चौधरी बंसीलाल – Chaudhary Bansi Lal
विशेषतायें – चौधरी बंसीलाल का कद लम्बा है। शरीर पतला होते हुए भी पुष्ट, सरल प्रकृति के तथा कठोर परिश्रमी हैं। आप का सादा पहनावा है, केवल खद्दर का ढीला कुर्ता-पाजामा तथा सिर पर गांधी कैप पहनते हैं। आप धर्मनिरपेक्ष एवं योग्य प्रशासक नेता हैं। आप कठिन समस्या को शीघ्रता से हल करने वाले एक अद्भुत नेता हैं।
आप अपने आदेशों का पालन बड़ी कठोरता से करवाते हैं। राज्य के राजनैतिक विषय में अस्थिरता करने वालों के विरुद्ध आपने निडरता, दृढ़ता तथा कठोरता से कार्य किए। आप हरयाणा प्रान्त की हर पहलू में उन्नति करके इसको चमकाने वाले पहले मुख्यमन्त्री हैं। आप सन् 1949 से आज तक कांग्रेस पार्टी में हैं, आपने किसी अन्य पार्टी में प्रवेश नहीं किया है।
जन्म, शिक्षा तथा व्यवसाय – चौधरी बंसीलाल का जन्म सन् 1927 में जिला भिवानी के एक गांव गोलागढ़ में लेघा जाट गोत्र के एक निर्धन किसान जाट चौ० मोहरसिंह के घर हुआ। इनका पालन-पोषण साधारण जाट घरानों के बालकों की भांति हुआ। अपनी शिक्षा प्राप्ति के साथ-साथ अपने खेतों तथा घरेलू धन्धों में अपने पिता का हाथ बंटाते थे। चौधरी बंसीलाल ने पंजाब विश्वविद्यालय से बी० ए०, एल-एल-बी पास करके भिवानी में वकालत शुरु की।
लोहारू केवल 60 गांवों की एक छोटी सी रियासत जिला हिसार में थी जिसका शासक नवाब अमीनुद्दीन था। इस रियासत की 95% हिन्दू आबादी थी जिसमें जाट किसान अधिकतर थे। नवाब ने हिन्दुओं पर भारी कर, बेगार लगाये तथा धार्मिक स्वतन्त्रता पर रोक लगा दी। 1935 में जनता में जनजागृति पैदा करने में आर्यसमाज ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन प्रचारकों के ठिकानों में गोलागढ़ भी एक खास केन्द्र था। जनता ने नवाब के विरुद्ध आन्दोलन शुरु कर दिया।
8 अगस्त 1935 को जनता पर गोलियां चलवा दीं जिससे 22 देशभक्त शहीद हो गये और बहुत लोग घायल हो गये। सर छोटूराम की अध्यक्षता में 17 नेताओं की एक रिलीफ कमेटी बनी जिसमें श्री ठाकुरदास भार्गव भी थे। यह गोलीकांड गांव सिंघाणी में हुआ। यह सभी सूचनायें सूबेदार दिलसुख द्वारा वायसराय तक पहुंचाई गईं। वायसराय के आदेश पर नवाब ने सूबेदार दिलसुख और उनके साथ किसानों से समझौता किया तथा टैक्सों में भी छूट दी।
सिद्धू बराड़ जाट वंश – Sidhu Brar Jat Dynasty
चौधरी बंसीलाल Chaudhary Bansi Lal
इस कांड का चौधरी बंसीलालपर बड़ा प्रभाव पड़ा। कुछ वर्षों के बाद नवाब ने अपनी वही क्रूर व कठोर नीति जनता के लिए अपनाई। इसके विरुद्ध जनता ने प्रजामण्डल आंदोलन शुरू किया जिसमें विद्यार्थियों व विद्वान् युवकों ने भी भाग लिया। इस अवसर पर चौ० बंसीलाल भी इस आन्दोलन में कूद पड़े और सन् 1943 में इस प्रजामण्डल आन्दोलन के सेक्रेटरी (मन्त्री) नियुक्त किए गए।
