्य किया था।
जोधपुर प्रसिद्ध हो जाने वाले देश से पौनिया जाटों ने दहिया लोगों को निकाल दिया था। जिस समय राठौरों का दल बीका और कान्दल के संचालन में जांगल प्रदेश में पहुंचा था उस समय पौनिया जाट सरदारों के अधिकार में 300 गांव थे।
जाट समाज गोत्र लिस्ट – हरियाणा पंजाब राजस्थान
इनके अतिरिक्त जांगल प्रदेश में पांच राज्य जाटों के और थे। पौनिया (पूनिया जाट गोत्र) के 300 गांव परगनों में बांटे हुए थे जिनके नाम –
- भादरा
- अजीतगढ़
- सीधमुख
- दादर
- राजगढ़
- साकू
ये बड़े नगर थे जिनमें किले बनाये गये थे। इन जाटों का यहां प्रजातंत्र राज्य था। उस समय इनकी राजधानी झासल थी जो कि हिसार जिले की सीमा पर है।
रामरत्न चारण ने “राजपूताने के इतिहास” में इन राज्यों का वर्णन किया है और पौनिया जाटों की राजधानी लुद्धि नामक नगर बताया है। “टॉड राजस्थान”, “तारीख राजस्थान हिन्द” और “वाकए-राजपूताना” आदि इतिहासों में इनका वर्णन है।
उस समय पौनिया जाटों का राजा कान्हादेव था। वह स्वाभिमानी और कभी न हारने वाला योद्धा था। सब पूनिया भाई उसकी आज्ञा का पालन करते थे। पौनिया जाट वारों के एक हाथ में हल की हथेली (मूठ) और दूसरे हाथ में तलवार रहती थी।
इन्होंने बीका की राठौर सेना के साथ बड़े साहस से युद्ध किये और राठौर इनको हरा न सके। आपसी फूट के कारण गोदारा जाटों ने, पौनिया जाटों के विरुद्ध, राठौरों का साथ दिया। इन दोनों बड़ी शक्तियों ने मिलकर पौनिया जाटों को हरा दिया। पौनिया जाट वीरों ने कायरता नहीं दिखाई और खून की नदियां बहा दीं।
जाटों के साथ पक्षपात के कुछ उदाहरण
पूनिया जाट गोत्र – History of Poonia Jat gotra
इन्होंने इसका बदला राठौर नरेश रायसिंह का वध करके लिया। यह बदला लेनी की बात “भारत के देशी राज्य” इतिहास में भी लिखी हुई है। पूनिया जाट गोत्र की पुरानी राजधानी झांसल में जहां उनका किला था, कुछ निशान अब तक भी हैं।
बालसमद में भी ऐसे ही चिह्न पाये जाते हैं। राठौरों के राजा पूनिया लोगों को खुश करने के लिए इनके मुखियों को दस पौशाक और कुछ नकद प्रतिवर्ष दिया करते थे।
पूनिया जाट गोत्र की हार होने पर कुछ ने तो वह मरुभूमि छोड़ दी और बहुत से शासित रूप से वहीं रहते रहे। वहां पौनियागढ़ का नाम बदलकर राजगढ (शार्दूलपुर) रखा गया जिसके चारों ओर 100 गांव पौनिया जाटों के अब भी बसे हैं।
जाट कौम में गोत्र विवाद – जायज या नाजायज?
बीकानेर से चलकर चौ० नैनसुख पौनिया अपने एक संघ के साथ गुड़गांवा होता हुआ मुरादाबाद पहुंच गया। वहां नैनसुख ने पूनिया जाट गोत्र की “मुरादाबाद रियासत” की स्थापना की।
सन् 1857 ई० के विद्रोह में, चौ० नैनसुख के वंशज गुरुसहाय पूनिया ने, अंग्रेजों की बड़ी सहायता की थी। जिसके पुरस्कार में ब्रिटिश सरकार ने मुरादाबाद नगर का चौथाई भाग और इसी जिले के 50 गांव और बुलन्दशहर में 17 गांव दिए थे।
इस रियासत के राजा ललतूसिंह और रानी किशोरी प्रान्तीय ख्याति प्राप्त हो चुके थे। इस रियासत के वैवाहिक सम्बन्ध भरतपुर जैसे ऊँचे राजघरानों के साथ थे।
चौधरी बंसीलाल Chaudhary Bansi Lal
उत्तरप्रदेश में पूनिया जाट गोत्र की बड़ी संख्या है। वहां इनके गांव निम्नप्रकार से हैं। मुरादाबाद जिले में 2 गांव, मेरठ जिले में 10 गांव, अलीगढ़ जिले में सासनी के समीप 10 गांव हैं और अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील में “पौनियावाटी” सुप्रसिद्ध है, जहां के पौनिया जाटों के 84 गांव मुगल पतनकाल में सर्वथा स्वतंत्र हो गये थे।