आपने नवाब के विरुद्ध जनता को बड़ा सहयोग दिया। प्रजामण्डल के नेताओं तथा अन्य कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं ने रियासत में शान्ति बनाए रखनी की अंत तक चेष्टा की। आखिर सत्य और अहिंसा के मार्ग के इन पथिकों की विजय हुई। स्वतन्त्रता के बाद रियासत का विलय हिसार जिले में कर दिया गया।
चौधरी बंसीलाल का राजनीति में प्रवेश
आप स्वतन्त्रता प्राप्ति के दो वर्ष पश्चात् सन् 1949 में कुराल मंडल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए। इसके पश्चात् आपका राजनैतिक जीवन चालू रहा। आप संयुक्त पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। सन् 1960 में आपको सरदार प्रतापसिंह कैरों सरकार ने राज्यसभा का सदस्य चुनकर दिल्ली भेज दिया। उस समय आपकी आयु केवल 33 वर्ष की थी। वहां पर आपका मिलाप बड़े-बड़े राजनीतिक नेताओं से हो गया। वृद्ध कांग्रेसी नेता श्री गुलजारीलाल नन्दा आपकी कार्य योग्यता तथा दृढ़ विचारों से चकित रह गए और सदा इनके सहायक रहे।
चौधरी बंसीलाल हरयाणा मुख्यमन्त्री पद पर
हरयाणा की स्थापना 1 नवम्बर 1966 को होने पर हरयाणा के पहले मुख्यमन्त्री पं० भगवतदयाल शर्मा नियुक्त हुए जो 4 महीने 9 दिन तक इस पद पर रहे। फिर 1967 में आम चुनाव हुए। मार्च 10, 1967 को पं० भगवतदयाल शर्मा दोबारा हरयाणा प्रांत के मुख्यमन्त्री बने। परन्तु इनका बहुमत न होने पर इनको 22 मार्च के दिन त्यागपत्र देना पड़ा, यह केवल 13 दिन इस पद पर रह सके। 1967 के इस चुनाव में बंसीलाल जीत गए थे।
श्री गुलजारीलाल नन्दा ने पं० भगवतदयाल से, चौधरी बंसीलाल को अपने मन्त्रिमण्डल में उपमन्त्री बनाने की सिफारिश की थी, परन्तु इनको नहीं बनाया गया। 24 मार्च 1967 को हरयाणा के दूसरे मुख्यमन्त्री राव वीरेन्द्रसिंह बने, जिनकी पार्टी का नाम विशाल हरयाणा पार्टी था। 21 नवम्बर 1967 को 8 महीने के बाद राव वीरेन्द्रसिंह मन्त्रिमण्डल भंग हो गया। इसी दिन से हरयाणा प्रान्त में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। (देखो, पिछले पृष्ठों पर चौ० देवीलाल प्रकरण)।
चौधरी बंसीलाल Chaudhary Bansi Lal
श्री वीरेन्द्रनारायण चक्रवर्ती 22 नवम्बर 1967 से 20 मई 1968 तक राष्ट्रपति की तरफ से हरयाणा प्रांत के शासक रहे। 6 महीने बाद 12-14 मई 1968 को हरयाणा प्रान्त में मध्यावधि चुनाव हुए। यह पहला अवसर था कि हरयाणा के कांग्रेसी उम्मीदवारों ने केन्द्रीय कांग्रेस हाई कमांड के आदेश अनुसार चुनाव लड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी 81 सीटों में से 48 सीट प्राप्त करके विजयी हुई। 1967 के आम चुनाव में भी कांग्रेस ने 81 में से 48 सीटें जीती थीं।
चौ० बंसीलाल विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। अब कांग्रेस सदस्यों के नेता का चुनाव होना था। ब्रिगेडियर रणसिंह भी अपने प्रतिद्वन्द्वी संयुक्त विधायक दल के भूतपूर्व मन्त्री चौ० प्रतापसिंह दौलता को बेरी हल्के से हराकर 20,000 मतों की बढ़त लेकर विजयी हुए थे। मुख्यमंत्री पद के कई उम्मीदवार थे, जिनमें से प्रसिद्ध व्यक्ति निम्न प्रकार से थे –
- 1. पं० भगवतदयाल शर्मा,
- 2. ओमप्रभा जैन,
- 3. ब्रिगेडियर रणसिंह,
- 4. चौ० देवीलाल,
- 5. चौ० रणवीरसिंह,
- 6. श्री रामकिशन गुप्ता,
- 7. केन्द्र में राज्य शिक्षामन्त्री प्रो० शेरसिंह।
परन्तु कांग्रेस हाई कमांड ने चौधरी बंसीलाल को नेता बनाने का निश्चय किया तथा 21 मई 1968 को 41 वर्षीय चौ० बंसीलाल को सर्वसम्मति से निर्विरोध नेता चुनकर हरयाणा राज्य का मुख्यमन्त्री बनाया गया। आप हरयाणा के तीसरे मुख्यमण्त्री बने। आप 21 मई 1968 से 14 मार्च 1972 तक हरयाणा राज्य के मुख्यमन्त्री रहे।1
मुख्यमन्त्री चौ० बंसीलाल ने अपना मन्त्रिमण्डल बनाया और ब्रिगेडियर रणसिंह साहब को स्पीकर नियुक्त किया, जो हरयाणा विधानसभा के चौथे स्पीकर बने, जो 16 जुलाई 1968 से 3 अप्रैल 1972 तक रहे। इनके पश्चात् बनारसीदास गुप्ता 4 अप्रैल 1972 से दिसम्बर 1975 तक स्पीकर रहे।2 चौधरी बंसीलाल की सरकार के विरुद्ध अक्तूबर 1968 में पं० भगवतदयाल शर्मा ने अपना धड़ा
अलग बनाना शुरु कर दिया। भगवतदयाल शर्मा हरयाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान बनना चाहते थे। मुख्यमन्त्री चौधरी बंसीलाल ने यह जान लिया था कि पं० भगवतदयाल शर्मा इस पद पर आ गए तो उनकी सरकार को गिरा देंगे। इसलिए चौ० बन्सीलाल ने उसका दृढ़ता से विरोध किया। श्री गुलजारीलाल नन्दा भगवतदयाल को कांग्रेस प्रधान बनाना चाहते थे, जबकि केन्द्रीय कांग्रेस प्रधान श्री निजलिंगप्पा ने चौधरी बंसीलाल की जोरदार सहायता की। अतः भगवतदयाल को हरयाणा कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नहीं बनाया गया।
चौधरी बंसीलाल Chaudhary Bansi Lal
इसके बाद भगवतदयाल ने बन्सीलाल सरकार को गिराने के लिए एम० एल० ए० की तोड़-फोड़ शुरु की। उसने दावा किया कि उसकी ओर 48 कांग्रेस विधायकों में से 19 हैं और राव वीरेन्द्रसिंह का संयुक्त मोर्चा तथा जनसंघ जिसके नेता चौ० मुखत्यारसिंह हैं, उसकी तरफ हैं। चौ० चांदराम भी भगवतदयाल की ओर हो गये। बन्सीलाल जी ने केन्द्रीय हाई कमांड को सूचित किया कि उसकी सरकार को कोई खतरा नहीं है।
9 दिसम्बर 1968 को 41 विधानसभा के सदस्यों ने, जिनमें 16 कांग्रेसी भी शामिल थे, गवर्नर चक्रवर्ती को सूचना दी कि हमने संयुक्त मोर्चा बना लिया है, जिसके नेता भगवतदयाल शर्मा हैं। हमारी मांग है कि बंसीलाल त्यागपत्र दें क्योंकि वह अपना बहुमत खो बैठे हैं। यद्यपि बाहर से उनका बहुमत दीख रहा था, परन्तु गवर्नर ने यह सोचकर कि यह मोर्चा हरयाणा में स्थायी सरकार नहीं रख सकेगा, उनकी बात पर विश्वास नहीं किया।1