आगरा जिले में टूण्डले के समीप पूनिया जाट गोत्र की एक टीकरी नाम की अच्छी रियासत थी। चुलाहवली, मदावली, बलिया नंगला यहां के प्रसिद्ध गांव इनके हैं। बुलन्दशहर जिले में पौनियों का मण्डौना गांव बड़ा प्रसिद्ध है।
जालन्धर जिले में 9 गांव पौनियां सिख जाटों के हैं। अम्बाला में नूरपुर, जांडली, मानका, हिसार में लाडवा, सातरोड कलां व खुर्द, हांसी के पास खरक पूनिया, सिरसाना, विदयान खेड़ा, ज्ञानपुरा, मतलौहडा और सरेरा गांव पौनिया जाटों के हैं।
जिला पटियाला (पहले रियासत पटियाला) में भी बहुत गांव पूनिया जाट गोत्र सिक्खों के हैं। भिवानी जिले (पूर्व जींद रियासत) में 150 गांव पौनियां जाटों के हैं। जैसा कि पहले लिख दिया गया है, पाकिस्तान में पौनिया जाट बड़ी संख्या में आबाद हैं।
पूनिया जाट गोत्र का एक शिलालेख जिला देहरादून (उ० प्र०) में चूहदपुर के समीप जगत् ग्राम में मिला है। इन लोगों का राज्य यमुना किनारे जगाधारी के निकट क्षेत्र पर था।
पूनिया जाट गोत्र हिन्दू, सिक्ख और मुसलमान तीनों धर्मानुयायी हैं। अन्य जाटवंशों (गोत्रों) की अलग-अलग जनगणना में पूनिया जाट गोत्र के लोग सबसे अधिक संख्या में हैं। परन्तु प्रतिष्ठा (सम्मान) की दृष्टि से सब जाटवंश (गोत्र) एक समान हैं चाहे उनकी जनसंख्या कम हो या अधिक हो।
- जाट इतिहास उर्दू पृ० 373 लेखक ठा० संसारसिंह; जाटों का उत्कर्ष पृ० 328 लेखक कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री ।
- Studies in Indian History and Civilization P. 263 by Buddha Prakash का हवाला देकर लिखा है बी० एस० दहिया ने अपनी पुस्तक “जाट्स दी एनशन्ट् रूलर्ज” पृ० 267 पर।
- जाट महापुरुषों की लिस्ट
चौधरी कन्हैया लाल पूनिया
चौधरी कन्हैयालाल पूनिया ने लिखा है कि… लगभग 900 साल पहले श्री उतगर के दो संतान पैदा हुई जिसमें से एक का नाम बाढ़ तथा दूसरे का नाम मेर था। बाढ़देव का जन्म विक्रम संवत 1154 (1097=ई.) कार्तिक सुदी पूर्णिमा को पुणे महाराष्ट्र में हुआ।
बाढ़देव ने विक्रम संवत 1184 (1127=ई.) आषाढ़ सुदी नवमी वार शनिवार को बाड़मेर की स्थापना की। बाढ़ और मेर दोनों भाईयों के नाम पर आज के बाढ़मेर का नामकरण हुआ।
कालांतर में दोनों भाईयों के झगड़े का फायदा उठाकर सोढ़ा राजपूतों ने उस पर कब्जा कर लिया। बाढ़देव उत्तर भारत की ओर प्रस्थान कर गए। उनकी संताने पूनिया कहलाई और मेर महाराष्ट्र में मेरठा (मराठा) के नाम से जाने गए।
बाढ़देव बाड़मेर से विक्रम संवत 1235 (1178=ई.) में पुष्कर आए और आगे जीनमाता के स्थान पर हर्ष के पहाड़ पर शिव मंदिर बनवाया।
जीनमाता ने बाढ़देव को वरदान स्वरूप एक पत्थर शीला दी और कहा कि यह जहां गिरे वहीं पर नीम की हरी शाखा काटकर डालना वह संजीवनी हो जाएगी तथा वहीं आपका राज्य सदा-सदा के लिए कायम रहेगा। पूनिया गोत्र आज भी उस शीला का आदर करता है। उस पर स्नान नहीं करते।
विक्रम संवत 1245 (1188=ई.) मिति चैत्र सुदी 2 वार शनिवार को पूनिया गोत्र के आदि पुरुष बाढ़देव ने झांसल में अपने प्रसिद्ध गणराजय की नींव रखी। विक्रम संवत 1245 से 1822 के राठोडों के साथ राजीनामे तक पुनिया आज के हिसार-पिलानी-चुरू-तारानगर एवं भादरा तक काबिज रहे।
तंवर, आन्तल, रावत, राव या सराव गोत्र का इतिहास
इस बीच राज्य कायम रखने के समकालीन संघर्षों में पुनियों की राजधानी झांसल से लूदी में तब्दील करनी पड़ी।
पडोस के दईया सरदार दीर्घपाल पर विजय, रठौड़ों और गोदारों की संयुक्त सेना के साथ लगातार संघर्ष , जबरिया राठौड़ शासक रायसिंह द्वारा धर्मभाई बनाने का बुलावा देकर धोखे से पूनिया सरदारों चेचू और खेता को अपने राजगढ़ वाले किले की नींव में दबाने का बदला राठौड़ रायसिंह के वध से लेने आदि की ऐतिहासिक घटनाएँ हुई।