28 जनवरी 1969 को विधानसभा का अधिवेशन बैठा। इससे पहले चौ० रिजकराम, चांदराम, मुखत्यारसिंह, रणबीरसिंह आदि स्पीकर ब्रिगेडियर रणसिंह से मिले और उनसे कहा कि हम आपको मुख्यमन्त्री बनाना चाहते हैं, परन्तु उन्होंने चौधरी बंसीलाल के विरुद्ध ऐसा करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद स्वयं पं० भगवतदयाल ब्रिगेडियर से मिले और कहा कि आप अपना वोट बंसीलाल के विरुद्ध मेरे को दे दो। ब्रिगेडियर साहब ने उनसे भी ऐसा करने से इन्कार कर दिया।
अधिवेशन के समय विरोधी दल ने चौधरी बंसीलाल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रखना था, परन्तु उनको बहुमत के लिए केवल 4 या 5 विधायकों की आवश्यकता थी, जो कि वे ऐसा करने में सफल हो जाते। विरोधी नेताओं ने स्पीकर ब्रिगेडियर रणसिंह से निवेदन किया कि वह इस अविश्वास प्रस्ताव को बहस के लिए 5-6 दिन बाद लायें, ताकि हम अपना बहुमत बना सकें। परन्तु स्पीकर जी ने उनकी बात को नहीं माना तथा उनको यह समय न देकर अधिवेशन को समाप्त कर दिया। इस तरह से ब्रिगेडियर रणसिंह ने बंसीलाल सरकार को बचा लिया2।
दीनबन्धु चौधरी सर छोटूराम
प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी चौ० बंसीलाल की पूरी सहायक थी। उसने चौ० बंसीलाल को अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए उचित कार्य करने का अधिकार दे दिया। केन्द्रीय कांग्रेस संसद बोर्ड ने पं० भगवतदयाल को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया। चौ० नेकीराम, चौ० माड़ूसिंह, पं० रामधारी गौड़, महावीरसिंह, खुर्शीद अहमद इत्यादि बहुत से सदस्य पं० भगवतदयाल को छोड़कर चौ० बंसीलाल के साथ आ गये। इसके बाद चौधरी बंसीलाल सरकार बहुमत में आ गई।
27 फरवरी 1970 को चौ० बंसीलाल को हटाने का एक और षड्यन्त्र पुराने कांग्रेस सदस्य चौ० रणबीरसिंह द्वारा रचा गया। उन्होंने विरोधी पार्टी के सदस्यों तथा 5 या 6 कांग्रेस सदस्यों से मिलाप करके अपनी ओर कर लिया। परन्तु इसका भेद मुख्यमन्त्री चौधरी बंसीलाल को ठीक समय पर लग गया तथा उन्होंने इस षड्यन्त्र को विफल कर दिया। इसके बाद किसी ने सिर नहीं उठाया।
दिसम्बर 1972 में हरयाणा विधान सभा के चुनाव फिर हुए। इसमें कांग्रेस पार्टी का बहुमत रहा। कांग्रेस सदस्यों ने सर्वसम्मति से चौ० बंसीलाल को अपना नेता चुन लिया और वे हरयाणा के फिर मुख्यमन्त्री बने, जो दिसम्बर 1975 तक इस पद पर रहे।
चौधरी देवीलाल – Chaudhary Devi Lal
मुख्यमन्त्री चौधरी बंसीलाल ने अपने शासनकाल में हरयाणा में निम्न क्षेत्रों में विशेष उन्नति की
– 1. कृषि 2. सिंचाई, 3. उद्योग, 4. बिजली, 5. शिक्षा, 6. स्वास्थ्य सेवायें, 7. परिवार नियोजन, 8. सड़कें, 9. यातायात, 10. गृह निर्माण तथा आवास, 11. पंचायतें, 12. सफेद क्रांति अर्थात् दुग्ध उत्पादन में वृद्धि, 13. हरिजनों की सहायता, 14. सामाजिक सेवायें, 15. खेल-कूद 16. पर्यटन स्थान।
सन् 1966 में हरयाणा के जिलों में खेलों की शिक्षा देने के केवल 13 केन्द्र थे। इनमें खेलों का थोड़ा-सा सामान था। चौ० बंसीलाल ने 4 वर्ष में 34 केन्द्र स्थापित किये और खिलाड़ियों को अच्छी शिक्षा दी जाने लगी।
भारतीय सरकार ने 1972 में पटियाला में और 1973 में दिल्ली में पूरे भारतीय देहाती खेलों के मुकाबिले का आयोजन किया। उनमें दोनों स्थानों पर हरयाणा ने दूसरे नम्बर पर विजय प्राप्त की।
चौधरी बंसीलाल ने राई (जि० सोनीपत) में पं० मोतीलाल नेहरू के नाम पर खेल स्कूल बनवाया, जहां पर खिलाड़ियों को ऊंचे स्तर पर सिखलाई दी जाती है। 1966 में हरयाणा में पर्यटकों के देखने के स्थान नाममात्र के थे। चौ० बंसीलाल ने अपने शासनकाल में हरयाणा को इस क्षेत्र में शिखर पर पहुंचा दिया। आपने निम्नलिखित स्थान बनवाये –
1. दिल्ली से 32 किलोमीटर दूर बड़खल झील जि० फरीदाबाद 2. कुरुक्षेत्र की झीलों पर स्नान घाट तथा विश्रामगृहों का निर्माण, 3. करनाल के निकट उचाना झील 4. सुलतानपुर जि० गुड़गांव में पक्षी विहार तथा 110 एकड़ की झील बनवाई, जहां सैंकड़ों प्रकार के प्रवासी पक्षी आते हैं। वहां पर विश्रामगृह तथा पक्षी अजायबघर भी है। चौधरी बंसीलाल ने हरयाणा में उन्नति हर पहलू में की।
चार वर्ष के भीतर ही हरयाणा की प्रति व्यक्ति आय भारत के सारे प्रान्तों में दूसरे स्थान पर पहुंच गई। चौधरी बंसीलाल के विरोधी एवं ईर्ष्यालु लोगों को भी आपकी प्रशंसा करनी पड़ी। इस 41 वर्षीय सबसे नौजवान मुख्यमन्त्री ने उस समय के थोड़े समय के नये बने हरयाणा राज्य को इतना उन्नत व समृद्ध बना दिया कि उनके विरोधी नेता मुंह ताकते रह गये।
सामान्य शहरी व ग्रामीण जनता पहले की तुलना में अधिक धनवान हो गई। शहरों व गांवों में पक्की व कच्ची नौकरियां मिलने लगीं। गांवों को पक्की सड़कों से जोड़ा गया।
छोटे-बड़े गांव में जहां लगातार कई वर्षों से वर्षा न होने के कारण पीने का पानी 10-15 कोस से सिर पर या ऊंटों पर लाया जाता था, पीने के पानी के नल पहुंचा दिये और उनके खेतों में नहरों का पानी पहुंचा दिया गया।
गांव-गांव में स्कूल खोले गये। दूरदराज के क्षेत्रों में चल चिकित्सालय पहुंचाये गये। हरयाणा के कुछ ही शहरों में बिजली की सुविधायें उपलब्ध थीं। चौधरी बंसीलाल के प्रयत्नों से हरयाणा के प्रत्येक छोटे-बड़े गांव में बिजली पहुंचाई गई, जिससे हरयाणा इस क्षेत्र में भारत में सबसे प्रथम स्थान पर पहुंच गया।
कहावत है कि चौधरी बंसीलाल ने तो रेतीले टीबों पर खड़ी जांटियों में भी बिजली के लट्टू लगवा दिये। कृषि और औद्योगिक पैदावार में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई, जो राज्य में पहले कभी इतनी अच्छी नहीं हुई थी।