इस कालावधि में कान्हादेव पुनिया गोत्र का इतिहास प्रसिद्ध योद्धा बनकर उभरा जिसने लूदी में अपना स्वतंत्र गढ़ निर्माण किया। लगभग 360 गांवों का यह पूनिया गणराज्य अंतत: जोधपुर शासन के विस्तार हेतु कांधल और बीका तथा जाट गणराज्यों की फूट का शिकार हो गया।
राठौड़ नरेश रायसिंह के वध के बाद पोनियागढ़ का नाम राजगढ़ रख दिया। आज भी राजगढ़ के चारों ओर 100 गाँव पूनिया के हैं। जांगल प्रदेश के नैनसुख पुनिया को ब्रिटिश सरकार ने मुरादाबाद के 50 गाँव एवं बुलंदशहर के 17 गाँव की स्वतंत्र रियासत पुरस्कार स्वरूप प्रदान की थी।
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के 2 गाँव, मेरठ के 10 गाँव, अलीगढ़ सासनी के 10 गाँव और अतरौली की पौनियावाटी प्रसिद्ध है जहां मुगल-पतन काल में पुनिया के 84 गाँव स्वतंत्र घोषित हो गए थे। आगरा की पुनिया टेकरी एवं बुलंदशहर का पौनीयों का मण्डौना गाँव प्रसिद्ध है।
पंचायत और इसके जन्मदाता जाट थे
उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के अलावा पंजाब के जालंधर एवं पटियाला और हरयाणा की भिवानी में 150 गाँव पुनिया खाप से संबन्धित हैं। भगवान शिव और नाग से जन्म रिस्ता रखने वाली जाटों की इस गोत्र का युद्ध तथा खेल इतिहास में भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण संसार में खास मुकाम है।
पूनिया जाट हिन्दू, सिख और मुसलमान तीनों धर्मों में और अनेक जतियों में पाये जाते हैं। पाकिस्तान के बन्नू, डेरा इसमाईल खान, डेरा गजीखान, डेरा फतह खान, पौनीया जाटों के इस्लामिकरण की खुशी में बसाये गए प्राचीन नगर हैं। डेरा इसमाईल खान के किले पर शिलालेख में दर्ज है कि – “मान पौनीयां चटठे, खान-पान में अलग-अलग लूटने में कट्ठे”।
गणेश बेरवाल[91] ने लिखा है कि राजगढ़ के बारे में सरकारी गज़ट में अंकित है कि यह महान थार रेगिस्तान का गेट है, जहां से होकर दिल्ली से सिंध तक के काफिले गुजरते हैं। 1620 ई. के पहले यहाँ प्रजातांत्रिक गणों की व्यवस्था थी जिसमें भामू, डुडी, झाझरिया, मलिक, पूनीयां, राड व सर्वाग गणतांत्रिक शासक थे ।
जैतपुर पूनीया गाँव था जहां से झासल, भादरा (हनुमानगढ़) तक का बड़ा गण था। जिसका मुख्यलय सिधमुख था। गण में एक ही व्यक्ति सिपाही भी था और किसान भी। लड़ाई होने पर पूरा गण मिलकर लड़ता था। राठोड़ों की नियमित सेना ने इनको गुलाम बनाया।
यूरोप में कैथोलिक ईसाई धर्म और जाट
पूनिया जाट गोत्र वंशावली
पंडित अमीचन्द्र शर्मा ने लिखा है – रियासत बीकानेर में पूनिया गोत्र के कई गाँव हैं। इनके बड़े का नाम बाहड़ था। उसने अपने प्राक्रम से बीकानेर रियासत का बहुत सा देश अपने वश में कर लिया था।
उसने बाड़मेर कोट नाम का गाँव बसाया। जब उसकी संतान बढ़ गई तो वहां से चलकर झांसल ग्राम बसाया जो बीकानेर रियासत में है। उसके 12 पुत्र हुये –
1 पुनिया,
2 धानिया,
3 छाछरेक,
4 बाली,
5 बरबरा,
6 सुलखन,
7 चिड़िया,
8 चांदिया,
9 खोख,
10 धनाज,
11 लेतर,
12 ककरके
इनके नाम पर जाटों के 12 गोत्र शुरू हुये। सबसे बड़ा पूनिया था उसने झांसल के आसपास बहुत गाँव बसाये। इसीलिए उस भाग को पूनिया इलाका कहते हैं।
आईने अकबरी में इलाका पूनिया प्रथक लिखा है। बाहड़ का पुत्र पूनिया था। जिससे पूनिया गोत्र चला। पूनिया जाट अपने आपको शिव गोत्री बताते हैं। दूसरे जाटों को कश्यप गोत्री बताते हैं।
लेखक ने यह विवरण सरकारी किताब से लिखा है जो जिला हिसार के पुराने बंदोबस्त में जिला हिसार के सब जातियों के वर्णन में दिया है।