राज्य की जनता द्वेष व विचारों के कारण परम्परागत जातियों व उप-जातियों में बंटी हुई है, उन सभी ने एकमत होकर चौधरी बंसीलाल को अपना नेता मान लिया। बंसीलाल ने कहा कि “मैं श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में किये जा रहे विकास कार्यों को जारी रखूंगा।”
चौधरी बंसीलाल ने अपने विरोधियों को मनाने में अपना समय बर्बाद नहीं किया, बल्कि उनको निरुत्साहित कर दिया और उनकी कठिन स्थिति कर दी। इस हद तक वह जरूर कठोर हैं।
चौधरी बंसीलाल की अन्य घटनायें
बंसीलाल 21 मई 1968 से दिसम्बर 1975 तक लगभग 7 वर्ष 7 मास तक हरयाणा के मुख्यमन्त्री रहे। प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने देश में 25 जून सन् 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी जो उसी ने 21 मार्च 1977 को समाप्त कर दी थी।
चौधरी बंसीलाल को श्रीमती इन्दिरा गांधी ने दिसम्बर सन् 1975 में देश का रक्षामन्त्री बना दिया जो इस पद पर 17 मार्च 1977 तक रहे। आपकी जगह हरयाणा प्रदेश के मुख्यमन्त्री दिसम्बर सन् 1975 में बनारसी दास गुप्ता बनाये गये जो इस पद पर 20 जून 1977 तक रहे।
देश में मार्च 1977 में लोकसभा के आम चुनाव हुये जिनमें उत्तरी भारत में तो कांग्रेस पार्टी का एक भी उम्मीदवार न जीता। 23 मार्च, 1977 को देश में जनता पार्टी का शासन स्थापित हुआ। चौधरी बंसीलाल मार्च 1977 के लोकसभा चुनाव में भिवानी क्षेत्र से श्रीमती चन्द्रावती से बहुत मतों से हार गये। आप पर शाह आयोग द्वारा मुकदमा चला परन्तु आप दोषी प्रमाणित न हो सके।
हरयाणा में 8 प्रान्तों के साथ जून 1977 में मध्यावधि चुनाव कराये गए जिसमें जनता पार्टी को 90 में से 75 सीटें प्राप्त हुईं। कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई। श्री बनारसीदास गुप्ता भी चुनाव हार गए। हरयाणा में जनता पार्टी का राज्य स्थापित हुआ और 21 जून 1977 को चौ० देवीलाल मुख्यमन्त्री बने जो जून 1979 तक रहे।
इसके बाद हरयाणा के चौ० भजनलाल मुख्यमन्त्री बने जो इस पद पर 3 जून, 1986 तक 7 वर्ष रहे। 20 अगस्त, 1979 को जनता पार्टी का शासन समाप्त होने के बाद 4 जनवरी, 1980 को देश में लोकसभा के चुनाव हुए जिनमें इन्दिरा कांग्रेस की भारी जीत हुई और वे देश की प्रधानमन्त्री दोबारा बनी।
चौधरी बंसीलाल 4 जनवरी, 1980 के लोक सभा चुनाव में भिवानी से विजयी हुए परन्तु इन्दिरा जी ने इनको अपने मन्त्रिमण्डल में नहीं लिया। वे केवल एम० पी० ही रहे।
Chaudhary Bansi Lal University, Bhiwani: Courses,
31 अक्तूबर, 1984 को प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी की हत्या होने पर उसके पुत्र राजीव गांधी को देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 24 दिसम्बर, 1984 को देश में लोकसभा के आम चुनाव कराये, जिसमें कांग्रेस (इ) की भारी जीत हुई और श्री राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने।
इस चुनाव में चौधरी बंसीलाल भिवानी क्षेत्र से जीतकर एम० पी० बने। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने चौ० बंसीलाल को 31 दिसम्बर, 1984 को भारत का रेल मन्त्री बना दिया। आप इस पद पर 3 जून, 1986 तक रहे। आपने रेलवे पदाधिकारियों तथा कर्मचारियों से दृढ़ता से काम लिया जिसके फलस्वरूप रेलवे दुर्घटनायें बहुत ही कम हो गईं तथा रेलवे की आय से सरकार को काफी लाभ हुआ।
जैसा कि पिछले पृष्ठों पर लिख दिया गया है, चौ० देवीलाल ने हरयाणा संघर्ष समिति का गठन करके आंदोलन शुरु कर दिये। 23 मार्च, 1986 को मुख्यमन्त्री भजनलाल के विरुद्ध आंदोलन शुरु कर दिया जिस पर काबू करने के लिए चौ० भजनलाल असफल रहे। अतः इस स्थिति को देखकर प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने चौ० भजनलाल को दिल्ली बुला लिया।
3 जून, 1986 को चौ० भजनलाल से मुख्यमन्त्री पद से त्यागपत्र मांग लिया और उसी दिन चौधरी बंसीलाल से रेल मन्त्री पद से त्यागपत्र मांग कर उनको हरयाणा का मुख्यमन्त्री नियुक्त कर दिया। चौ० बंसीलाल 4 जून, 1986 से दोबारा हरयाणा के मुख्यमन्त्री बने और इस पद पर 17 जून, 1987 तक रहे।
इस दौरान में चौधरी बंसीलाल ने निम्नलिखित कार्य किए –
- हरयाणा में किसानों की सारी भूमि का लगान (मालिया) माफ कर दिया।
- पक्के खालों (नहरी पानी के दहाने) का खर्च जो कि किसानों से किश्तों पर लिया जाता था, उसको समाप्त कर दिया तथा इनको सरकारी खर्च पर बनवाने का फैसला किया।
- 17 जून, 1987 को हरयाणा में विधानसभा के आम चुनाव हुए। उस चुनाव प्रचार में आपने पलवल जलसे में, प्रधानमन्त्री से, हरयाणा की उन्नति के लिए 4.03 अरब रुपये देने का एलान करवा दिया। परन्तु यह धनराशि अभी तक हरयाणा को मिली नहीं है।
- राज्य सभा की दो सीटों के लिए अपने पुत्र चौ० सुरेन्द्रसिंह तथा चौ० भजनलाल को निर्वाचित किया।
17 जून 1987 के चुनाव में चौ० देवीलाल की आंधी ने कांग्रेस का सफाया कर दिया। इन चुनावों में कांग्रेस को केवल 5 सीटें मिलीं। चौ० बंसीलाल को तोशाम हल्के से चौधरी धर्मवीर ने हरा दिया। 18 जून 1987 को चौ० बंसीलाल ने मुख्यमन्त्री पद से त्यागपत्र दे दिया।
चौधरी बंसीलालने दिनांक 20-5-90 को हरयाणा विकास मंच की स्थापना कर दी। कांग्रेस हाई कमाण्ड ने दिनांक 20-3-91 को चौधरी बंसीलाल को कांग्रेस पार्टी से 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया। 20-5-91 को लोकसभा के साथ हरयाणा विधानसभा के चुनाव हुए जिसका नतीजा यह रहा –
- (1) कांग्रेस पार्टी = 51,
- (2) समाजवादी जनता पार्टी = 16,
- (3) हरयाणा विकास पार्टी = 12,
- (4) जनता दल = 3,
- (5) भाजपा = 2,
- (6) निर्दलीय = 5, बहुजन समाज पार्टी
- = 1. चौधरी बंसीलाल